(रतन सिंह असवाल की कलम से)
वैश्विक महामारी COVID19 के कारण 23 मार्च से पूरे भारत को लॉकडाउन कर दिया गया है । हमारे राज्य की यदि बात करे तो प्रथम और द्वितीय चरण में राज्य के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में पुलिस और जिलों के प्रशासन ने डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारियों और अन्य जिम्मेदार अधिकारी की टीम ने लॉकडाउन के दोनों चरणों को बड़ी ही होशियारी और कर्तव्यनिष्ठा से अंजाम तक पहुचाया ।
देखा गया कि एक तरफ राज्य के पर्वतीय जनपदों के नागरिकों ने लॉकडाउन के दिशा निर्देशों का पूरी ईमानदारी पालन किया वहीं दूसरी ओर शहरी आबादी ने अपना शहरी आचरण दिखाने में कोई कोताही भी नही बरती ।
यह किसी से छुपा नहीं है कि 23 मार्च से आजतक लागू लॉकडाउन में सबसे ज्यादा हल्ला महानगरीय लोगों ने ही मचा रखा था। वैश्विक महामारी को भी एक सामान्य बीमारी के रूप में वे शायद देख रहे हों या रूपयों से हर इलाज कराया जा सकता है यह मुगालता उनको हो..।
ऐसी आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। यह किसी से छुपा नहीं है कि राज्य के अधिकतर परिवारों से कोई न कोई सदस्य रोजी-रोटी या पढ़ाई-लिखाई के लिए घर से बाहर किसी अन्य राज्य के शहरों में जाते ही हैं। हर किसी को अपनों से प्यार और उनकी चिंता करना मौलिक अधिकार ही नहीं प्रकृति परद्दत नैसर्गिक स्वभाव भी है ।
महानगरीय जनता द्वारा सरकार पर जिस प्रकार का दवाब बनाया गया या वर्तमान में बनाया जा रहा है वह किसी से छुपा भी तो नहीं है। इसी दवाब के कारण सैकडों लोगों को विभिन्न नगरों से राज्य में लाया गया और बिना सामुदायिक क्वारन्टीन के उनके घरों में परिवार के साथ भेज दिया गया। मैं यह नही मानता कि घरों में क्वारन्टीन के सरकारी प्रवधानों का अक्षरश अनुपालन नहीं किया जा रहा होगा लेकिन कर कितने लोग पा रहे होंगे ? यह कौन बता सकता है या कौन मॉनिटर कर रहा होगा।
महानगरीय संभ्रांत नागरिकों की देखा देखी राज्य की ग्रमीण जनता ने भी सरकार और अपने जनप्रतिनिधियों पर विभिन्न स्थानों में फंसे अपनों को वापस लाने का दवाब बनाना शुरू कर दिया ।
गांवो की यदि बात की जाय तो देखने वाली बात यह है कि लॉकडाउन के प्रथम और द्वितीय चरण की अवधि में ग्राम प्रधान और आशा बहनजी ने स्थानीय प्रशासन के दिशा निर्देशों पर स्थिति को बहुत बढ़िया ढंग से संभाल रखा था। तीसरे चरण में राज्य के अधिकतर जिले ग्रीन जोन घोषित कर दिए गये। फिर क्या था, सर्जिकल मास्क लेकर बड़ी गाड़ियों से वोटखोर सड़क से सटे कस्बों/ नगरों के साथ अपने चेलों के सड़क किनारे वाले गांव में देखे जाने लगे और स्थानीय प्रशासन व लोकतंत्र की प्रथम इकाई के कामों को अपने हिसाब से प्रभावित करने लगे। जब बड़े जनप्रतिनिधियों के क्षेत्रों में भ्रमण करने का पता लोगों को चला तो उन्होंने भी अपने परिवार के सदस्यों को वापस लाने का दवाब बनाया और राज्य सरकार ने जनता की भावनाओं को समझते हुए बाहरी राज्यों में फंसे राज्य मूल के लोगों को वापस अपने राज्य में लाने की महत्वपूर्ण कवायत शुरू कर दी ।
यहां तक तो सब ठीक था। अपनों के घर वापसी के त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के प्रयासों की खुले मन से तारीफ की जानी चाहिए । डेढ़ माह के लॉकडाउन को इतने बढ़िया ढंग से हैंडिल करने के बाद होम क्वारन्टीन के फैसले पर बड़ी चूक कर गई सरकार। पिछले एक सप्ताह के कोरोना पॉजिटिव की लिस्ट पर नजर दौड़ाएं तो उनकी संख्या अधिक है जो अन्य राज्यों से सीमाएं सील होने के बाद भी राज्य में प्रवेश कर गए । तो सरकार ने होम क्वारन्टीन जैसा इतना बड़ा जोखिम किन लोगों और किस मजबूरी में लिया होगा ।
मैं व्यक्तिगत रूप से राज्य के पर्वतीय जनपदों की ग्रामीण जनता से सीधे जुड़ा हूं । होम क्वारन्टीन जैसे संवेदनशील निर्णय से ग्रमीण जनता के मन मे तरह- तरह की आशंकाएं उत्पन्न हो रही हैं और हों भी क्यों नही…?
राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य व्यवस्था के हाल किसी से छुपे भी तो नही हैं । राजनीतिक लालशा वाले लोग तो आपदाओं में वोट की रोटी सेकते आये हैं और रहेंगे भी लेकिन राज्य की #नौकरशाही का विवेक इस नाजुक निर्णय के समय कहा गया होगा यह सोचने वाली बात है । 1918 के स्पेनिश फ्ल्यू , अकाल के बाद के हालातों,केदारनाथ आपदा, भूकंपों में हुई मानवीय क्षति के आंकड़े तो राज्य की नौकरशाही के पास होंगे ही …
भगवान न करे वैसे हालातों से नई पीढ़ी को दो चार होना पड़े। इसके लिए सरकार को कड़े और सर्वजन प्रभावी कदम उठाने होंगे और बाहरी राज्यों से राज्य में प्रवेश करने वालों की पूरी मेडिकल जांच के और सरकार की निगरानी में ही भारत सरकार व राज्य सरकार के दिशा निर्देशों के अनुरूप ही क्वारन्टीन किया जाना मानव जाति के हित में होगा ।
मानव क्या संसार के हर प्राणी को अपने जातक प्यारे होते हैं । किसी अदृश्य आशंका के भय से ही वह अपने परिवार के हर सदस्य को अपने पास ही देखना चाहता है लेकिन मानव जाति का अस्तित्व तो तभी बचेगा जब हम सुरक्षित रहेंगे । इसलिए मैं व्यक्तिगत रूप से सरकार की निगरानी में क्वारन्टीन को सही मानता हूं । होम क्वारन्टीन ग्रमीण लोगो के आपसी भाई चारे को भी प्रभावित कर सकता है । मेरा निजी मत है कि शासन को इस बिंदु का भी परीक्षण लोकतंत्र की प्रथम इकाई के माध्यम से कर लिया जाना चाहिए।
समय रहते सहानुभूति पूर्वक होंम कोरन्टीन जैसे संवेदशील निर्णय पर सरकार को एक बार पुनः विचार जरूर करना चाहिए । मानव के अस्तित्व के लिए हर इंसान का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है । यदि सामुदायक दूरियों से वैश्विक महामारी कोरोना पर विजय हासिल की जा सकती है तो सामुदायिक क्वारन्टीन से परहेज क्यों ?