Friday, March 14, 2025
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शालोई का ओदीमौण- नाणसेऊ हगाटा की रंजिश पर पंडित शिवराम शर्मा ने लगाया बिराम! टोंस घाटी के राजपूती कुनवों की बर्षों पुरानी रंजिश पर आंडा (दंड)…!

(मनोज इष्टवाल)
ओदीमौण का मतलब ही सामंतों और जमींदारों के आपसी शक्ति प्रदर्शन व अहम के साथ शुरुआत मानी जाती रही है! उत्तराखंड के सीमान्त क्षेत्र अटाल (हिमाचल लगा क्षेत्र) के फेडीज पुल के नीचे से बहने वाली शालोई नदी पर इस मौण का भव्य आयोजन होता था! जिसमें जमींदार व सामन्ती कुनवे अलग-अलग क्षेत्र से आकर मौण मेले में शिरकत करते थे!

फाइल फोटो- अगलाड़ का मौण

यह बात करीब 50-52 पूर्व की होगी, हो सकता है इस से पहले की भी हो या बाद की भी. लेकिन जनजातीय क्षेत्र के कस्बों और खत्तों में ऐसी कई हारुलें आज भी इतिहास दोहराती हैं जिनमें खूनीं रंजिशें तक हुई. उन्हीं हारुलों में नाणसेऊ राजपूत (कांडोई-भरम) बावर व हगाटा राजपूत (बारबीसी हिमाचाल), देऊघार खत्त बावर की प्रचलित हारुल है.

हारुल यह तो बताती है कि 12 गते आषाढ़ में शालोई खड्ड (अटाल/हटाल) में ओदीमौण मेले के आयोजन के लिए कांडोई भरम के सयाणा मोहर सिंह द्वारा आस-पास के गॉव के अलावा हगाटा राजपूत (बारबीसी हिमाचाल),देऊघार खत्त बावर को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन सम्बन्ध मधुर न होने के कारण हगाटा व देऊघार के मुखिया जवाहर सिंह (ग्राम ठन्गाड) ने इसे गंभीरता से लेते हुए थगाड़ में खुमुड़ी बुलाई और तय किया कि पूरे दल बल के साथ कांडोई द्वारा आयोजित शालोई मौण में भागीदारी निभायेंगे!

फिर क्या था गाजे बाजे के साथ टोंस आर के कांडोई भरम खत्त के गॉव अपने जाले कंडे टीमुर लेके शालोई खड्ड चल पड़े जहाँ फेडीज पुल के पास मौण होना था. शालोई खड्ड (शालोई नदी) यहाँ से लगभग आधा किमी की दूरी तय करने के बाद टोंस में विलुप्त हो जाती है.
राजसी जोश दोनों ओर उमड़ा. पहले कौईथौल धार में बन्दूक से फायर हुआ, जवाब में थंगड में फायर हुआ. फिर निगुण धार में फायर हुआ. कहा जाता है कि कांडोई भरम के सयाणा द्वारा ठीक मुहूर्त तक हगाटा राजपूत (बारबीसी हिमाचाल),देऊघार खत्त बावर का इन्तजार किया लेकिन उनका दल अपनी राजसी मस्ती में झूमता हुआ बड़े आराम से आ रहा था. 

सयाणा मोहर सिंह के नेतृत्व में ठीक मुहूर्त पर टीमुर (बज्रदन्ती का चूरा जिससे मछलियों को नशा लगता है और वह अपना स्रोत छोड़कर बाहर निकलती हैं) नदी में उड़ेल दिया गया. जब तक हगाटा राजपूत (बारबीसी हिमाचाल),देऊघार खत्त बावर पहुंचे तब तक कांडोई भरम मौण मेला समाप्त कर टोंस पार अपनी सरहद में पहुँच गया. यह बात हगाटा राजपूत (बारबीसी हिमाचाल),देऊघार खत्त बावर अपनी बेइजती लगी और थगाड़ के सयाणा जवाहर सिंह ने उसी समय फेडीज-क्यारी में पंचायत में ऐलान किया कि मछलियों की जगह हम कांडोई भरम में धाड़ (अचानक/गुपचुप तरीके से) देंगे और वहां की बकरियां ले आयेंगे. उसी रात यह टीम उटरोड़ा से कांडोई की 32 बकरियां चुरा लाये. फिर क्या था दोनों क्षेत्रों में यह दुश्मनी और गहरी हो गयी रिश्तेदारी में भी इसके लक्षण दिखाई देने लगे.

कांडोई वालों ने पूरे एक साल इन्तजार के बाद रिसाणु के हीरा सिंह की न सिर्फ 12 बकरियां चुराई बल्कि जैसे ही हीरा सिंह को भनक लगी व उसने शोर मचाना चाहा कांडोई के लोगों ने उसे रस्सी से बाँध लिया और अपने साथ कांडोई बाँध कर ले आये. हीरा सिंह राजपूत होने के साथ बेहद बहादुर था उसने ललकारा यदि बांधकर लाये हो तो मुझे मार डालो वरना मैं छूट कर वापस गया तो दुबारा आकर कत्लेआम मचाऊंगा. कांडोई वालों ने हीरा सिंह को तो छोड़ दिया लेकिन बकरियां नहीं लौटाई. अब टोंस आर पार दुश्मनी गहरा गयी थी. कांडोई का ज्यादातर व्यापार हिमाचल में था लेकिन टोंस पार जाने का साहस नहीं था.

अंत में एक युक्ति सामने लाइ गयी कि अणु के पंडित शिव राम शर्मा ही इसका फैसला दे सकेंगे. क्योंकि वे तब चरान, चुगान, छूट प्रथा पर पूर्व में भी अभूतपूर्व फैसले ले चुके थे. जौनसार बावर के वे पहले इतने बड़े कृषक थे जिनकी 250 एकड़ जमीन थी. वैसे भी वे माने हुए विद्वान् थे. देहरादून में कांडोई के लोग उनसे मिले और तय तारीख पर यह तय हुआ कि अणु में दोनों धडों को बुलाकर फैसला लिया जाएगा. 

आखिर अणु में दोनों धड़ों की बात सुनने के बाद पंडित शिवराम ने कांडोई वालों पर आंडा ( एक तरह का दंड जिसमें चांदी के छत्तर व बकरा दिया जाता है) लगाया. तब भी कांडोई के लोग हिमाचल जाने को तैयार नहीं हुए तब उन्होंने अपने जेष्ठ पुत्र सूरत राम शर्मा (पूर्व एजीएम एयर इंडिया) को साथ भेजा. ज्ञात होकि पंडित शिवराम शर्मा की मृत्यु बर्ष 2008 में हो चुकी है. वे मूर्धन्य साहित्यकार भी रहे. व अपने क्षेत्र से विधायक का चुनाव भी लडे. उनके छोटे पुत्र पंडित मूरत राम शर्मा भी चुनाव लडे और सामाजिक क्षेत्र में उनका भी इस क्षेत्र में अच्छा नाम है.

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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