(मनोज इष्टवाल)
इस बुग्याल को यहाँ के लोग देवताओं की क्यारी के रूप में मानते हैं जहाँ ब्रह्मी, जयाण, ब्रह्मकमल सहित उच्च हिमालय में खिलने वाले सबसे खूबसूरत औषधि पादपों का भंडार है! यहाँ ऐसी मखमली बुग्याल है कि उसमें गिरी ओंस के कण सूर्य की प्रथम किरण के पड़ते ही सैकड़ों हीरों में बदल जाती हैं! यहाँ वायुमंडल में पुष्पों से फूटती खुशबु से मन प्रफुल्लित हो जाता है! यहाँ सुरमई शाम जब सूर्य देव अस्तांचल को जाते हैं तो हिमालय अपने सुनहरे रंग की आभा बिखेरता हुआ जैसे चादर लपेटकर सोने की तैयारी कर रहा हो, ऐसा प्रतीत होता है!
यह सब होने के बावजूद भी जब यहाँ सैकड़ों भैंसों के राक्षसी स्वरूप इन बुग्यालों की माटी रौंदते हुए आगे बढ़ते हैं तो लगता है जैसे कोई सीने में भाले से घाव चुभा रहा हो! वो भी ऐसी धरा पर…जिसमें रैथल व उसके आस-पास के गाँव अन्डूडी त्यौहार मनाकर इस देवात्मा स्वरूपी धरा का वंदन करते हैं!
आइये दयरा के बारे में थोड़ा सा जानकारी ले लें! दयारा बुग्याल घास की जमीन 2600 मीटर से शुरू होकर 3500 मीटर तक चला जाता है। जंगल और रोडोडेंडर ट्रेस के माध्यम से 9 किमी की ट्रेक इस प्राचीन जगह पर ले जाती है, ग्रीष्मकाल में चरवाहों ने अपने मवेशियों के साथ यहां पहुंचे और सर्दियों की शुरुआत तक जारी रहें। सर्दियों में स्कीइंग और बर्फ की गतिविधियों की क्षमता के साथ घास के मैदान बर्फ भूमि में बदल जाते हैं! निकटतम हवाई अड्डा देहरादून में जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो उत्तरकाशी मुख्यालय से लगभग 200 किमी दूर है। देहरादून हवाई अड्डे से उत्तरकाशी तक टैक्सी तथा बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून सभी जगह रेलवे स्टेशन हैं। उत्तरकाशी से निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (लगभग 100 किमी) है। ऋषिकेश से उत्तरकाशी बस/टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। राज्य परिवहन की बसें उत्तरकाशी और ऋषिकेश (200 किमी) के बीच नियमित रूप से चलते हैं। स्थानीय परिवहन संघ और राज्य परिवहन की बसें तथा टैक्सी उत्तरकाशी और ऋषिकेश (200 किमी), हरिद्वार (250 किमी), देहरादून (200 किलोमीटर)के बीच नियमित रूप से चलते हैं।
दयारा पहुँचने के लिए उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 30 किमी रोड के द्वारा भटवाड़ी/रैथल तक, उसके बाद रैथल से ट्रेक रूट जाता है! दयारा बुग्याल उत्तरकाशी जिले के टकनौर रेंज में पड़ता है! समुद्र तल से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित द्यारा बुग्याल भूस्खलन व मानव चहलकदमी अछूता नहीं है जो 28 वर्ग किमी. के दायरे में फैला हुआ है। वहां पिछले कुछ वर्षों से भूस्खलन हो रहा है। जमीन दरकने से घास के इस मैदान की हरियाली पर भी असर पड़ा है। इस बुग्याल की सैर के लिए पर्यटन विभाग ने जून का पूरा महीना रिजर्व रखा है। पर्यटन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, हरिद्वार से पहले दिन उत्तरकाशी में स्थित बारसू तक जाया जाएगा। अगले दिन पर्यटक बारसू से आठ किलोमीटर का ट्रैक कर दयारा बुग्याल पहुंचेंगे। यहां पर्यटन विभाग ने कैंप लगाया है। रात को पर्यटकों को यहीं ठहराया जाएगा। अगले दिन करीब चार किलोमीटर का ट्रैक कर पर्यटकों को सियांरा बुग्याल ले जाया जाएगा।
यहां से पर्यटक दयारा लौटेंगे और रात को वहीं रुकेंगे। अगले दिन पर्यटकों को बकरिया टॉप ले जाया जाएगा। करीब पांच किलोमीटर का ट्रैक कर बकरिया टॉप पहुंचने के बाद पर्यटकों को रात बिताने के लिए वापस दयारा बुग्याल लाया जाएगा। अगले दिन पर्यटकों को आठ किलोमीटर का ट्रैक करवाते हुए वापस रैथल लाया जाएगा। अंतिम दिन रैथल से पर्यटकों को हरिद्वार वापस लाया जाता है!
(ट्रीटमेंट में खुद की सहभागिता निभाते डीएफओ संदीप कुमार सफेद कैप लगाए)
बहरहाल यह अचम्भित करने वाली बात है कि दयारा बुग्याल उत्तरकाशी वन विभाग की टकनौर रेंज में पड़ने वाला हिमालयी क्षेत्र का बहुत ही खूबसूरत बुग्याल है! जिसकी रेंज में आने वाले इसी जनपद के रवाई घाटी के सरू ताल, काला पहाड़ (ब्लैक पीक), केदारकांठा, मल्दारु लेक, हर-की-दून, बाली-पास, देवक्यारा बुग्याल, भराडसर ताल, चाईशील बुग्याल सैकड़ों किमी. तक फैले हैं, लेकिन वन विभाग इनसे कितना राजस्व अर्जित करता है यह आंकड़े तो फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं लेकिन डीएफओ संदीप कुमार ने एक अजब-गजब का बीड़ा उठाया, उन्होंने दयारा बुग्याल की दशा व दिशा बदलने की एक मुहीम छेडी जिसकी प्रशंसा में सबके मुंह से एक ही बात मुंह से निकलती है- वाह…!
(ट्रीटमेंट से पूर्व दयारा बुग्याल के फोटो)!
दयारा बुग्याल पर तब विश्व की नजर पड़ी, जब 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल (से.नि.) भुवन चंद खंडूरी की सरकार ने वहां के लोक त्यौहार अन्डूडी को “बटर फेस्टिवल” के रूप मन प्रचारित किया और दयारा में सदी का सबसे बड़ा मक्खन होली का त्यौहार मनाया गया! सोशलिस्ट उदित घिल्डियाल बताते हैं कि रैथल गाँव में तब ग्राम प्रधान मनोज राणा हुआ करते थे! तब उनके स्थानीय अन्डूडी त्यौहार को राष्ट्रीय स्वरूप दिया गया व इसे बटर फेस्टिवल के रूप में मनाया गया! तब जिला पंचायत सदस्य चंदन सिंह राणा की अगुवाई में रैथल व आस पास के गाँव के लोगों ने इस फेस्टिवल को सफल बनाने के लिए बहुत मेहनत की! तब भी मैंने पाया था कि यहाँ वन गूर्जर अपनी भैंसे चुगाने का परमिट लेकर यहाँ पहुँचते थे व उनकी भारी भरकम भैंसे जब इन बुग्यालोंमें दौड़ती थी तब अपने साथ बुग्यालों की हरियाली रौंदती आगे बढती थी!
उदित घिल्डियाल का मानना है कि इक्को सिस्टम में बुग्याल को नया-नया पैदा हुआ बच्चा जैसा मुलायम होता है और उसे भारी भरकम भैंसों के ख़ुर्र उखाड़ फैंक रहे हों तो उसकी कितनी भयावक स्थिति होगी यह कल्पना की जा सकती है! उन्होंने कहा तब भी उन्होंने स्थानीय लोगों को चेताया था कि वन गूर्जरों का यहाँ आना प्रतिबंधित किया जाना चाहिए क्योंकि तब यहाँ भू-क्षरण व भूस्खलन बहुत कम मात्रा पर था! 2010 में जब मैंने इस क्षेत्र का भ्रमण किया तो पाया वहां गहरी-गहरी खाइयां बन गयी हैं व भूस्खलन से भी मीलों फैले इन बुग्यालों की ख़ूबसूरती खराब हो गयी है! 2008 तक यहाँ कम भैंसे व कम वन गूर्जर आया करते थे, 2010 तक इसकी स्थिति और भयावक हो गयी थी और यहाँ सैकड़ों गूर्जर गर्मियों में अपने भैंसों व डेरों के साथ वन विभाग से परमिट अर्जित कर पहुँचने लगे थे लेकिन दुर्भाग्य से किसी ने भी इस बात पर कोई बिशेष ध्यान नहीं दिया! इससे साफ़ है कि यह विभागीय लापरवाही ही रही होगी!
(कैप लगाए वन कर्मियों व ग्रामीणों को दिशा-निर्देश देते डीएफओ संदीप कुमार)
उन्होंने कहा कि वर्तमान में जिस तरह का ट्रीटमेंट इस बुग्याल पर हुआ है उसके लिए वे डीएफओ की कार्यशैली की प्रशंसा किये बगैर नहीं रह सकते! उन्होंने कहा सचमुच यह अद्भुत है, इसमें वन मंत्री, सचिव व समस्त अधिकारियों के साथ उन ग्रामीणों की भागीदारी भी नहीं भुलाई जा सकती जिन्होंने इसे सजाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है!
अब आते हैं डिस्ट्रिक फारेस्ट ऑफिसर संदीप कुमार द्वारा रिसर्च के बाद दयरा को सजाने की अहम भागीदारी निभाना! डीएफओ संदीप कुमार कहते हैं कि उन्होंने जुलाई 2019 में जब इस क्षेत्र के ट्रीटमेंट को लेकर पहल की व यहाँ का भ्रमण किया तो उन्हें बहुत तकलीफ हुई कि हमने अब तक प्रकृति की इस खूबसूरत वादी की सुध क्यों नहीं ली! भले ही इस पर हम काफी समय से योजना बनाकर कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध हो गए थे लेकिन इसके ट्रीटमेंट के लिए बहुत आले दर्जे की सोच के साथ हमने प्लानिंग की व आखिर में दयारा बुग्याल में खुद गयी खाइयों, भूस्खलन की चपेट में आये क्षेत्रों पर हमने नयी तकनीक के साथ काम करना शुरू किया! हमने जूट व पिरूल निर्मित रस्सियों से इसके लिए उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया! हमने बुग्याल क्षेत्रों में पड़े कई कुंतल पिरूल को यहीं के लोगों के माध्यम से ध्याड़ी पर उठवाया और उन्हीं से यहाँ काम भी लिया, क्योंकि उन्हें अपनी थाती-माटी के साथ जो लगाव है वह उनकी आँखों के सामने दिखना भी चाहिए था!
दयरा बुग्याल में अपनाई गयी तकनीक पहली बार पहाडो व बुग्यालों में अपनाई गयी है! एक जिओ क्वायर होता है उसका यहाँ प्रयोग किया गया है क्योंकि बुग्यालों में भारी कंक्रीट वर्क नहीं किया जा सकता है! इसीलिए इसमें चुनौती को स्वीकार करते हुए हमने इसकी तकनीकी पर बारीकी से नजर रखी व इसकी जिओ मैटिंग कर इसकी ब्लॉक्स को रोकने के लिए हमने पत्थर की दीवार देने की जगह जिओ लॉक्स बनाए व पिरूल को डम्पिंग करवाई ताकि इससे जंगल भी आग से सुरक्षित रहें व यह पिरूल यहीं सड भी जाए तो उससे नयी हरियाली उगेगी!
विगत कई बर्षों से यहाँ भूस्खलन बहुत हुआ जिसके कारण हमने यहाँ लम्बे म्बे ब्लॉक्स बनाए ताकि चेक डेम पत्थरों की जगह बम्बो बोर्ड से बांस लेकर इस नई तकनीक को विकसित किया और लगभग 3600 वर्ग मीटर अर्थात लगभग 3.6 किमी. क्षेत्र को रिकवर किया! इसमें पिरूल का उपयोग इसलिए भी किया गया ताकि यह दो साल या इससे अधिक या कम समय में अगर सड भी जाएगा तो इससे बनी खाद के नीचे सुंदर बुग्याल उग जायेंगे! उन्होंने बताया कि इस सब ट्रीटमेंट पर अभी तक लगभग 27 लाख रूपये के आस-पास खर्च हुआ है! उन्होंने कहा कि इस सब में गाँव वालों ने बड़ी सहभागिता निभाई है और बेहद उत्साह व उमंग के साथ दयरा बुग्याल के ट्रीटमेंट पर वन विभाग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है!
बहरहाल यह सम्पूर्ण उत्तराखंड के लिए एक बेहद नई तकनीक है व सचमुच बुग्यालों के ट्रीटमेंट के लिए एक नजीर पेश की गयी है!