(अखिलेश डिमरी की कलम से)
फिलहाल कुछ दिनों से तय किया हुआ था कि सोशल मीडिया पर जो भी लिखूँ हल्का फुल्का ही रहे लेकिन विकासखंड बेतालघाट के तल्ला सेठी गाँव में शासन प्रशासन के गैरजिम्मेदाराना रवैये से उत्पन्न कुव्यवस्थाओं के चलते सांप के काटने से चार वर्षीय बच्ची की मौत नें हृदय को झकझोर दिया है।
सनद रहे कि ये वही सूबा है जहां कोरोना महामारी के चलते लाकडाउन को लगभग 60 दिवस हो गए हैं और हम प्रवासियों के लिए उनके अपने ही प्रदेश में रहने खाने के समुचित प्रबन्ध नही कर पाए हैं, सरकारी अमले की यह प्रतिबद्धता है कि संसाधनविहीन गांवों में ग्राम प्रधानों के जिम्मे सब कुछ छोड़ पूरा प्रशाशनिक अमला बस कंडक्टर ड्राइवर की भूमिका अदा करने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा है।
आज की यह घटना महज कोई दुर्घटना नहीं बल्कि इस सूबे के व्यवस्थागत अमले के जिम्मेदारी न ले सकने की इंतहा है, जगह जगह से अधिकारियों की कार्यशैली के बाबत जो खबरें आती रही हैं वो इस बात की तस्दीक करती हैं कि आरामपसंद अमला काम न करने की कसम खाये बैठा है , भी कल ही एक अधिकारी की किसी ग्रामप्रधान से हुई टेलीफोनिक वार्ता का ऑडियो क्लिप वायरल था जिसमें अधिकारी महोदय 40 से 50 किलोमीटर दूर गांव के प्रधान से कह रहे थे कि तुम्हारे गाँव के लोगों को तहसील में क्वारन्टीन कर देंगे तुम उनके लिए बिस्तर भिजवा दो ये ससुरे प्रधान जी से हर रोज खाना लाने के लिए भी कह दें तो आश्चर्य मत कीजियेगा, इसके अलावा भी कई नगीने हैं इस सिस्टम में , दिल्ली के अपर स्थानिक आयुक्तों की कार्यशैली तो सबने देखी ही कि सूबे के मुख्यमंत्री हेल्प लाइन नम्बर जारी करते हसीन पर हुजूर और मैडम साहिबा उठाती ही नहीं।
इस सूबे की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी महज चिट्ठी लिखने भर तक की है जो ये प्रधान जी को लिख कर दे चुके हैं…! इन व्यवस्थाओं गाँव के हालातों का शायद ही पता है कि वहां व्यवस्थाएं हैं भी या नहीं…? जो पैसा इनके मंत्री ग्राम प्रधानों के खाते में दे चुकने का दावा कर रहे थे उसकी सच्चाई भी अब सबके सामने आ ही गयी है।
बेतालघाट के तल्ला सेठी गाँव में साँप के काटने से हुई बच्ची की मौत दरअसल सूबे में सिस्टम की जिम्मेदारियों की भी अकाल मृत्यु है और मृत व्यवस्थाओं से ज्यादा उम्मीदें मत करिए।
लिख के ले लीजिए बेतालघाट के तल्ला सेठी गाँव की इस हृदयविदारक घटना पर भी व्यवस्थाएं लीपापोती करते हुए इसे व्यवस्थागत कमी नहीं बल्कि छोटी सी दुर्घटना सिद्ध कर देंगी और बहुत हुआ तो अपना पिंड छुड़ाते हुए किसी छोटे से कर्मचारी के मत्थे ही सारा दोष मढ़ दिया जाएगा , बाकी रही सही सोशल मीडिया पर इस तरह की पोस्टों पर बुद्धिजीवियों का एक समूह आकर आपसे उल्टा सवाल करेगा कि ये प्रवासियों को अभी आने की जरूरत ही क्या थी , वहीं नहीं रह सकते थे जहां थे …? पर यह सवाल शायद ही कोई करे कि व्यस्थाएँ क्यों इस कदर गैरजिम्मेदार थी कि एक बच्ची को अकाल मृत्यु का शिकार होना पड़ा ….?
मेरा मत है कि इस घटना पर सूबे के गृह विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज होना चाहिए, क्योंकि यह मौत सरकारी प्रवास के दौरान हुई मौत है जिसकी जिम्मेदार सरकारी व्यवस्थाएं हैं।