Saturday, October 19, 2024
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ट्विन वैली जहां सूर्योदय-सूर्यास्त व चन्द्रोदय देखना किसी जन्नत से कम नहीं। महाबगढ़ की परछाई दिखती है हरि की पैड़ी में।

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 18 मार्च 2020)

*हिमालय दिग्दर्शन यात्रा 2020। ढाकर यात्रा भाग-1


ट्विन वैली रिसोर्ट में दोपहर भोज निबटाकर हम लगभग सवा तीन बजे तैयार होकर महाबगढ़ के लिए निकल पड़े। यहां से महाब गढ़ बमुश्किल एक से डेढ़ किमी की दूरी पर अवस्थित है। महाब गढ़ तक पहुंचने के लिए हमें लगभग 250 मीटर पैदल ट्विन वैली रिसोर्ट से नीचे सड़क में उतरना होता है, जहां से लगभग 500 मीटर सड़क मार्ग तय कर हम महाब गढ़ के द्वार तक पहुंचाता है। यहां पर कुल जमा 6 दुकानें हैं जिनमे जरूरत का सारा सामान उपलब्ध है। दो एक ठेली हैं जिसमें पूजा सामग्री मिल जाती है व एक कालू झबरू व दो अन्य मोटे कुत्ते आपके स्वागत में दुम हिलाते मिल जाएंगे। अब उनकी आँखों में उस प्यार को आपको जरूर देखना चाहिए जो प्रसन्न कर देने वाला है। इन्हें बस बदले में बंद या बिस्कुट खिला दीजिये तो स्पष्ट है ये आपके साथ-साथ सहयात्री बन गढ़पति भांधौ असवाल के महाब गढ़ तक आपके साथ साथ चल देंगे।

लगभग 750 मीटर से कुछ ज्यादा चलने के बाद आप 6661 फिट ऊंची महाबगढ़ चोटी पर अवस्थित शिवालय तक पहुंचते हैं जहां आपको आदिदेव महादेव की प्रतिमूर्ति के रूप में लिंग, माँ झालीमाली का मंदिर व अन्य मंदिर, नाथ सम्प्रदाय की धुनि जिसे जोगधुनि भी कहते हैं मिलेगी व साथ में कुछ धर्मशालायें व एक चायपानी की दुकान। यह तब आश्चर्यजनक लगा जब यहां के लोगों ने जानकारी दी कि हर बर्ष यहां हाथियों का झुंड महाबगढ़ की परिक्रमा के लिए पहुंचता है। यह अविश्वसनीय लगा लेकिन हाथियों की लीद ने अविश्वास को विश्वास में बदल दिया। यहां एक स्थान हाथी थान भी है जो साक्ष्य प्रस्तुत करता है।

रास्ते भर मुझे अधिवक्ता अमित सजवाण जी से अच्छा जानकारी वाला कहां मिल सकता था। हिमालय दिग्दर्शन टीम के फोटोजर्नलिस्ट हिमांशु बिष्ट ने मेरी आँखों भाषा समझते ही अमित सजवाण जी व मुझे वन टू वन लेना शुरू कर दिया ताकि जब हम इस यात्रा वृत्त का दस्तावेजीकरण करें तो उसके सपोर्ट में विजुअलाइजेशन मजबूती से दस्तावेजों की सहायक सामग्री बन सके। सजवाण जी पूर्व में भी इस क्षेत्र को एक नहीं बल्कि दो बार खंगाल चुके हैं व उनके द्वारा जुटाई गयी जानकारियां यकीनन आने वाले यात्रा वृत के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाली हैं।

ध्यानमग्न गणेश काला जी, महाबगढ़ मन्दिर व महाबगढ़ मन्दिर परिसर में हिमालय दिग्दर्शन की ढाकर यात्रा टीम।

मन्दिर के दाएं छोर पर कभी न चलने वाला बीएसएनएल का ऊंचा टावर भी है जी मन्दिर की सारी खूबसूरती को समाप्त कर रहा है । हाँ….इतना जरूर है कि अगर आपको चरेख या आस पास की श्रेणियों या टिहरी गढ़वाल की श्रेणियों व कोटद्वार भावर, नजीबाबाद मोरध्वज से महाबगढ़ का अनुमान लगाना होगा तो आप आसानी से इस कभी न चलने वाले बीएसएनएल के टावर से पता कर सकते हैं कि महाब गढ़ है कहाँ।

यह आश्चर्यजनक लेकिन सत्य था कि मंदिर के पुजारी का घोड़ा हमें सड़क मार्ग पर दिख गया था व पुजारी पण्डित राधेलाल कुकरेती जी एक दुकान में विराजमान। लेकिन पुजारी जी में क़तई इस बात का लालच नहीं दिखा कि लगभग डेढ़ दर्जन से ज्यादा भक्तगण मन्दिर में जा रहे हैं तो स्वाभाविक तौर पर दक्षिणा या चढ़ावा खूब चढेगा। उन्हें मैंने व्यक्तिगत आग्रह भी किया- आइये, हम आपके लिए ही यहां तक आये हैं लेकिन पुजारी जी का जबाब था! मिल क्य कन अब त मेरु घार जाणकु टैम च। मन्दिर खुला च आप लोग दर्शन करि ऐजावा। (मैं क्या करूँ। अब मेरे घर जाने का समय है। मन्दिर खुला है आप दर्शन कर आओ)!

मन्दिर के मुख्यद्वार पर हम श्रद्धापूर्वक जूते उतारकर मन्दिर परिसर में दाखिल हुए जहां अधीनस्थ सेवा चयन आयोग उत्तराखण्ड के सचिव संतोष बडोनी जी ने बतौर गाइड की भूमिका निभाई। उन्होंने मन्दिर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पहले यहां बहुत बड़ा मेला लगता था।

मन्दिर के प्रवेश द्वार से अंदर जब मैंने प्रवेश किया तो पाया प्रवीण कुमार भट्ट अपना पेशेवर कार्य अर्थात चन्दन घिसने का काम कर रहे हैं व साथ ही श्रीमती कुसुम बहुगुणा हाथ जोड़े इंतजार कर रही हैं कि कब वह चन्दन उनके मस्तक पर विराजमान होगा, लेकिन हुआ एकदम उलट…! महादेव की कृपा से प्रवीण भट्ट जी की तीन अंगुलियां मेरे मस्तक पर चंदन लेप गयी। मैंने भी पूरी श्रद्धा के साथ हाथ में थामा नारियल भगवान महाब शिब के श्री चरणों में अर्पित किया व साथ में पुजारी जी की दक्षिणा भी…!

मन्दिर के पृष्ठभाग में हिमांशु बिष्ट का कैमरा ठाकुर रतन सिंह असवाल के जज्बातों से बात करता नजर आया। साथ ही संतोष बडोनी जी भी आस-पास के क्षेत्र के बारे में टिप्स देते नजर आ रहे थे। जिन्हें बेहद उत्सुकता के साथ सुनने वालों में गणेश काला जी, अजय कुकरेती जी,नितिन काला, कृष्णा काला सौरव असवाल, प्रणेश असवाल सहित कुछ अन्य ढाकरी भी थे। मुकेश बहुगुणा उर्फ मिर्ची बाबा अपनी रौ में कभी फोटोग्राफी करते तो कभी मन्दिर सम्बन्धी जानकारियों के वीडियो क्लिप खींचते हुए वॉइस ओवर कर रहे थे। इस समय मुझे दिनेश कंडवाल जी की कमी खल रही थी। आखिर उनके अंदर का कामरेड कभी कभी जिंदा हो ही जाता है। वे ट्विन वैली रिसोर्ट में ही रुक गए थे।

महाब गढ़ के साथ एक नाम हमेशा ही जुड़ा रहा जो गढ़वाल नरेश का पश्चिमी सबसे दूरस्थ का सीमावर्ती गढ़ रहा है व यह मैदानी भूभाग पर नजर रखने का ऐसा दुर्ग माना जाता है जिसके गढपत्ति भांधौ असवाल के पराक्रम और शौर्य की गाथाएं स्वर्णिम इतिहास के पन्नो में दर्ज हैं।

इस उतुंग शिखर के समक्ष दूर दूर तक फैली मध्य हिमालय व निम्न हिमालयी शिखर बेहद बौनी नजर आती हैं। जिसके दांयी ओर चक्रवर्ती राजा भरत का जन्म स्थल भरतपुर, धूरा-मवासा गांव पृष्ठ भाग तो नहीं लेकिन दक्षिणोत्तर में जोगी धरडा व लगभग पृष्ठ भाग में सियापानी, बांये हाथ पर हाथी थान, स्यालनी, जौरासी गांव, सेमलना-धूर-केष्टा गांव, मुख भाग पर घमतपा, स्यालकंडी वल्ली-पल्ली इत्यादि हैं।

हेमकूट व त्रिकुट शिखर के साथ मणिकूट शिखर माला के रूप में मालिनी, रवासन, व गंगा नदियों से घिरे इस पर्वत माला की महाब गढ़ शिखर के बारे में संतोष बडोनी जी जानकारी देते हुए बताते हैं कि यह क्षेत्र कई ऋषि मुनियों की तपस्थली रही है जिनके नाम से यहां आज भी गांव व क्षेत्रों के नाम हैं, जैसे भृगु ऋषि के नाम से भृगुखाल, महाब ऋषि के नाम से महाब गढ़, कश्यप ऋषि के नाम से कस्याळी, कण्व ऋषि के नाम से कीमसेरा इत्यादि। यह क्षेत्र जिम कॉर्बेट पार्क व राजाजी नेशनल पार्क की आपसी सीमाएं भी बांटता है। महाबगढ़ के बिल्कुल सामने अमोला गांव, कचुंड, बणास, देवरणा, मुणगांव व किमसार गांव हैं।

गढपति भांधौ असवाल कैसे राणेसा दुर्ग से महाबगढ़ पहुंचते थे यह जानकारी आश्चर्यजनक है। इस जिक्र अभी आगे करेंगे फिलहाल हमें सूर्यास्त से पहले ट्विन वैली रिसोर्ट लौटना था। जहां के बारे में उसके संचालक प्रशांत बडोनी पहले भी बता चुके थे। यहां सूर्योदय व सूर्यास्त ही नहीं बल्कि चन्द्रोदय भी लाजवाब हो। उनका दावा है कि यहां से जो चन्द्रोदय है वह विश्वभर में कहीं और भी होता होगा उन्हें यकीन नहीं होता।

खैर शाम को हमारे फोटोजर्नलिस्ट हिमांशु व प्रणेश अपने अपने कैमरों को सूर्यास्त की ओर स्टैंडबाय करके बैठ गए। जहां फिलहाल गंगा नदी हरिद्वार के हरि की पैड़ी क्षेत्र से रेत की नदी जैसी चमक रही थी। मुझे ध्यान आया कि महाबगढ़ की चर्चा के दौरान संतोष बडोनी जी ने बताया था कि सूर्योदय के समय जो सूर्य की प्रथम किरण गंगा जी पर पड़ती है तो साथ में हरि की पैड़ी में महाबगढ़ की प्रतिछाया भी पड़ती है।

ट्विन वैली रिसोर्ट के सूर्योदय पॉइंट पर हिमालय दिग्दर्शन की ढाकरी टीम।

बहरहाल सूर्य रक्तिम हुआ। कैमरे व मोबाइल्स की आवाज क्लिक-क्लिक करने लगी लेकिन हार्ड लक कुछ ही देर में बादलों ने सूर्य को सूर्यास्त होने से पहले ही अपनी ओट में ले लिया। शानदार डिनर व बॉन फायर के लुत्फ के पश्चात हम अपने-अपने बिस्तरों में कैद हो गए।

सुबह लगभग पौने पांच बजे सन्तोष बडोनी जी की आवाज उभरी सूर्योदय होने वाला है। मेरे साथ कमरे में मौजूद ठाकुर रतन सिंह असवाल, दिनेश कंडवाल व प्रवीण भट्ट ने चटपट बिस्तर छोड़ा सूर्योदय पॉइंट पर पहुंच गए। मैं बिस्तर छोड़ने में हमेशा कंजूसी करता हूँ। लगभग सवा 6 बजे मैं भी उस पॉइंट पर जा पहुंचा जहां सूर्योदय के लिए हिमालय दिग्दर्शन यात्रा के ढाकरी खड़े सूर्योदय की दिशा में आंखें गढ़ाए थे। थोड़ी देर में ट्विन वैली रिसोर्ट का कर्मी गर्मागरम चाय व बिस्कुट लेकर हाजिर हो गया। हम चाय की चुस्कियों के साथ उस रक्तिमा को निहार रहे थे जो सूर्य की धरती पर उतरने व भोर के रुमझुम अंधेरो को मिटाने की जद्दोजहद नजर आ रही थी। सूर्य ने हिमालय की ओट से जैसे ही अपनी रक्तिम किरणे फैलाई सभी के मुंह से वाह निकल पड़ी।
यकीनन यह अद्धभुत है। यह कमाल का व्यू पॉइंट है जहां से हिमालय का विशाल साम्राज्य दिखता है। वाह…प्रशांत बडोनी जी। वाकई यह ट्विन वैली रिसोर्ट एक बेहद खूबसूरत लोकेशन पर अवस्थित है।
क्रमशः……!

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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