(कुसुम रावत की कलम से)
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली एवं पुराना दरबार हाऊस ऑफ आर्कियोलॉजिकल एंड आर्काइवल मैटिरियल कलेक्शन ट्रस्ट देहरादून के संयुक्त तत्वाधान में 16 मई 18 मई 2019 तक चलने वाली त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज कैम्ब्रिन हॉल स्कूल में भव्य उद्घाटन हुआ।
इस अति महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन सूबे के पूर्व मुख्य सचिव एन.एस.नपल्चयाल, शिक्षाविद् एवं नृतत्वविज्ञानी पद्मश्री डा. श्याम सिंह शशी, पूर्व कुलपति डा. सुधा रानी पांडे, प्रसिद्ध जागर गायिका पद्म श्रीमती बसंती बिष्ट, राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के विषय विशेषज्ञ श्रीधर बारिख, पुराना दरबार ट्रस्टी राव कीर्ति प्रताप सिंह और ठाकुर भवानी प्रताप सिंह की उपस्थिति में हुआ। जागर गायिका बसंती पाठक ने प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम की स्तुति को जागर शैली में गाकर कार्यक्रम की शुरूआत की। ठाकुर भवानी प्रताप ने बताया कि यह स्तुति 1750 के आस पास की है। इसकी पांडुलिपी थोकदार महेन्द्र सिंह बर्तवाल के पास सतेरा-स्यूपरी गांव जिला चमोली में सुरक्षित है।
कार्यक्रम में ठाकुर शूरवीर सिंह पंवार द्वारा लिखित एवं इतिहासकार डा. यशवंत सिंह कटौच द्वारा पुनःसंपादित ‘गढ़वाल के प्रमुख अभिलेख’ नामक दस्तावेज का विमोचन हुआ। साथ ही डा. सुदेश ब्याला द्वारा लिखित ‘टहकन जैमिनीयाश्वमेध: एक समग्र अध्ययन’ का भी लोकापर्ण हुआ।
डा. सुधारानी पांडे ने पाडुंलिपियों और भारतीय जन जीवन के रिश्ते पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पांडुलिपी लेखन एक विज्ञान है। उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य जगत के प्रसिद् पाडुंलिपी विशेषज्ञों और विद्वानों के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए प्राचीन बोली भाषाओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने पांडुलिपियों का संरक्षण क्यों जरूरी है और इसके क्या-क्या तरीके हैं इस पर विस्तार से प्रकाश डाला.
डा. शशी सिंह श्याम ने कहा कि सोशल मीडिया के इस दौर में बौद्धिकता खतरे में दिख रही है। बहुत जरूरी है कि आने वाली पीढ़ी के लिए हम किताबों की धरोहर छोड़ कर जायें क्योंकि किताबों का महत्व कभी खत्म नहीं होगा। पाडुलिपियां इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं। उनका संग्रह कर उनके संरक्षण की आवश्यकता है।
एन.एस. नपच्याल ने कहा कि हमें ना सिर्फ चार धामों से जुड़ी पांडुलिपियों को संरक्षित करने की जरूरत है बल्कि हमें जागेश्वर धाम को अपना पांचवा धाम घोषित करने हेतु मुहिम चलानी होगी. साथ ही आदि कैलाश और कैलाश धाम को भी इसके साथ जोड़ना होगा। जागेश्वर धाम12 ज्योर्तिलिंगों में शामिल है पर उसे दक्षिण में अवस्थित होना बताया जाता है। जबकि जागेश्वर धाम को दारूकवन में होना बताया गया है, इसलिए सरकार व स्थानीय लोगों को चाहिए कि वह इसे पांचवें धाम के तौर पर प्रचारित करे। उन्होंने पांडुलिपियों के संरक्षण व अपने बनारस के कार्यकाल के दौरान के हैरान करने वाले अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि कैसे लोग एक दूसरे की सामग्री चुरा, बेचकर या किसी और तरह से उनका दुरूपयोग करते हैं। समाज के विद्वान सभाओं को पांडुलिपियों के संरक्षण व संवर्द्धन हेतु आगे आना होगा। क्योंकि यह हमारा गौरव और धरोहर है. गोष्ठी में बीना बेंजवाल, संदीप बडोनी, डॉ यशवंत कटोच, शिव प्रसाद नैथाणी ने विषय पर अपने व्यापक अनुभवों के आधार पर महत्वपूर्ण व्याख्यान दिये.
गोष्ठी में डा. योगम्बर बर्तवाल, डा. मुनीन्द्र सकलानी, कमला पंत, डा. यशवंत कटौच, डा. एस.सी.ब्याला. रानू बिष्ट , डा. विष्णु दत्त कुकरेती, सुरेन्द्र सिंह सजवाण, असीम शुक्ल, रमाकांत बेंजवाल सहित बड़ी संख्या में सुधी गण मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन बीना बेंजवाल ने किया।
यह बहुत ही जानकारीपूर्ण, महत्वपूर्ण और सारगर्भित संगोष्ठी थी. लेकिन लोगों के बहुत कम भागेदारी ने सच में निराश किया. इस महत्वपूर्ण गोष्ठी के सूत्रधार ठाकुर भवानी प्रताप सिंह और डा. देवेन्द्र सिंह को सफल आयोजन हेतुबधाई! राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन का इस नेक शुरुआत हेतु आभार! उम्मीद है कि शहर के लोग बाकि दो दिनों में चारधाम और पाण्डुलिपियों से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियों का फायदा उठाकर इनके संरक्षण में अपनी भूमिका निभायेंगे.