(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 7 अक्टुबर 2015)
सचमुच रोमांच और रहस्य की दुनिया का एक और सफ़र खोज भी है और जब आप ऐसी खोज में निकलते हैं तो आपको परेशानियों के बाद जो शुकून प्राप्त होता है उसके लिए आपके पास शब्द नहीं होते।
मैं शुक्रगुजार हूँ जीवन चन्द्र जोशी और उनके उन रिश्तेदार श्री दीपक जोशी का जिन्होंने ऐन बिसंग क्षेत्र में प्रवेश करते समय दिल्ली से उन्हें फ़ोन किया और बताया कि आप राजा बाणासुर की नगरी से गुजर रहे हैं। तब मैं आधी नींद में था क्योंकि नैनीताल से पहले जैन्ती विधान सभा अध्यक्ष श्री गोबिंद सिंह कुंजवाल जी के घर और फिर वहां से लोहाघाट तक का सफ़र सचमुच थका देने वाला है ।टवेरा चालक हमारे मित्र हरीश कैमरामैन नरेंद्र सिंह व गोलज्यू देवता पर डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माता जीवन चन्द्र जोशी और मैं जब बिसंग के बीस गॉवों की खुशहाली का नयनाभिराम कर रहे थे तब दीपक जोशी जी के फोन ने हमें सिर उठाकर बाणासुर के किले को देखने व वहां जाने का न्यौता दे डाला।
खोजी प्रवृत्ति के साथ-साथ जुझारू व्यक्ति का साथ मिल जाय तो हर समस्या का समाधान आपके पास है। जीवन चन्द्र जोशी जी ने चढ़ाई देखते हुए कहा कि अगर आप आराम करना चाहें तो कोई नहीं आप गाड़ी में आराम करें और मैं कैमरामैन नरेंद्र सिंह के साथ वहां हो आता हूँ, थकान के बावजूद भी आत्मा ने गवाही नहीं दी कि मैं गाड़ी में सोता रहूं व मेरी टीम के सदस्य बाणासुर किला घूमकर आ जाएं। वाटर बॉटल से दो चार पानी के छींटे मुंह पर डालकर मैं भी साथ हो लिया।
सड़क मार्ग से लगभग दो किमी. की चढ़ाई पर अपनी उतुंगता का आभास करवाने वाले किले की दीवार गगन को छूती नजर आ रही थी। हम जब किले की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए टॉप पर पहुंचे तो लगा मानो हमने संसार की सबसे बड़ी ख़ुशी हासिल कर ली। त्रेता में जगत-जननी सीतामाता के स्वयम्बर में बाणासुर रावण संवाद सुना था आज उसी बाणासुर के किले में हम ऐसे खड़े थे मानों स्वयं किला फतह कर दिया हो।
लोहाघाट से मात्र 8 किमी. दूरी पर स्थित बीस गॉव समूह बिसंग क्षेत्र में दूर दूर तक फैली प्राकृतिक सुन्दरता और किले की चीरों से दिखती त्रिशूल चौखम्बा की हिमालयी उतुंग शिखर मन मोह देने वाली लगती है। वहीँ किले के गर्भ गृह की आभा देखते ही बनती है। आज भी किले की दीवारों पर कटे पत्थर उड़द की दाल की चुनाई के साथ हजारों साल से अपना बर्चस्व कायम रखे हुए हैं।
यह किला 7 वीं सदी पूर्व का माना जाता है जिसे चंद वंशज राजों ने 16वीं सदी में फिर से बनाने का प्रयत्न किया था लेकिन उन्हें भी इसकी छत्त बनाने में कामयाबी नहीं मिली।
त्रेता में राम से जुड़े बाणासुर का प्रसंग द्वापर में श्रीकृष्ण से जुड़ा बताया जाता है। जनश्रुतियों के अनुसार राजा बाणासुर कृष्ण पुत्र अनिरुद्ध का अपहरण कर इसी किले में कैद कर लाये थे क्योंकि बाणासुर को पता लग चुका था कि उनकी बेटी उषा अनिरुद्ध से बेईन्तहाँ प्यार करती है। तब कृष्ण ने माँ भगवती का स्मरण कर अपने पुत्र की कुशल क्षेम जानी तब कहा जाता है कि माँ कलिंका ने कृष्ण को बताया कि उनका पुत्र उनके पुत्र हरुवा और कलुवा जोकि गोरिल के धर्म भाई हैं के साथ सुरक्षित हैं। कहा जाता है तब श्रीकृष्ण ने राजा बाणासुर के इस अभेद किले की छत्त अपने सुदर्शन चक्र से काटकर बाणासुर का वध किया था। इस किले की छत्त का एक हिस्सा आज भी लोहावती नदी के छोर पर है जहाँ पांडू पुत्र भीम ने अपना जनेऊ संस्कार करवाया था।
यहाँ के स्थानीय जनमानस का मानना है कि यहाँ राजा बाणासुर का अथाह ख़जाना आज भी इस किले के नीचे दफ़न है क्योंकि पूर्व में बिसंग क्षेत्र के कई लोगों को इस क्षेत्र में सोना प्राप्त हुआ है। उनका मानना है कि आज भी उस सोने की रक्षा कई नाग कर रहे हैं।
मंदिर की ढाल पर माँ कालिंका का झूला व मंदिर है। वहीँ मंदिर से पानी लेने के लिए दासियों के जाने के लिए 2000 सीढियां नदी में उतरती थी। आज भी किले के बीचों-बीच एक बीस मीटर के लगभग खाईनुमा रास्ता है जिसमें किले से उतरने के लिए 26 सीढियां हैं। गॉव से आये बच्चे कहते हैं कि बिसंग क्षेत्र का जब भी कहीं नाम आता है तो लोग हमें कह देते हैं कि देखिये बाणासुर के नाती आ गए हैं। अब इनसे जरा संभलकर रहिएगा। उन्हें गर्व है कि उन्हें एक ऐसे शक्तिशाली राजा की संतति के रूप में लोग पुकारते हैं, जिसने त्रेता में रावण और द्वापर में श्रीकृष्ण से बैर लिया। वे लोहावती नदी के बारे में बताते हैं कि बिसंग में बहने वाली लोहावती नदी राजा बाणासुर के रक्त की नदी मानी जाती है और एक गॉव आज भी वहां ऐसा है जिसकी मिटटी आज भी लाल है। कहते हैं यहाँ श्रीकृष्ण की सेना ने बाणासुर के सैनिकों का वध किया था।
यह मेरे लिए अलग अनुभव था क्योंकि मुझे सचमुच ज्ञान नहीं था कि बाणासुर का वध किसने किया और कब किया, दो युगों को जीने वाला बाणासुर राजा जहाँ त्रेता में अपनी उपस्थिति उत्तरकाशी जनपद के बाणा गॉव या केदारखंड में दर्शाते हैं वहीँ द्वापर में वे चंद वंशी राजाओं की राजधानी क्षेत्र जिला चम्पावत यानि मानसखंड में अपनी उपस्थिति दर्शाते हैं।
वहीं केदारखंड मैं वर्णन मिलता है क़ि रुद्रप्रयाग जनपद के लमगोंडी गांव बाणासुर का क्षेत्र हुआ करता था। कथा के अनुसार बाणासुर की बेटी उषा को सपने मैं एक युवा से प्रेम हो गया था। उषा की सहेली चित्रलेखा ने उषा के कथनानुसार उस युवा का चित्र बनाया। बाद मैं पता चला क़ि वह श्रीकृष्ण का पौत्र अनिरुद्ध है। बाणासुर को जब इस बात का पता चला तो वे कुपित हो गए और उन्होंने अनिरुद्ध का अपहरण कर लमगोंडी ले आये। अब इस बात की भनक जब भगवान् कृष्ण को हुयी तब उन्होंने बाणासुर को युद्ध मे हरा दिया। इधर उषा और अनिरुद्ध का विवाह ऊखीमठ जिसका प्राचीन नाम उषामठ था में हुआ। आज भी लमगोंडी मैं बाणासुर का मन्दिर है।
प्रसंग अगर देखे जाएं तो सम्पूर्ण पर्वतीय आँचल पर बाणासुर का अधिकार बताया जाता है। इसलिए हो न हो लमगोंडी में अनिरुद्ध के होने की खबर का पता चलने के पश्चात ही राजा बाणासुर उनका अपहरण कर अपने माँ के किले में उन्हें ले आया हो। क्योंकि बिसङ्ग क्षेत्र के इस किले को बाणासुर की माँ का किला भी माना जाता है।
मुझे ख़ुशी है कि इस खोज खबर तक एक रोचक प्रसंग आपके समक्ष रख रहा हूँ कि आज भी बिसंग क्षेत्र के निवासी अपने को बाणासुर का नाती कहलाने में गर्व की अनुभूति करते हैं।