Friday, August 22, 2025
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भूमण्डल के पहले पत्रकार थे नारद, जो तीनों लोक विचरण करते थे।

(मनोज इष्टवाल)

इस धरती में हिन्दू धर्म की सनातन संस्कृति से पुरानी कोई संस्कृति नहीं है, यह तो सभी जानते हैं लेकिन यह कोई नहीं जानता कि यह धर्म संस्कृति का क्षेत्रफल सिर्फ भारत या नेपाल नहीं बल्कि एशिया-यूरोप तक फैला हुआ था। आज भी हम गाते हैं सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा….! लेकिन हम भूल गए कि आर्यवर्त भारत का हिस्सा ईरान तक था व मक्का मदीना तक शिब का विराट आलय…! हम सिमटते गए या फिर हमें सिमटाते-सिमटाते दूसरी जाति धर्म इस कद्र सिकुड़ा गयी कि वर्तमान में विश्व संस्कृति के ध्वजवाहक हम भारत बर्ष में भी अपनी सनातन परम्पराओं का निर्वहन करने में सामर्थहीन हो रहे हैं। इस सबके पीछे अगर कोई है तो वह है स्वयं का दुश्मन हिन्दू समाज के चंद वे लोग जिन्होंने टुकड़ों पर पलकर अपनों की नहीं गैरों की पैरवी की।

जब विश्व संस्कृति में हमारी सनातन परम्पराओं का ध्वज लहराता था तब भी सतयुग काल से ही हमारी पत्रकारिता चरम पर थी व तीन लोक में खबरों का आदान प्रदान करने वाले नारद विश्व के पहले पत्रकार कहलाये। आज उन्हीं नारद जी की जयंती है जिसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पूरे भारत बर्ष में धूमधाम से मनाता रहा है व देश के चुनिंदा पत्रकारों को पिछले एक दशक से हर बर्ष पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके द्वारा किये जाने वाले उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित भी करता आया है।
आइये जानते हैं कि आखिर नारद हुए कौन? क्योंकि हम उन्हें सिर्फ बिष्णु पुत्र, रूपवान व नारायण नारायण करते हुए एक लोक से दूसरे लोक का ख़बरी ही समझते रहे हैं। नारद जी बृहस्पति जी के शिष्य हैं। देवऋषि नारद को तीनों लोकों में भ्रमण के कारण एक लोक कल्याणकारी संदेशवाहक और लोक-संचारक के रूप में जाना जाता है|

देवऋषि नारद एक अत्यंत विद्वान्, संगीतज्ञ, मर्मज्ञ (रहस्य को जानने वाले) और नारायण के भक्त थे| देवऋषि नारद द्वारा रचित 84 भक्ति सूत्र प्रसिद्ध हैं। स्वामी विवेकानंद सहित अनेक मनीषियों ने नारद भक्ति सूत्र पर भाष्य लिखे हैं।

(सन 2016 में पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए आद्य पत्रकार देवर्षि नारद सम्मान)

हिन्दू संस्कृति में शुभ कार्य के लिए जैसे विद्या के उपासक गणेश जी का आह्वान करते हैं वैसे ही सम्पादकीय कार्य प्रारम्भ करते समय देवऋषि नारद का आह्वान करना स्वाभाविक ही है। भारत का प्रथम हिंदी साप्ताहिक अख़बार ‘उदन्तमार्तण्ड’ 30 मई, 1826 को कोलकाता से प्रारम्भ हुआ था। इस दिन सम्पादक ने आनंद व्यक्त किया कि देवऋषि नारद की जयंती (वैशाख कृष्ण द्वितीया) के शुभ अवसर पर यह पत्रिका प्रकाशित होने जा रही है|

देवऋषि नारद अन्य ऋषियों, मुनियों से इस प्रकार से भिन्न हैं कि उनका कोई अपना आश्रम नहीं है। वे निरंतर प्रवास पर रहते हैं तथा उनके द्वारा प्रेरित हर घटना का परिणाम लोकहित से निकला। वर्तमान संदर्भ में यदि नारद जी को आज तक के विश्व का सर्वश्रेष्ठ लोक संचारक कहा जाए तो कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।

गंगा आदि पतित पावनी नदियों की महिमा तथा पवित्र तीर्थों का महात्म्य; योग, वर्णाश्रम-व्यवस्था, श्राद्ध आदि और छह वेदांगों का वर्णन व सभी 18 पुराणों का प्रमाणिक परिचय ‘नारदपुराण’ की विशेषताएं हैं। व्यावहारिक विषयों का नारद स्मृति में निरूपण किया गया है। नारद द्वारा रचित 84 भक्ति सूत्रों का यदि सूक्ष्म अध्ययन करें तो केवल पत्रकारिता ही नहीं पूरे मीडिया के लिए शाश्वत सिद्धांतो का प्रतिपालन दृष्टिगत होता है।

देवऋषि नारद द्वारा रचित भक्ति सूत्र अनुसार जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, कार्य आदि के कारण भेद नहीं होना चाहिए। देवऋषि नारद एक ऐसे कुशल मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले लोक-कल्याण संचारक और संदेशवाहक थे जो आज के समय में पत्रकारिता और मीडिया में भी प्रासंगिक है|

कहीं भी जब नारद अचानक प्रकट हो जाते थे तो होस्ट की क्या अपेक्षा होती थी? हर कोई देवता, मानव या दानव उनसे कोई व्यापारिक या कूटनीतिक वार्ता की उम्मीद नहीं करते थे| नारद तो समाचार ही लेकर आते थे। समाचारों के संवाहक के रूप में नारद की सर्वाधिक विशेषता है उनका समाज हितकारी होना| नारद के किसी भी संवाद ने देश या समाज का अहित नहीं किया|

कुछ सन्दर्भ देवऋषि नारद के ऐसे आते जरुर हैं, जिनमें लगता है कि नारद चुगली कर रहे हैं, कलह पैदा कर रहे हैं| परन्तु जब उस संवाद का दीर्घकालीन परिणाम देखते हैं तो अन्ततोगत्वा वह किसी न किसी तरह सकारात्मक परिवर्तन ही लाते हैं|

इस प्रकार देवऋषि नारद एक घुमक्कड़, किंतु सही और सक्रिय-सार्थक संवाददाता की भूमिका निभाते हैं और अधिक स्पष्ट शब्दों में कहूं तो यह कि देवर्षि ही नहीं दिव्य पत्रकार भी हैं। देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता हैं, क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया। महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि नारद आदर्श व्यक्तित्व हैं| श्रीकृष्ण ने उग्रसेन से कहा कि नारद की विशेषताएं अनुकरणीय हैं

देवर्षि नारद की ही प्रेरणा से महर्षि वाल्मीकि ने रामायण जैसे महाकाव्य ओर व्यास ने भगवदगीता जैसे सम्पूर्ण भक्तिकाव्य की रचना की| देवर्षि नारद ने विवाद और संघर्ष को को भी लोक कल्याण के रूप में प्रयोग किया है| देवर्षि नारद के हर परामर्श में और प्रत्येक वक्तव्य में कहीं न कहीं लोकहित झलकता है | देवर्षि नारद के हर वाक्य, हर वार्ता और हर घटनाक्रम का विश्लेषण करने से यह बार- बार सिद्ध होता है कि वे एक अति निपुण व प्रभावी संदेशवाहक थे |

देवर्षि नारद द्वारा रचित भक्ति सूत्र में 84 सूत्र है| प्रत्यक्ष रूप से ऐसा लगता है कि इन सूत्रों में भक्ति मार्ग का दर्शन दिया गया है और भक्त ईश्वर को कैसे प्राप्त करें? यह साधन बताए गए है|

हिन्दू संस्कृति में देवऋषि नारद का एक विशिष्ट चरित्र और स्थान है| भारतीय शास्त्रों का इतिहास देखेंगे तो अलग-अलग जगह पर नारद जी का उल्लेख है| शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि वे ब्रह्मा जी के पुत्र हैं, भगवान विष्णु जी के भक्त और बृहस्पति जी के शिष्य हैं |

देवर्षि नारद पर नारद पुराण,नारद स्मृति, नारद और भक्ति सूत्र ये हमारे शास्त्रों के बहुत महान ग्रन्थ है| देवर्षि नारद दार्शनिक, संगीतज्ञ और योगी है, उनके रचे पांच ग्रंथों नारद पुराण, नीरद स्मृति, नारद पंचरात्र, नारद भक्ति सूत्र और नारद श्रुति की सवर्त्र चर्चा है। नारदीय परम्परा, पत्रकारिता के उन्हीं आदर्शों में है जिन्हें नारद ने युगों पहले जन कल्याण के लिए स्थापित किया था|

नारद सब लोकों की खबर रखते थे और उन्हें जन-जन तक पहुंचाते भी थे| लेकिन उनका खबर प्राप्त करने और उसे संप्रेषित करने का उद्देश्य बहुत स्पष्ट था लोकमंगल की भावना| सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विधाओं में, समाज के सभी वर्गों में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है|मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है समय -समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है|

देवर्षि नारद ने ‘वीणा’ नामक वाद्य यंत्र का आविष्कार किया संगीत शास्त्र के श्रेष्ठ ज्ञाता थे नारद जी के अनुसार सन्देश – वक्ता, श्रोता एवं कथन है यही सूत्र पत्रकारिता का सार है| देवर्षि नारद ने सती द्वारा दक्ष के यज्ञ कुंड में शरीर त्याग ने की सूचना सर्वप्रथम भगवान शिव को दी|

देवर्षि नारद की पत्रकारिता अध्यात्म पर आधारित थी उन्होंने स्वार्थ,लोभ एवं माया के स्थान पर हमेशा परमार्थ को श्रेष्ठ माना|

नास्ति तेषु जातिविधारूपकुलधनक्रियादिभेद: ||
अर्थात् जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, कार्य आदि के कारण भेद नहीं होना चाहिए|

किसी भी जगह देवर्षि नारद आगमन किसी खास उद्देश्य से, उनकी अपनी वीणा एवं नारायण – नारायण के भजन के साथ होता है।
मेरा लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता जगत के सभी कर्णधारों से प्रश्न भी है कि क्या आज हम पत्रकार उन मूल्यों की पत्रकारिता कर पा रहे हैं जो गुरु नारद हमें सौंप गए हैं?

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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