(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 29/05/2013)
पवाणी गॉव से निकलकर लगभग 5;30 बजे शांय हम गंगाड आ पहुंचे. यह गॉव बिलकुल सुपिन नदी की गोद में बसा हुआ है। यहाँ गंदराणी गाड़ (टाट गाड़) जो मोराड़ी से निकलकर सुपिन नदी में गिरती है व यहीं अपना संगम बनाती है। गाड़ हमेशा उन छोटी नदियों को कहा गया है जो हिमालयी भूभाग से निकलने वाली होती हैं। गंदराणी गाड़ (नदी) को औषधि पादप नदी भी माना जाता है। इसके पाणी में बहकर आने वाली झड़ी बूटियों का रस बेहद स्वास्थ्यबर्द्धक माना जाता है। इसके तट पर ज्यादातर ट्रेकर्स अपने तम्बू गाढ़े रहते हैं।
(गंगाड गाँव व नीचे बहती गंदराणी गाढ़)
शायद गंगाड गॉव की लोकसंस्कृति में बदलाव भी इसी कारण नजर आता है। यहाँ के लोग अन्य गॉव के लोगों से थोड़ा उलट नजर आये, क्योंकि यह गॉव दौलत के मामले में समृद्ध माना गया है। आप सुपिन नदी में बने छोटे से पुल पार कर बायीं ओर मुड़ते ही गॉव में प्रवेश कर जाते हैं, जबकि दायीं ओर यहाँ का पनघट है और थोड़ा आगे चलकर एक विशालकाय चट्टान के पास ही पनचक्की भी। इस पनचक्की के साथ ही खड़ी है चट्टान। यहीं से पवाणी गांव जाने के लिए चढाई प्रारम्भ होती है।
इस विशालकाय चट्टान से आपको बारहों माह शिलाजीत टपकती नजर आएगी लेकिन इसका कोई उपयोग जानता भी है या नहीं ! यह कहना मुश्किल है, जबकि इसी गॉव के प्रधान जड़ी-बूटी के प्रसिद्ध व्यापारी हैं और वे गॉव की जगह मोरी नामक रवाई क्षेत्र के छोटे से बाजार में रहते हैं जो टोंस नदी के बांये छोर पर बसा है।
गंगाड के बारे में आपको बता दें कि सन 2012 में इसी महीने यहाँ जमकर बारिश हुई और सुपिन में इतना पानी आया कि कई मकान बह गए तब से यहाँ के कई परिवार धारकोट जा बसे जहाँ इनकी डांडा छानी हुआ करती थी।
(गंगाड गाँव के पूर्व प्रधान व अन्य ग्रामीणों के साथ!
हम अब गॉव में पहुँच गए थे थककर चूर और उम्मीद कर रहे थे कि कोई तो होगा जो हमें चाय पाणी पूछता लेकिन पूरा गॉव सूना – सूना सा नजर आया। प्रधान जी के बारे में पूछा तो पता चला वे गॉव आते ही बहुत कम हैं उनका पूरा परिवार मोरी रहता है। फिर याद आया कि पवाणी की कस्तूरबा की बेटियों ने कुछ नाम यहाँ की बेटियों के भी बताये थे। जिसे पूछो पता चलता वे जंगल गए हैं। कल लौटेंगे तो जवाब होते वे वहीँ रहेंगी।
मेरी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। न स्कूल में कोई मास्टर जी न गॉव में कोई प्रबुद्ध व्यक्ति ! जो मिलता सीधे मुंह बात नहीं करता और निकल लेता। हम पंचायती आँगन में थे। इस दौरान कोई सज्जन युवा लड़का एक लोटा पानी लाकर हमारी प्यास बुझा रहा था कि अचानक उसकी नजर गॉव के पूर्व प्रधान पर पड़ी उन्हें आवाज देकर बुलाया और फिर दो चार लोग इकठ्ठा हुए एक मास्टरजी जो युवा थे और हाल ही में उनकी पोस्टिंग हुई थी वे मिले। इन्हीं लोगों से ज्ञात हुआ कि इस समय पूरा गॉव पर्वतों के उच्च ढालों में होता है। वहीँ गुजर बसर चलती है। ऐसा क्यूँ होता है इस पर सबका जवाब एक साथ गाय बच्छियां लेकर चले जाते हैं ।आखिर कृषि पर ही जीवन निर्भर है, लेकिन मैं उनकी बातों से संतुष्ट नहीं था क्योंकि कुछ तो ऐसा जरुर था जो रहस्यमय था..।
तब तक पूर्व प्रधान जी की नातिन का पता चला कि वह भी कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की छात्रा रही है! उसने मुझे पहचान लिया था, हम सबके चेहरे पर मुस्कराहट खिलने लगी क्योंकि अब स्वाभाविक था कि रात का आसरा पूर्व प्रधान जी के घर में ही मिलेगा!