पहला पड़ाव…..कण्वाश्रम से भरतपुर (महाबगढ़)!
(मनोज इष्टवाल 28 फरवरी 2020)
हिमालयन दिग्दर्शन यात्रा आपको एक ऐसे ट्रैक पर ले जायेगी जो कभी ढाकर मार्ग से जुड़ा भी था या नहीं, यह कहना सम्भव नहीं हैं लेकिन यह जरुर कहा जा सकता है कि इसकी शुरुआत हम राजा रिपुदमन की कर्मस्थली से करेंगे जो बाद में चक्रवर्ती सम्राट भरत कहलाया व जिसके नाम से सम्पूर्व आर्यवर्त भारत बर्ष कहलाया! राजा कण्व की दत्तकपुत्री शकुन्तला ने इसी कण्वाश्रम में भरत जिसका नाम ऋषियों ने रिपुदमन रखा था, लालन-पालन किया! ब्रह्मा के पुत्र अंगीरा, अंगीरा के पुत्र स्वरथ, स्वरथ के छ: पुत्रों में एक घोर के पुत्र कण्वा ऋषि हुए जिनके नाम से कण्वाश्रम पड़ा!
उत्तरं यत्र समुद्रस्य, हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम! वर्षम तद भारतं नाम:, भारती यत्र सन्तति:!! (बिष्णु पुराण II,३.१)
“समुद्र के उत्तर में तथा हिम से ढके पर्वतों के दक्षिण में स्थित वह भू-भाग है जहाँ राजा भरत के वंशज निवास करते हैं!”
प्रस्थे हिमतो रम्ये मालिनीममितो नदीम् । जातमुत्सज्यन्त गर्भ मेनका मलिनिमनुः।
अस्तवयं सरवदमनः सर्वहि दमयत्सौ । स सर्व दमनो नाथ कुमार सम्पदधतः ।। (महाभारत सम्भवपर्व ७२)
“अत्यन्त ही सुन्दर हिमवत का अन्तिम प्रदेश है जहॉ की पवित्र मालिनी के तट पर मालिनी अनुस्वरूप मेनका के गर्भ से उत्पन्न शकुन्तला ने एक शिशु को जन्म दिया है । उस के तेज तथा उसकी सब को दमन करने के कारण आश्रमवासियों ने उसका नाम सर्वदमन रखा दिया। “
महाभारत सम्भवपर्व में वर्णित इस श्लोक से ज्ञात होता है कि तब कण्वाश्रम मात्र आज के कण्वाश्रम तक ही सीमित नहीं रहा होगा बल्कि इसका विस्तार मालिनी नदी के उद्गम से शुरू हुआ होगा! कहा जाता है कि महाबगढ़ के पास भरत का जन्म हुआ इसीलिए वहां का नाम भरतपुर रखा गया! इसके साक्ष्यों की अभी तक कितनी जांच हुई है यह कह पाना सम्भव नहीं लेकिन हिमालयन दिग्दर्शन यात्रा के संयोजक रतन सिंह असवाल का मानना है कि हम “ढाकर” शब्द को अपने पौराणिक काल से जोड़ते हुए कण्वाश्रम से महाबगढ़ भरतपुर तक अपने पहले दिन की यात्रा करेंगे! पहला पड़ाव हमारा भरतपुर होगा जहाँ से हम अगले पड़ाव के लिए कांडीखाल जायेंगे!
इस यात्रा पर हम 18 से 22 मार्च को राजाजी नेशनल पार्क के उस हिस्से से गुजरते हुए निकलेंगे जो डाकू सुल्ताना भांडू का हरिद्वार से लेकर भावर क्षेत्र या फिर कण्वाश्रम से राजा जगदेव पंवार के खंडहर महल व मंदिर से होकर चरेख ऋषि का चरेख डांडा ट्रेक रूट होकर जायेंगे! जहाँ तक मुझे लगता है हमारा “ढाकर” कण्वाश्रम-चरेखडांडा-किमसेरा-सौंटियालधार-स्योपानी-महाबगढ़ होकर भरतपुर होगा!
महाबगढ़……! अर्थात शिव का स्थान! जहाँ का सर्वोच्च गढ़पति भंधो असवाल था! जिसके बारे में कहा जाता था कि वह एक समय में एक दूण चावल, आठ सेर दाल व दो पाथा आटे की रोटी खा जाया करता था! उसे वीरों में महावीर कहा जाता था! सन 1500 से लेकर 1510 तक उसका गढवाल के सीमान्त भावर तराई क्षेत्र पर एकछत्र राज था! यह एक अजय दुर्ग था जहाँ से आप कोटद्वार भावर से लेकर नजीबाबाद बिजनौर तक नजर रख सकते हैं! सन 1509 ई. में राजा अजयपाल ने एक बड़ी सेना के साथ उप्पूगढ़ के गढ़पति कफ्फु चौहान को महाबगढ़ फतह के लिए भेजा था ऐसा अक्सर किंवदन्तियों में कहा सुना जाता है! कहते हैं बिना युद्ध के ही भंधो असवाल ने राजा अजयपाल की मैत्री पूर्वक संधि कबूल कर ली थी लेकिन इसमें राजा अजयपाल को षड्यंत्र की बू आई व उन्होंने उप्पू गढ़ के कफ्फु चौहान को भी अधीनता स्वीकार करने का फरमान भेजा लेकिन उस वीर ने युद्ध उचित समझा व एक षड्यंत्र का शिकार हो मारा गया!
भंधो असवाल के महाबगढ़ व चक्रवर्ती राजा भरत के भरतपुर में बिश्राम कर हम अगले पड़ाव के लिए 19 मार्च 2020 को प्रस्थान करेंगे!
क्रमश…!