(मनोज इष्टवाल)
शायद यह बात मेरे दिल की दिल में ही रह जाती क्योंकि न आज तक इस बात को मैं ही सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी से पूछ पाया था और न ही मेरे जैसे कई और…! नरेंद्र सिंह नेगी जी पर हमेशा ही यह आरोप कई लोग मढ़ते आये हैं कि वे इतने प्रोफेशनल हैं कि कभी बिना लिए दिए किसी मंच पर नहीं चढ़ते। आज यह भरम भी टूट गया उनके इस साक्षात्कार के साथ जिसका नाम है- “गीत भि..गीत कि बात भि।”
यह किस्सा लगभग 35 बर्ष पुराना है जब लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी अपने मित्र आकाशवाणी नजीबाबाद के निदेशक चक्रधर कंडवाल जी के साथ विकासखण्ड द्वारीखाल के ठंठोली गांव रामलीला देखने पहुंचे। नरेंद्र सिंह नेगी बताते हैं कि ठंठोली रामलीला में पहुंचे लोगों ने उनसे अनुरोध किया कि वे एक गीत मंच से जरूर सुनाए।
तब पहाड़ से इतना पलायन तो नहीं हुआ था लेकिन पलायन की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। तेजी से परिवेश बदलने लगा था क्योंकि अब सासू की जगह ब्वारियों (बहुओं) का जमाना आ गया था। बदलते परिवेश पर समसामयिक गीतों की रचना के लिए नेगी जी वैसे भी कलम के धनि हैं। उन्होंने इसी दौरान तैयार की हुई रचना “कनु लड़िक बिगड़ी म्यारु सैंती पालि की।” रामलीला के मंच से गायी तो स्वाभाविक है लोगों ने पसन्द किया होगा।
आइये नेगी जी से ही पूरी बात सुन लेते हैं कि कैसे हुई इस गीत की शुरुआत:-