Thursday, August 21, 2025
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राजा कीर्ति शाह ने बनाया था यह कौशल दरबार।

● राजा कीर्ति शाह ने बनाया यह कौशल दरबार जिसे नया
दरबार कहते थे

●14 साल पहले इसका मरना ऐसा था जैसे सगी बड़ी दीदी मर गई हो

◆इससे पहले राजाओं का घर पुराना दरबार होता था राजा कीर्ति शाह ने इसे बनाया था। वह राजाओं में आधुनिक था।
◆इसका नाम दिया कौशल दरबार जिसे नया दरबार कहते थे।

(वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल सिंह गुसाईं की कलम से)


सच कहूं इस महल में मैं करीब एक दर्जन बार गया था। यह ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर टिहरी शहर की सबसे ऊंची जगहों में एक स्थान होता था। मेरे समय में यहाँ बांध के सरकारी दफ्तर आ गए थे। कमरे ऊंचे ऊंचे 30, 40 फुट के देखे मैंने…! चौड़े 50, 60 फ़ीट तक के।पार्किंग भी थीं यहाँ।

फिर सीढियों से चढ़ कर जाते थे यहाँ। 14 वर्ष बाद भी
हमारी यादों में यह इमारत है! चाहे टूटी हुई है फिर भी दिल और दिमाग से जुड़ी हुई हैं।

राजमाता महिला कॉलेज इसके समीप नीचे था। यहाँ से भागीरथी नदी देखने पर रींग (चक्कर) आती थी। और टिहरी शहर ऐसा दिखता था जैसे मसूरी राजपुर दिखता है आज। सामने एशिया का सबसे ऊँचा बांध का निर्माण चल रहा होता था। क्ले और शेल भराई। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने अनुमति दे दी थी, और ठेकेदार भी कॉफर डैम के लिए अपने ही आंध्रा से भेज दिये थे। मशीनों की गड़गड़ाहट से कुछ हिस्सा डिस्टर्ब रहता था।

पहले राजा सुदर्शन शाह लेकर कीर्ति शाह का आधा कार्यकाल पुराना दरबार में बीता। अपनी पढ़ाई की बूते ज्ञान के बूते उन्होंने एक नया दरबार विकसित किया।
इस चित्र को डूबे हुए 14 साल हो गए हैं, पानी घटता
है तो इस तरह दिखता है। बढ़ता है तो डूब जाता है और समुद्र दिखता है लेकिन इसकी आकृति को देने वाले व्यक्ति को सलाम। हमारी यादों को कम से कम यह चित्र जीवित तो कर रहा है। विकास होना चाहिए, मैं भी आधुनिक विकास के पक्ष में हूँ। जब इन तस्वीरों देखता हूं यह एहसास कराती हैं जैसे पीठी (मुंहबोली) बडी दीदी मर गई हो। उसकी बार-बार याद आती है। टिरी शहर कि इन्हीं गतिविधियों को लेकर मन कभी अशांत हो जाता है लेकिन फिर भी वह मेले-थौले याद आते हैं।

कृष्णा कैंटीन बस अड्डे में मिठाइयों और लस्सी कि वह खुश्बू बहुत याद आती है। और बसों में चलने से पहले जोर से संबोधित करते हुए मुसाफिरों से ….. घनसाली, चमियाला, बूढाकेदार, लंबगांव , चंबा, कदूखाल, श्रीनगर, मसूरी, कीर्तिनगर, गजा, थत्यूड़, अंजनीसैंण, देवप्रयाग, के नाम चीखना चिल्हाना चलो चलो याद आता है।

नया दरबार का रास्ता भादू की मगरी के बैंड से जाता था हमारे जमाने में। पुराना चना के खेतों से होता हुआ।
भादू तो बहुत बाद का है लेकिन भूगोल यही है जिस पर मैं गया हूँ। मैं 1994 में टिहरी आया उच्च शिक्षा के लिए, उससे पहले मैं गांव और उसके कस्बे के इंटर कालेज में था। मैं 2008 में देहरादून आया। मैं अभी भी जाता रहता हूँ गांव क्योंकि मेरे माता, पिता, दादी गांव में रहते हैं। भले हमारा गांव ब्लॉक तहसील मुख्यालय हो। फिर भी टिहरी टिहरी था। इस शहर का मुकाबला नहीं है। श्रीनगर हो सकता है।
बस से उतरतेे ही टिहरी की खुश्बू मिल जाती थीं। इसी में जीते थे। सब लोग। खुश रहते थे। कई पीढ़ियों ने देखा इसे। यह मर कर भी जिंदा है.

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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