ग्राउंड जीरो से संजय चौहान।
(चार धाम यात्रा किस्त – 3)
बद्रीनाथ के कपाट खुलने के बाद बद्रीशपुरी के निकट स्थित बामणी गांव में भी इन दिनों चहल पहल देखने को मिल रही है। 6 महीने के इंतजार के बाद गाँव में पसरा सन्नाटा भी कपाट खुलने के बाद दूर हो गया है। गांव के ग्रामीण अपने मवेशियों संग गांव लौट आयें हैं। बामणी गांव के लोग 6 महीने अपने शीतकालीन प्रवास हेतु वापस नीचे पांडुकेशर आ जाते हैं। ग्रामीणों की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह बद्रीनाथ की यात्रा पर निर्भर है।
बद्रीनाथ के हक हकूकधारी हैं बामणी गांव के ग्रामीण!
आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में नारदकुंड से निकालकर तप्तकुंड के पास गरुड़ गुफा में बदरीनाथ को मूर्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया था। धाम की स्थापना से लेकर अब तक धाम की परंपराओं की तरह उनके आस-पास के गांव वालों को मिले अधिकार भी वैसे ही बरकरार हैं। इन गांव के ग्रामीण बद्रीनाथ के हक हकूकधारी हैं। जिनमें बामणी गांव भी शामिल है। जिन्हें बद्रीनाथ में विशिष्ट अधिकार मिलें हुये हैं।
भोग सामग्री, आरती और तुलसी की माला की जिम्मेदारी!
बामणी गांव के ग्रामीणों को भगवान बद्रीनाथ का भोग तैयार करने की सामग्री और उसे भोग मंडी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी होती है। बद्रीनाथ में हर दिन होने वाली आरती की जिम्मेदारी भी बामणी गांव के ग्रामीणों को हाशिल है। तुलसी भगवान बदरी नारायण की पहचान का प्रतीक है। इसकी सुगंध से पूरी बद्रीपुरी सुगंधित होती है। बदरीनाथ धाम में तीर्थयात्री भगवान विष्णु को तुलसी की माला, तुलसी के पत्ते व फूल चढ़ाते हैं। भगवान के श्रृंगार के लिए तुलसी की माला की जिम्मेदारी बामणी गांव के ग्रामीण के अलावा अन्य लोगों को दी गई है। बामणी गाँव के ग्रामीणों द्वारा तुलसी के पत्तों व फूलों की माला बनाई जाती है जो भगवान बद्रीनाथ में चढ़ाई जाती है प्रसाद के रूप में श्रद्धालु अपने अपने घर ले जाते हैं। तुलसी की माला से ग्रामीणो को रोजगार भी मिल जाता है। बदरीश पंचायत में शामिल कुबेर महाराज को बामणी गांव के ग्रामीण ईष्ट देवता के रूप में पूजते हैं।
बामणी गांव का ऐतिहासिक नंदा देवी महोत्सव!
समुद्रतल से 10250 फीट की ऊंचाई पर स्थित बामणी गांव को देवी नंदा का मायका माना गया है। प्रत्येक वर्ष भादो के महीने नंदा अष्टमी के अवसर पर तीन दिन के लिए देवी नंदा यहां आती है और इसी के साथ नंदा देवी महोत्सव शुरू हो जाता है। इस मौके पर देवी के श्रृंगार के लिए बामणी गांव के बारीदार (फुलारी) नीलकंठ की तलहटी से कंडियों में हिमालयी पुष्प ब्रह्मकमल लाते हैं। इस अवसर पर गांव की महिलाओं द्वारा नंदा के पौराणिक जागर गाये जाते हैं। नंदा अष्टमी मेले में बदरीश पंचायत से कुबेर जी की डोली बामणी गांव पहुंचती है। देवताओं के इस अद्भुत मिलन को देखने के लिए यहां पूरे देश से हजारों श्रद्धालु जुटते हैं।
उर्वशी मन्दिर!
भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से एक अप्सरा उत्पन्न हुई जो उर्वशी नाम से विख्यात हुई। बामणी गाँव में ही उर्वशी का मन्दिर है। हर साल हजारों श्रद्धालु उर्वशी मंदिर को देखने बामणी गांव पहुंचते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो बामणी गांव के ग्रामीण बेहद सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें बैकुंठ धाम में 6 महीने नारायण की सेवा करने का मौका मिलता है। यहां के ग्रामीण बरसों से इस परंपरा का बखूबी निर्वहन करते आ रहे हैं। इस दौरान उन्हें हर रोज न केवल भगवान की सेवा करने का अवसर प्राप्त होता है अपितु रोजगार भी मिल रहा है। भगवान बद्रीविशाल की महिमा भी निराली है।
जय बद्रीविशाल की….।