डाॅ. अरुण कुकसाल
सामाजिक सरोकारों के अग्रणी, सफल प्रशासक, योग्य अध्येता, कुशल अन्वेषक, विद्वत इतिहासकार डाॅ रघुनंदन सिंह टोलिया आज हमारे बीच नहीं है। लेकिन हमारे पास आज उनकी यादों और उनके लिखे साहित्य का अदभुत खजाना है। जो हमें अपने जीवन के कर्तव्य पथ पर उनके विचारों और सपनों को साकार करने की नित्य प्रेरणा और स्फूर्ति प्रदान करते है। यह प्रेरणा और स्फूर्ति हमेशा हर हिमालयवासी के मन-मस्तिष्क में सजीव रहे इसके लिए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के आत्मीय स्पर्श को आगे की पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम आज हम-सब बने हैं।
हम-सब यह भलीभांति जानते हैं कि डाॅ. टोलिया जी का ओढ़ना-बिछौना, उठना-बैठना, सुबह-शाम हर वक्त उत्तराखण्ड विकास के लिए प्रयास और चिन्तन करना था। वो हम सब हिमालयवासियों के अभिभावक थे। पहाड़ की सभी संस्थाओें में उनकी मार्गदर्शी भागेदारी रहती थी। उत्तर प्रदेश में पर्वतीय विकास सचिव रहते हुए वे पहाड़ के विकास के लिए उत्तराखण्ड राज्य के आज के संपूर्ण शासन-प्रशासन से कहीं ज्यादा प्रतिबद्ध, सशक्त, प्रभावी और सक्रिय थे। उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वे सामने वाले व्यक्ति में सकारात्मक सोच के साथ नयी ऊर्जा का संचार कर देते थे।
उत्तराखण्ड राज्य की नींव मजबूत हो, यह राज्य सही दिशा में सर्वागींण प्रगति करे इसके लिए उनकी दिन-रात की प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत किसी से छुपी नहीं है। अपने कदमों से गढ़वाल-कुमायूं के हर हिस्से को उन्होनें नापा, पहचाना और वहां विकास की संभावनाओं को तलाशा और उसे अमली जामा पहनाया। आम आदमी, कर्मचारी और अधिकारियों से अपनेपन, सहजता, सरलता से मिलना, उनकी परेशानियों को समझना और उनका त्वरित निदान उनके शासकीय कार्यों को करने का प्रभावी अंदाज था। याददाश्त के वे धनी थे। असहज स्थिति को कैसे सहज किया जाता है, ऐसा कई बार हमने उनसे सीखा। रोज 16 घंटे काम करने के बाद भी उनके चेहरे पर मुस्कराहट चमकती रहती। कई दिनों व रातों के लम्बे टूर पर राह चलते कहीं किसी नुक्कड पर खुद ही समोसे लाकर खाते-खिलाते हुये उनका सरकारी कांरवा आगे बढता रहता था। राज्य बनने के बाद की उपलब्धियों को वो हर समय बताते रहते। यह जानते हुए भी राजनेताओं और अधिकारियों का एक बड़ा तबका उनसे असहमत से बढ़कर हमेशा खिलाफ रहता था। वो वाकिफ थे कि राज्य में कई स्तरों पर गलत परिपाटियों ने अपनी मजबूत जड़ें जमा दी हैं। ‘उनसे सीधे टकराने के बजाय सच्चे कर्मवीर बनकर अपना काम करते रहो’, यह धारणा लिए वे निष्फिक्र हो जाते थे।
उत्तराखंड राज्य के तीसरे मुख्य सचिव के बाद प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल ने उनकी योग्यता, कार्यक्षमता, प्रतिबद्धिता और दूरदर्शिता को और भी गरिमा प्रदान की। ‘सूचना के अधिकार’ को आम जन में लोकप्रिय बनाने एवं सरकारी अभिकर्मियों को प्रशिक्षित कराने के लिए उनके द्वारा विकसित एवं प्रकाशित साहित्य की प्रासंगिकता और उपयोगिता उत्तराखण्ड से बाहर देश के अन्य राज्यों में भी मार्गदर्शी की भूमिका में लोकप्रिय है।
सरकारी सेवा से निवृत होकर अपने पैतृक इलाके में स्थिति मुनस्यारी में उन्होने अपना ‘थोलिंग निवास’ बनाया। मुनिस्यारी में रहते हुए स्वःअध्ययन और चिन्तन के साथ-साथ अपने सामाजिक दायित्वों से वे परे नहीं हटे। वरन और भी गम्भीरता से उसमें तल्लीन हो गये। अपनी पैतृक सामाजिक जड़ों में जीवन के संध्याकाल में उनके वापस लौटने का सुखद अहसास हम सबने महसूस किया था। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ उन्होने क्षेत्रीय लेखन से कभी नाता नहीं तोड़ा। हिमालयी साहित्य पर ‘बिट्रिश कुमाऊं-गढ़वाल (2 खण्ड)’, ‘द मरतोलिया लाॅज’, ‘जोहार का इतिहास’, ‘नैन सिंह रावत-अध्यापक, प्रशिक्षक व लेखक’ और ‘धामू बुढ़ा के वंशज’ उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं।
देहरादून में 15 नवम्बर, 1947 में जन्मे और देहरादून में ही 6 दिसम्बर, 2016 में दुनिया से अलविदा होने की 69 वर्षों की उनकी सांसारिक यात्रा अदभुत थी। जीवनभर एक सच्चे हिमालय पुत्र होने का उन्होने फर्ज निभाया। वे बता गये कि सफलता की वैश्विक ऊंचाईयों को हासिल करने के बाद जीवन का सकून तो अपने मूल समाज में लौट कर ही मिलता है। ‘थिंक ग्लोबल एक्ट लोकल’ के वे प्रतिमूर्ति थे। गणित और इतिहास विषयों से परास्नातक यह विद्यार्थी ताउम्र निरंतर अध्ययनशील और घुम्मकड़ी में रहा। उत्तराखण्ड राज्य का सौभाग्य है कि उसके गठन के शुरूवाती दौर के नीति-नियन्ताओं में डाॅ. आर. एस. टोलिया जी का मार्गदर्शन मिला है। आशा की जानी चाहिए कि उत्तराखण्ड में उनके जैसा प्रशासक, नीति-निर्धारक और शिक्षाविद नयी पीढ़ी से सामने आयेगा।
डाॅ. रघुनंदन सिंह टोलिया
जन्मतिथि- 15 नवम्बर, 1947
जन्मस्थान- देहरादून
शिक्षा- एम.एस.सी (गणित), एम.ए. (इतिहास) पीएच.डी.
डिप्लोमा इन रूरल सोशियल डेवलपमैंट (रीडिंग यू.के.)
सेवा- भारतीय प्रशासनिक सेवा वर्ष- 1971
प्रशासनिक सेवायें
- उपजिलाधिकारी डुण्डा, लैंसडोन
एवं अन्य पदों पर 1971-1978 - संयुक्त सचिव, भारत सरकार, नई दिल्ली 1978-1982
- निबंधक, सहकारी समितियां, लखनऊ 1982-1983
- जिलाधिकारी, बनारस 1883-1986
- आयुक्त, ग्रामीण विकास
एवं पंचायतीराज, लखनऊ 1986-1987 - गन्ना आयुक्त, लखनऊ 1988-1989
- सचिव एवं आयुक्त, दुग्ध विकास, लखनऊ 1990-1992
- आयुक्त, गोरखपुर मंडल 1992-1992
- सचिव, पर्वतीय विकास विभाग, लखनऊ 1992-1994
- निदेशक, राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, लखनऊ 1994-1995
- आयुक्त, कुमाऊं 1995-1996
- निदेशक, उ.प्र. प्रशासनिक अकादमी, नैनीताल 1996-2000
- प्रमुख सचिव एवं एफआरडीसी, देहरादून 2000-2003
- मुख्य सचिव, उत्तराखंड शासन, देहरादून 2003-2005
- महानिदेशक, प्रशासनिक अकादमी, नैनीताल 2005-2005
- मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयोग, देहरादून 2005-2010
प्रकाशित पुस्तकें
ऽ नैन सिंह, अध्यापक, सर्वेक्षक व प्रशिक्षक
ऽ नैन सिंह रावत एवं जोहार का इतिहास
ऽ धामू बूढ़ा के वंशज
ऽ ‘युग दृष्टा’ बाबू राम सिंह
ऽ जोहार इतिहास- समग्र
ऽ गढ़वाल की भूकम्प त्रासदी
ऽ बिट्रिश कुमाऊं-गढ़वाल (दो भाग)
ऽ फूड फाॅर थाॅट एण्ड एक्सन
ऽ पटवारी, घराट और चाय
ऽ इनसाइड़ उत्तराखंड
ऽ ए प्रैटिक्कल गाइड़- राइट टू इनफाॅरमेशन एक्ट-2005
ऽ ए हैण्डबुक फाॅर द पब्लिक इनफाॅरमेशन आफीसर
ऽ फाॅऊंर्डस आॅफ मार्डन एडमिसट्रेशन इन उत्तराखंड
ऽ सम ऐसपैक्स आफ एडमिसट्रैटिव हिस्ट्री आफ उत्तराखंड
ऽ ट्रांस्पैरेंसी इन एडमिसट्रैशन
ऽ मल्ला जोहार- हंडेरस इयर ऐगो
ऽ द मरतोलिया लाॅज
ऽ उत्तराखंड फिफ्टीन इयर्स आॅफ डेवलपमैंण्ट
ऽ माणा, मलारी एण्ड मिलम
ऽ ए प्लानिंग फ्रेमवर्क फाॅर द माउटेंन स्टेट आॅफ इंडिया