Saturday, October 19, 2024
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डीजीपी साहब, देखिए आपकी पुलिस क्या जुल्म कर रही है?

(वरिष्ठ पत्रकार गुणानन्द जखमोला की कलम से)

  • जिस पर जुल्म हो रहे उसे ही गुनाहगार ठहरा रही पुलिस।
  • कोटद्वार पुलिस ने समस्त मानवीय संवेदनाओं की हत्या की।
  • कोटद्वार की संगीता की दुखःभरी दास्तां सुनकर आप रो पड़ोगे, डीजीपी साहब।
  • प्यार कर शादी की, दिल भर गया तो जला दिया, तब भी पीछा नहीं छूटा तो रोज मारपीट करता है।

कोटद्वार की संगीता की कहानी से आज की उन युवतियों को सबक लेना चाहिए जो प्यार के घरौंदे बसाना चाहती हैं। यह ठीक है कि हर कोई संगीता जैसी बदकिस्मत नहीं होती, लेकिन सबक तो लिया जा सकता है। यह कहानी प्यार से परवान चढ़ी और अब थाने-कोर्ट कचहरी तक जा पहुंची। पुरुष तो बेवफा होता है और जुल्म महिला को सहना पड़ता है। सारे सामाजिक बंधन भी उसी के लिए हैं।

संगीता गुसाईं की कहानी पौड़ी गढ़वाल के एक गांव की शादी से शुरू होती है। दिल्ली में रहने वाली संगीता के पिता निजी ड्राइवर हैं। गांव की शादी में उसकी मुलाकात सतेंद्र से होती है। सतेंद्र कोटद्वार में डीजे का कारोबार करता है। संगीता को सतेंद्र ने पसंद किया और उसके दिल्ली घर चक्कर लगाने लगा। दोनों का प्यार परवान चढ़ा। वर्ष 2015 में दोनों ने शादी कर ली। एक साल भी पूरा नहीं हुआ कि सतेंद्र का दिल भर गया और वह संगीता के साथ मारपीट करने लगा। एक दिन तो हद हो गयी कि उसने चूल्हे पर बैठी संगीता पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी। संगीता बुरी तरह से झुलस गयी। उसकी चेस्ट और गर्दन इसकी गवाही दे रही है। सतेंद्र ने उस पर दबाव डाला कि वो इस घटना को पुलिस को न बताए। गरीब परिवार की संगीता ने पुलिस को दबाव में झूठा बयान दिया, लेकिन इसके बाद सतेंद्र और उसके परिवार ने संगीता का इलाज नहीं कराया। मजबूरन संगीता के पिता उसे दिल्ली ले गये और सफदरजंग अस्पताल में उसका इलाज चला। तब उसने पिता को हकीकत बतायी कि पति सतेंद्र ने उसे जान से मारने की कोशिश की। दिल्ली में हत्या के प्रयास की जीरो एफआईआर हुई। कोटद्वार पुलिस ने सारा ठीकरा दिल्ली पुलिस पर छोड़ दिया। इस घटना की जांच नहीं की।

जब सतेंद्र को दिल्ली में प्राथमिकी दर्ज कराने की बात का पता चला तो वह वर्ष 2017 में दिल्ली पहुंचा और मान-मनोव्वल के बाद संगीता को एक बार फिर कोटद्वार अपने घर ले आया। कुछ दिन ठीक चला और इसके बाद उसका बेटा भी हो गया, लेकिन संगीता की बदकिस्मती तो साथ चलती रही। किसी तरह से जले हुए हिस्से का आपरेशन के खर्च का जुगाड़ किया लेकिन जब देखभाल ही नहीं हुई और न ही इन्फेक्शन से बचाव तो आपरेशन का क्या फायदा होता। इस बीच सतेंद्र फिर अपनी पर आ गया। संगीता के अनुसार सतेंद्र नशा करता है और नशे का कारोबार भी। सो, पुलिस से सांठगांठ है। एक दिन पहले सतेंद्र ने संगीता की डंडे से जमकर पिटाई की। संगीता कोटद्वार मुख्य थाने में गयी तो पुलिस ने उसे खूब हड़काया और उस पर 106, 117 लगा दी है और उसे कल यानी सोमवार को एसडीएम कोर्ट में तलब किया गया है। जबकि उसके पति को तुरंत छोड़ दिया।

ससुराल पक्ष पूरी तरह से सतेंद्र के साथ है। डीजीपी साहब, देखिए, हमें आप पर नाज है लेकिन क्या उत्तराखंड पुलिस की मानवीय संवेदनाएं मर गयी हैं? क्या एक महिला का दर्द उसे नजर नहीं आ रहा? क्या उसकी जली हुई देह पुलिसकर्मियों को नजर नहीं आ रही? उसके शरीर पर डंडों की चोट के निशान नजर नहीं आते। आखिर क्यों? क्या पुलिस इतनी संवेदनहीन है? आप देखिए आपकी पुलिस क्या कर रही है?

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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