(हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से)।
अक्सर कहते हैं, कि सब्र का फल मीठा होता है, इस सब्र के पेड़ पर फलने लगने के इंतजार में कई बार इंतजार करता करता इस संसार से रूखसत कर जाता है। ऐसे ही सब्र का पेड़ यमकेश्वर क्षेत्र के वासियों के लिए भी लगाया गया। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद यमकेश्वर में एक सब्र नाम के पेड का बीज बोया, लोगों ने उसे खाद पानी देकर खूब बड़ा कर दिया लेकिन 20 सालो में उस सब्र नामक पेड़ ने फल नहीं दिये ।
तब वहॉ के लोगों मे पेड़ को लेकर आक्रोश होने लगा। कई बार इस सब्र के पेड़ पर फूल लगे, फिर आश्वासनों के फल लगे, कई लोगों ने उन आश्वासनों के फलों की फोटो भी सहेज कर रखी, लेकिन अगले ही तूफान में वह फल औंधे मुॅह गिर गये।
सब्र नामक इस पेड़ के मीठे फलों के इंतजार मे कई वृद्व लोग इनका स्वाद चखे बिना ही ईश्वर को प्यारे हो गये । ऐसे में यमकेश्वर क्षेत्र के वीरकाटल गॉव के लोग भी अपने गॉव में इस सब्र के फल का इंतजार कर रहे थे, यहॉ भी आश्वासन के फूल खिले, हल्के हल्के फल भी लगने लगे, लेकिन ना जाने कौन सी बीमारी से ये सब्र के फल बड़े होते होते रह जाते। आखिर कार वीरकाटल के लोगों को इस सब्र के पेड़ से विश्वास उठ गया और उन्होनें दूसरा विश्वास और श्रमदान नामक पेड़ का बीज बोया, यह पेड़ लोगों के आपसी रजामंदी और विश्वसनीयता के खाद और पानी से सींचा गया जिसका नतीजा यह हुआ कि यह कलमी आम की तरह फल देने लगा।
लोगों को उस 20 साल के पेड़ से उम्मीद लगानी छोड़ दी, जब जब गॉव वाले इस सब्र के पेड़ की फल लगाने की चर्चा करते तो इसके रखवाले इसकी सुरक्षा कवच बनकर इसके गुणों का बखान करने लगते, कोई इसके छायादार होने की प्रंशसा करता, कोई कहता कि यह ठण्डी हवा देता है, कोई कहता कि यह जमीन में मिट्टी को बॉधे रखने में सक्षम है, लेकिन पेड़ के रखवाले इस पेड़ पर फल क्यों नहीं फल फूल रहे हैं, इसको नहीं देख पाते।
जब यमकेश्वर के अन्य गॉवों के लोगों की भॉति वीरकाटल के लोगों का इस सब्र के पेड़ के फल का इंतजार करना अब हालात से बाहर हो गये तो उन्होनें अपने ही संसाधनों से विश्वास और भाईचारे का कलम लगाकर नया पेड़ लगाया। जिसका परिणाम सामने है, आज वहॉ के लोग अपने बलबूते पर उस पेड़ के फल को खाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके हैं।
वीरकाटल गॉव के लोगों द्वारा 2013 की आपदा में मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली पुलिया जब टूट गयी तो वहॉ के निवासियों ने शासन प्रशासन से गुहार लगायी, लेकिन शासन प्रशासन और राजनीति के इस चौपड में हारे तो आखिर में गॉव वाले ही। गॉव के सीधे साधे लोग इस शतरंज के चौपड़ की चाल को नहीं भॉप पाये और वह हर बार जीतने की उम्मीद में खुद को हराते गये, लेकिन जब उन्हे लगा कि वह अब उनकी कोई जीतने की उम्मीद नहीं बची है, तब उन्होनें एक कुशल नेतृत्व करते युवा के नेतृत्व में रणनीति बनायी और जिसका परिणाम यह हुआ कि वह खुद के बनायी रणनीति में सफल होकर अपने मुकाम को हासिल किया। वीरकाटल के गॉव के निवासियों का आखिर में सब्र का पुल टूट गया और श्रमदान से सेतु निर्माण कार्य जो प्रगति पर है उसके लिए वह दिन रात एक करके मेहनत कर रहे है।
वीरकाटल गॉव के लोगों ने कुछ दिन पहले श्रमदान से सड़क बनाकर एक नया मुकाम हासिल किया, अब वहॉ के लोग स्वयं ही अपने संसाधनों से पुलिया का निर्माण कर रहे हैं, आपको नीचे दिये गये चित्रों को देखकर प्रथम दृष्टया आप यह सोचेगे कि यह कोई सरकार की बड़ी योजना पर काम हो रहा है, लेकिन कभी कभी हमारी ऑखे देखती कुछ और हैं, और सच कुछ और होता हैं, आप जो यह पुलिया बनते देख रहे हैं, यह किसी सरकारी बजट नहीं बल्कि उन ग्रामीणों की मेहनत और टैक्स चुकाने के बाद अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए जमा की गयी पूजी का अंश है, यह कोई नम्बर दो का धन नहीं बल्कि आम जन की खून पसीने की कमाई से लगाये गये धन और गॉव के लोगों के श्रमदान का नतीजा है। मेरी इस पोस्ट को लिखने का आशय यह है कि यह संसार श्रमसाध्य से ही चलता है, शतरंज की विसात से तो चाल जीती जा सकती है, लेकिन दिल नही।