Friday, October 18, 2024
Homeउत्तराखंडसन 62 के रणबांकुरे जसवंत सिंह के नाम हुआ रांसी स्टेडियम! वह...

सन 62 के रणबांकुरे जसवंत सिंह के नाम हुआ रांसी स्टेडियम! वह वीर जिसने बैटल ऑफ़ नूरानाग में अकेले 72 घंटे लड़कर 300 चीनी सैनिक मारे!

(मनोज इष्टवाल)

यों तो गढ़गौरव गाथाओं का बहुत लंबा चौड़ा इतिहास है चाहे वह गढ़वाल नरेश के काल के वीर भड रहे हों या फिर वीरांगना तीलू रौतेली के वंश क्रम का उन्नीसवीं सदी का वह गोरला जसवंत सिंह ! जिसने अपने अदम्य साहस और माँ भारती की रक्षा करते हुए तीन दिन तक चीन की पूरी सेना से जमकर लोहा लिया और हथियारबंद चीन के 300 सैनिकों को मार गिराया!

प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक घोषणा करते हुए इस वीर के पराक्रम को सलूट करते हुए जब पौड़ी की सरजमीं पर स्थित एशिया के दूसरे नम्बर के सबसे ऊँचे स्टेडियम रांसी का नाम बदलकर महवीर चक्र विजेता वीर जसवंत सिंह रावत के नाम रखा तब स्वाभाविक था हर गढ़वाली इस गौरव से गौरान्वित हुआ होगा क्योंकि उत्तराखंड के हर घर में एक फौजी जरुर जन्म लेता है क्योंकि यह इस माटी में पैदा होने वाली वह खेती कही जाती है जो माँ भारती के चरणों में अपना शीश कटाने में गर्व महसूस करती है!

मुझे बहुत अच्छे से मालुम है कि पिछली कांग्रेस सरकार में डॉ. हरक सिंह रावत इस बारे में विचार भी कर रहे थे कि क्यों न वीरोंखाल विकासखंड के दुनाब-बाडियूँ स्थित उनके गाँव में महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह गोर्ला की मूर्ती का अनावरण कर वहां भव्य मेले का आयोजन किया जाय! फिर किसी का तर्क आया कि गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर लैंसडाउन में यह किया जा सकता है और फिर किसी ने फुसफुसाकर कहा कि क्या यह संभव है?

इस फुसफुसाहट में मुझे अतीत के उन काले अक्षरों की कालिख याद आ गयी जिन्होने तत्कालीन समय में जसवंत सिंह को पहले लापता व बाद में भगोड़ा घोषित कर दिया था और जब चीन संधि हुई तो इन्हीं हुक्मरानों को मजबूरन इस वीर योद्धा की बहादुरी के लिए महावीर चक्र देना पडा जबकि यह परमवीर चक्र के पूरे पूरे हकदार थे! बहरहाल जो काम तब नहीं हो पाया वह वर्तमान मुख्यमंत्री द्वारा अब किया गया है जो सचमुच न सिर्फ उनके विकास खंड या गाँव के लिए गर्व करने योग्य बात है बल्कि पूरे पौड़ी जिले के स्वाभिमान को जोडती उनकी यह विजय गाथा उत्तराखंड के गढ़-कुमाऊँ की जनता के लिए बेहद फक्र करने की बात है! मुझे लगता है मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस कदम के साथ डॉ. हरक सिंह रावत की उस सोच को भी बल मिलना चाहिए कि उनके गाँव में इस वीर पुरुष की याद में एक ऐसा सम्मानजनक मेला हर साथ आयोजित हो जो राज्यीय मेला घोषित हो! ठेठ वैसे ही जैसे जौनसारी लोक समाज द्वारा हर बर्ष आजाद हिन्द फ़ौज के वीर सैनानी वीर केसरी चंद का मेला आज भी जौनसार बावर क्षेत्र के चौलीथात(रामताल गार्डन) में आयोजित होता है और उसमें क्षेत्र के हजारों-हजार लोग हर बर्ष उनकी शहादत को नमन करने आते है व उनकी मूर्ती पर फूल चढ़ाकर उन्हें श्रधांजलि अर्पित करते हैं!

आपको बता दे कि जसवंत सिंह गोरला का जन्म अपने गाँव दुनाब में हुआ था और उनकी प्रारम्भिक शिक्षा यहीं शुरू हुई थी जिसके बाद उनके पिता द्वारा परिवार देहरादून में शिफ्ट करने के बाद वे देहरादून आ गए थे! वह मात्र 21 साल की उम्र में शहीद हो गए थे। जसवंत सिंह रावत दिसंबर 1959 को चौथी गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुए। 1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया, तब त्वांग घाटी में नूरानांग चोटी की सुरक्षा का जिम्मा इन पर था। 17 नवंबर 1962 से शुरू हुए चीनी सेना के इस हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अगले 72 घंटों के दौरान जसंवत सिंह ने जिस अदम्य वीरता और शौर्य का परिचय दिया उसकी मिसाल इतिहास में कहीं और मिलना बहुत मुश्किल हैं!

ज्ञात हो कि जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही दो स्थानीय मोनपा लड़कियों सेला और नूरा, जोकि मिट्टी के बर्तन बनाती थीं, की मदद से अलग-अलग जगहों पर हथियार रखे और चीनी सेना पर भीषण हमला बोल दिया! इस जोरदार हमले से स्तब्ध चीनी सेना को लगा कि इनकी खबर के मुताबिक़ यहाँ भारतीय सेना अपनी पोस्ट छोड़कर पीछे हट चुकी है! उन्हें लगा की वे भारतीय सेना की एक प्लाटून से लड़ रहे हैं ! जसवंत सिंह रावत ने तीन दिन तक चीन की सेना को रोके रखा और 300 सैनिकों को मार गिराया। इनकी बहादुरी का लोहा चीनी फौज ने भी माना था। भारत सरकार ने उस युद्ध में एक मात्र पुरस्कार बैटल ऑफ नूरानांग जसवंत सिंह रावत को मरणोपरांत दिया। लेकिन जब चीन से संधि के बाद वहां के कमांडर ने जसवंत सिंह रावत की बहादुरी के किस्से सुनाये और उनके कटे सिर के स्थान पर कांस/तांबा निर्मित जसवंत सिंह का सिर भारत सरकार को लौटाया तो सरकार द्वारा उन्हें तब भी परमवीर चक्र के स्थान पर मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। वे पहले ऐसे फौजी हैं जिन्हें मरणोपरांत भी लगातार प्रमोशन मिलते रहे और वह ऑनरेनरी कैप्टन पद से रिटायर हुए। पहले नायक फिर कैप्टन और अब वह मेजर जनरल के पद पर पहुँच चुके हैं!

रांसी स्टेडियम अब बदलकर महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह रावत स्टेडियम पौड़ी के नाम से जाना जाएगा! इस स्टेडियम का निर्माण बर्ष 1974 है! 1974 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर्वत पुत्र हिमवती नंदन बहुगुणा ने इस स्टेडियम की नींव रखी थी। उस दौर में इसके स्टेडियम के निर्माण के लिए 12 लाख रूपये मंजूर किए थे। इसकी नींव रखे जाने के कुछ सालों बाद रांसी स्टेडियम में राष्ट्रीय स्तर पर यहाँ फ़ुटबाल मैच आयोजित किया गया जबकि वर्तमान में कुछ प्रदेश स्तर के व जिला स्तर के खेल आयोजित किए जाते रहे हैं, लेकिन अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार के उदासीन दृष्टिकोण के कारण इस जमीन की स्थिति बिगड़ गई। स्वर्गीय एनएच बहुगुणा के भतीजे, मेजर जनरल सेवानिवृत्त बीसी खंडूरी ने, एनडीच सरकार में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री के कार्यकाल के दौरान अपने सांसद निधि और केंद्र सरकार से  खेल प्रेमियों के लिए, वित्तीय सहायता प्रदान की थी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री खंडूरी ने स्टेडियम के विकास  के लिए 5 करोड़ रूपये की घोषणा की थी। उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम इकाई द्वारा इसके कार्यों के लिए प्रथम क़िस्त के रूप में 80 लाख रूपये जारी करने की बात कबूली भी गयी है। वहीँ चर्चा यह भी है कि इस स्टेडियम को साई को हस्तगत किया जाएगा ताकि यहाँ राष्ट्रीय स्तर पर खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा सके!

यह स्टेडियम समुद्र तल से ऊपर 2133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है! ऊंचाई में स्थित होने की वजह से यह स्टेडियम एशिया में दूसरा सबसे ऊंचा मैदान माना जाता है । पौड़ी शहर की शीर्ष चोटी पर स्थित यह स्टेडियम पौड़ी के मुख्य बाजार से तीन से पांच किमी. दूरी पर अवस्थित हैं जहाँ पहुँचने के लिए कंडोलिया से सडक के दोनों छोरों पर ओक, देवदार, कैल, बांज, बुरांस के घने वृक्ष है व यहाँ गर्मियों में भी आप ठंड का आनन्द उठा सकते हैं! यहाँ से आप चौखंबा, पंचाचूली, त्रिशूली, केदारनाथ, बद्रीनाथ सहित अनेक हिम चोटियों के दर्शन कर सकते हैं।

 

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES