(मनोज इष्टवाल)
ये तो सभी जानते हैं कि भाजपा में अंदरखाने की अहम की लड़ाई सरकार बनने से लेकर अब तक जोरों पर है। यह अहम ऐसा कि जनता जनार्दन हाशिये पर है और नौकरशाह मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रिमंडल तक जो मनमर्जी चला रहे हैं वह मीडिया जगत भी जानता है। अगर ऐसा न होता तो विगत 15 मई को वन मंत्री को अपनी नाराजगी व दिल का दर्द यों बयान न करना पड़ता।
विगत 15 मई को प्रमुख सचिव कार्मिक को लिखा वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत का पत्र वायरल होने के बाद यकीनन यह नाराजगी आम हो गयी है कि किस तरह सरकारी अमला प्रदेश के मंत्रियों को अपनी अंगुली पर नचा रहा है जिसका सीधा सीधा फर्क मुख्यमंत्री व उनकी कार्यशैली पर नजर आ रहा है। वह मंत्री ने स्पष्ट तौर से अपने पत्र में मुख्यमंत्री को इंगित कर अपने इरादे साफ जाहिर किये हैं कि उनके विभाग की पत्रावली पर सीधे मुख्यमंत्री का ऐसा हस्तक्षेप करना वन मंत्री की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगाना जैसा है।
सूत्र कहते हैं कि यह तो हर मंत्रालय में चल रहा है। अगर किसी मंत्रालय के मंत्री को किसी फ़ाइल पर कोई आपत्ति दर्ज करनी होती है तो फ़ाइल सीधे चौथे पांचवें तल पहुंच जाती है जिसमें बड़ी आसानी से स्वीकृति मिल जाती है। यहां सबका कहना यही है कि मुख्यमंत्री के एक नजदीकी कहे जाने वाले आला अफसर के यह कारनामे आये दिन जहां एक ओर विभागीय अधिकारियों के लिए मुसीबत बने हुए हैं वहीं दूसरी ओर विधायक व मन्त्रिमण्डल में भी नाराजगी है। अब हर कोई तो डॉ हरक सिंह रावत जैसा मंत्री नहीं हो सकता जो ऐसी भूलों को बर्दाश्त न कर सके।
वन मंत्री व श्रम मंत्री डॉ हरक सिंह रावत का यह पत्र जिसका पत्रांक संख्या -311/VIP/मंत्री वन/2019 दिनांक 15/05/2019 को प्रमुख सचिव कार्मिक को लिखा गया है, में वन मंत्री ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि वन विभागाध्यक्ष जयराज सिंह व श्रमायुक्त आंनद श्रीवास्तव द्वारा विगत बर्ष भी उनसे अनुमोदन की जगह सीधे मुख्यमंत्री से अनुमोदन लेकर विदेश यात्रा की गई और आज जबकि पूरे उत्तराखण्ड के जंगल आग से धधक रहे हैं ऐसे में फिर वही प्रक्रिया दोहरा कर यह अधिकारी विदेश भ्रमण पर निकल गए हैं तब यह प्रश्नचिह्न विभागीय मंत्री की कार्यशैली पर लगना स्वाभाविक सी बात है क्योंकि आम जनता को न कार्मिक विभाग ही इसका जवाब देगा क्योंकि जवाबदेही तो जनता मंत्री से ही मांगती है।
वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के इस पत्र ने यह तो साबित कर दिया है कि जो कुछ भी सरकार में अंदरखाने घट रहा है वह पारदर्शिता से कोसों दूर है वहीं यह भी साफ हो गया है कि किस तरह अफसरशाही बेलगाम घोड़े के मानिंद प्रदेश में अपनी कार्यशैली का परिचय दे रही है। बहरहाल यह तय है कि यह पत्र वायरल हुआ है तो सिर्फ यह दिखावे का नहीं है इसके पीछे का संदेश काफी साफ और चुनौतीपूर्ण है। जो इंगित करता है कि आचार संहिता के बाद यह मात्र एक पत्र नहीं रह जायेगा बल्कि इसकी गूंज वन विभाग में ही नहीं बल्कि प्रदेश के हलकों में सुनाई देती रहेगी।