(मनोज इष्टवाल)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी व मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम परिवर्तन करवाने के बाद आज केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने जी न्यूज पर दिए अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट देश के पक्ष विपक्ष के सांसदों शिक्षाविदों वैज्ञानिकों साहित्यकारों इतिहासकारों वैज्ञानिकों मनोवैज्ञानिक साईक्लोजिस्टों विद्यार्थियों, शोधार्थियों और राज्यों से विस्तृत चर्चा परिचर्चा सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मध्य नजर रखते हुए समान रूप से शिक्षा लागू करने के लिए एक मंत्रालय का एक शानदार प्रयास है! उन्होंने बड़ी खूबी के साथ इसमें मानवीय आदर्शों को शामिल करते हुए देश की ऋषिकुल परम्परा के तहत आज से लगभग 30-40 बर्ष तक प्रारम्भिक कोर्स में शामिल की जाने वाली नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता से 12वीं कक्षा तक के सेलेबस में शामिल करने की वकालत भी की है!
अपने साक्षात्कार के दौरान डाॅ. निशंक ने कहा कि हम क्षेत्रीय भाषाओं की मजबूती के साथ-साथ देश भर की 26 भाषाओं को आगे बढ़ाना चाहते हैं, इसके लिए जरुरी है कि प्राथमिक शिक्षा केवल मातृभाषा में दी जाय व अंग्रेजी की पढ़ाई अब केवल एक विषय के रूप में ही की जाय! उन्होंने कहा कि पूरे देश का पाठ्यक्रम (सिलेबस) एक समान होगा ताकि सम्पूर्ण देश उसका समान ज्ञान अर्जित कर सके।
उन्होंने कहा कि छात्रों को व्यवहारिक ज्ञान व्यवहारिक शिक्षा खेल, संगीत, आर्ट, कम्युनिकेशन साइंस, स्किल डेवलपमेंट टैक्नॉलॉजी आदि सब एक साथ देने की कोशिश की जाएगी और उसके बाद उच्च शिक्षा में छात्र की जिस विषय में रुचि होगी, उसी में आगे की शिक्षा और आगे की विशेषज्ञता ले सकता है। लेकिन बेसिक नॉलेज उसे सब चीजों का दिया जाएगा। साइंस विज्ञान कला वाणिज्य संकाय जैसे अलग-अलग विभाग नहीं रहेंगे बल्कि छात्र अपने विषय का चयन खुद कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि अब संस्कृत के साथ विज्ञान भी पढ़ सकते हैं।
डॉ. निशंक ने सुझाव देते हुए कहा कि भारत के प्राचीन वैदिक और पौराणिक इतिहास को निश्चित रूप से बच्चों के छोटे बच्चों के कोर्स में सम्मिलित किया जाए। संस्कृत में बहुत गुणवान चरित्रवान धैर्यवान ज्ञानवान बनाने वाली कथायें हैं, उनको प्राथमिक कक्षाओं में निश्चित रूप से पढ़ाया जाए। व्यक्ति की गुणवत्ता उसे गुणवान बनाकर ही विकसित की जा सकती है। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव कृषि, पशुपालन और ग्रामीण आर्थिकी को प्राथमिकता से सेलेबस में रखते हुए पढ़ाये जाने की वकालत की है। स्वच्छता वृक्षारोपण पर्यावरण पशुओं से प्रेम जल की शुद्धता, चरित्र निर्माण यह सब कक्षा 12 तक अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाएं।
डॉ. निशंक ने बच्चों को कदापि होमवर्क दिए जाने को गलत ठहराते हुए कहा है कि जो कुछ बच्चों को स्कूल में पढ़ाया जाए वही आगे उनकी प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी सम्मिलित किया जाय, चाहे प्रतियोगिता परीक्षाएं आईएएस पीसीएस में टेक्निकल हो स्वास्थ्य की हों या लिपिकीय वर्ग की! उन्होंने कहा है कि हम प्राइमरी से लेकर इंटर तक की परीक्षाओं में जो पढ़ाई करते हैं, उसी आधार पर पर उनकी परीक्षण व साक्षात्कार संपन्न हो। साक्षात्कार आदि जब तक अंग्रेजी में होगा तो आप छात्रों को यह कैसे कहेंगे कि आप अंग्रेजी मत पढ़ो। इसलिए इंटरव्यू भी उसकी मातृभाषा में हो तो ज्यादा अच्छा है, नहीं तो हिंदी और राज्य भाषा में हो तब जाकर यह शिक्षा नीति एक व्यवहारिक स्वरूप ले पाएगी।
बहरहाल सबसे जरुरी उनके इस साक्षात्कार में जो बात सामने आई है उसकी यकीनन वर्तमान में देश के नौनिहालों को सबसे ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि मैकाले की शिक्षा पद्धति के देश भर में लागू होने के बाद से शिक्षा के क्षेत्र में एक चारित्रिक पतन तो हुआ है! बेलगाम शिक्षा नीति पर लगाम कसने की यह बेहतरीन कवायद होगी क्योंकि नैतिक शिक्षा में आप भले से समझ पाते हैं कि आपके लिए परिवार, माता-पित़ा, दादा-दादी, लोक समाज, लोकसंस्कृति, पेड़ पौधे, वन-पर्यावरण, जल-जंगल-जमीन, पशु-पक्षी व संस्कार आपके हृदय पटल और आम व्यवहारिक परिवेश में क्या अहमियत रखते हैं!