ग्राउंड जीरो से संजय चौहान! विश्व संगीत दिवस विशेष– (world music day)..।
21 जून को पूरे विश्व में विश्व संगीत दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। लीजिये आज कुछ नजर दौडते हैं पहाड के लोकसंगीत पर। लोकगीतों का संसार बड़ा ही रोचक होता है, जिनका जुड़ाव सीधा लोगों से होता है। लोकसंगीत लोक गीतों की आत्मा है।
पहाड़ के लोकजीवन का प्रतिबिम्ब यहाँ के लोकगीत और लोक संगीत में दिखाई देता है। इन लोकगीतों में संगीत की मिठास लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है। लोक गीत सरल, सुंदर, अनुभूतिमय और संगीतमय होते हैं। संगीत के बिना लोकजीवन प्राण रहित शरीर के समान है। लोकगीतों में परंपरा, रीति-रिवाज, सामाजिक व धार्मिक पुट होता है। जिसे हम लोकगीतों में महसूस कर सकते हैं। लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं तो मन स्वतः ही थिरकने को मजबूर हो जाता है। पहाड के घर गांवो में उत्सव, कौथिग, मेलों आदि अवसरों पर जब मधुर कंठों में लोक समूह गीत गाते हैं तो वातावरण महकने लगता है।
लोकगीत विभिन्न प्रकार से रचे और गाए जाते हैं। मंगल गीत, प्रेम गीत, श्रृंगार गीत, विरह गीत, ऋतु गीत, त्यौहार गीत, रोपणी के गीत, फाग गीत, बसंत, पावस गीत, संस्कार गीत, जन्म गीत, मुंडन गीत, पर्व गीत, आदि। लोक गीतों का महत्व हमेशा बना रहता है। संगीत मन के भाव को बयां करने का बेहद सरल तरीका है। संगीत में लय, ताल का समावेश है तो संगीत थिरकने पर मजबूर कर देता है। तभी तो लोकगीतों की संगीतमय धुनों में लयबद्ध और कतारबद्ध लोकनृत्य हर किसी को आनंदित करता है। खासतौर पर हमारे पहाड़ में झुमेलो, चांचणी, छोलिया, तांदी, रांसो, पौणा नृत्य इत्यादि।
पहाड़ के लोकसंगीत में गीतों के समान ही वाद्य यंत्रों का बड़ा महत्व होता है जिनमें हुडका, ढोल दमाऊं, मशकबीन, बांसुरी (मुरूली), रणसिघां, भोंकरे, इत्यादि शामिल हैं। ये वाद्ययंत्र लोकसंगीत को ऊँचाई प्रदान करते हैं। ऐसे भी अनेक गीत गाए जाते हैं, जिनके साथ कोई वाद्य यंत्र नहीं बजाया जाता, बल्कि उंगलियों की चुटकी, हथेलियों की ताली, सीटी तथा पैरों की धमक का प्रयोग किया जाता है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो पहाड़ का का लोकजीवन उत्सवों एवं तीज त्यौहारों से अटा पडा हुआ है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यहां उत्सव मनाए जाते हैं। लगभग प्रत्येक महीने में यहाँ कोई न कोई तीज त्योहार होता है। इसलिए यह उत्सवप्रिये समाज हर पल प्रसन्नता के क्षणों में जीता है। अपनी उत्सवप्रियता को वह गीत- संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त करता है।
(नोट- ये वीडियो नंदा देवी की वार्षिक लोकजात यात्रा 2019 के दौरान वेदनी बुग्याल में वाण गांव की महिलाओं द्वारा गाये गये पौराणिक लोकगीतों की है। इन लोकगीतों को कैमरे में कैद करनें का सौभाग्य मुझे मिला)