Friday, November 22, 2024
Homeउत्तराखंडजब मौत ने मुझे जिंदगी बख्श दी....! जाने वो भेडाल था या...

जब मौत ने मुझे जिंदगी बख्श दी….! जाने वो भेडाल था या साक्षात शिब…?

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 18 फरवरी 2011)

फोटो- अंकित कैंतुरा

ट्रैकिंग के लिए कोई भी ट्रेकर सबसे मुफीद समय अगस्त से सितम्बर-अक्तूबर ही मानता है! वैसे अक्सर अप्रैल माह से ही ट्रेकिंग का सुहाना सफ़र शुरू हो जाता है, मई, जून, जुलाई बरसात के कारण डिस्टर्ब करता है! मैं केदारकांठा की उस ट्रेक की बात कर रहा हूँ जिसमें मैं बेहद अनाड़ी घोड़े की तरह चलता गया और जब मौत हलक के बाहर निकलती दिखी तो सारे कुलदेव, देवियाँ सब मेरे मंत्रो में फूट पड़े!  

उत्तरकाशी जिले का ज्यादातर भूभाग यूँ तो ट्रेकर्स के लिए स्वर्ग समान हैं लेकिन आप देहरादून से नैनबाग, डामटा, लाखामंडल, नौगॉव, पुरोला होकर जब जरमोलाधार पहुँचते हैं तो घने चीड़ जंगल आपका मन मोह लेते हैं! आज 18 फरवरी  बर्ष 2011 को मैं अपने एक रवाई के स्थानीय सहपाठी संजू चौहान को लेकर केदारकांठा के ट्रेक के लिए निकला! रात जरमोला धार स्थित फारेस्ट के खूबसूरत बंगले में गुजारने के बाद जब हम दूसरे दिन सुबह ट्रेक के लिए निकले तब हल्की बूंदा-बांदी थी! रुक्सेक बाँधा तो पता लगा बुधीसिंह का खच्चर भी केदारकांठा की तलहटी में बसे गॉव देवजानी के नजदीक हिमाचली ठेकेदारों के सेब के बागीचे तक जा रहा है! फिर क्या था बुधिसिंह को मैंने एक विदेश सिगरेट की डिब्बी दी और अपनी खूबसूरत सी तमलेट रूपी बोतल से चार बूंद विदेशी …! हा हा हा फिर क्या था बस आगे-आगे बुधिसिंह और उसका खच्चर पीछे-पीछे मैं और संजू!

मुझे यों तो डॉ. डीएस राणा जोकि इंटर कालेज जोगीमढ़ी में अध्यापक हैं ने अपने मामाकोट देवजानी आने का बहुत पहले आमन्त्रण दिया था लेकिन समयाभाव के कारण अब तक नहीं जा पाया था! इस बार मन हुआ कि क्यों न देवजानी अचानक डॉ. राणा के यहाँ जाया जाय! सफ़र बेहद जटिल तो नहीं था लेकिन कठिन जरुर था! बरसात के कारण जोंक पैदा हो गई थी जो जूतों के अन्दर तक घुस गई जिन्हें बुधी सिंह का गीला नमक लगा कपड़ा झाड़ता रहा! पहले दिन केदारकांठा की तलहटी पर बसे गॉव देवजानी रुके! डॉ. राणा के उपलब्ध न होने पर निराशा हुई लेकिन वहां के सयाना के घर ठीक-ठाक आव़ाभगत हुई उन्ही से पता लगा कि इसे केदारकान्ठा क्यूँ कहा जाता है!  उन्होंने बताया कि पहले जगदगुरु शंकराचार्य यहीं केदारनाथ की स्थापना कर रहे थे लेकिन जब उन्हें हमारे गॉव की किसी गाय के रंभाने की आवाज सुनाई दी तब उन्होंने यहाँ का निर्माणकार्य आधा छोड़ दिया! खैर बहुत लंबा वृत्तांत है कभी फुर्सत में सुनाऊंगा! रातभर बारिश रही सुबह देखा तो चारों ओर बर्फ ही बर्फ …! संजू ने तो बहाना मार दिया कि उसके पेट में दर्द है! मैं समझ भी गया था लेकिन जानबूझकर नासमझ बन गया ! खैर मुझे तो जाना ही था इसलिए कोई ऐसा व्यक्ति ढूँढने लगा जो मेरा मार्गदर्शक बने! कईयों ने कहा भी कि कल तक रुक जाओ शायद बर्फ कम हो जाय लेकिन मैं भला कहाँ मानने वाला था!

आखिर एक सज्जन मिल ही गए जिनकी छानी गॉव से काफी दूर केदारकान्ठा वाले रास्ते पर थी उन्होंने भी कहा चिंता की बात नहीं वहां से बस एक लतडाक दूर ही तो है केदारकांठा! वह लतड़ाक (फलांग/फर्लांग) आज भी याद आती है तो रूह कांपने लगती है! वो बेचारे तो अपनी छानी पहुंचकर तम्बाकू के सुट्टे मारने लगे मैं अपना कैमरा रुक्सेक संभालता हुआ केदारकांठा के एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा जिसमें कमर कमर तक बर्फ गिरी थी! कहीं पर धंसता कहीं पर गिरता जाने कितने मील गुजर गए लेकिन केदार कांठा उतना ही दूर दीखता जितना गॉव से दिखाई दे रहा था.!

लगभग सवा चार बजे सांयकाल में 15000 फिट की उंचाई पर आखिर केदारकांठा पहुँच ही गया! तमलेट का पानी तो पीना ही मुश्किल हो गया क्योंकि उसका ढक्कन ही नहीं खुल पाया अपनी दूसरी तमलेट से दो ढक्कन गटककर मैंने भोले शंकर का जैsकारा लगाया और थोड़ी देर सुस्ताने लगा, शायद मुझे यह ख़ुशी थी कि मैंने दर्शन तो कर ही लिए! यह वही जगह है जहाँ भेड़-बकरी चुगाने वाले अक्सर रुका करते हैं! बर्फीली ठंडी हवाएं भी थी लेकिन मुझे क्या पता था कि मुझे झपकी आ जायेगी! अचानक कानों में सूं-सूं की तेज आवाजें सुनाई दी,आँखें खुली तो चारों ओर बर्फीली हवाएं और घुप्प अँधेरा दिखाई दिया! जहाँ घाटियों में अँधेरा पसरा हुआ था वहीं बर्फ से केदारकांठा चमक रहा था! लगातार गिरती बर्फ ने रास्ते ढक दिए थे! किस रास्ते आया किस रास्ते जाऊं कुछ नहीं सुझाई दिया! एक तो अकेला ऊपर से ट्रेकिंग का पूरा सामान भी नहीं!

हिम्मत जुटाकर में ढलान की ओर उतरने लगा लेकिन कुछ नहीं सूझ रहा था कि कहाँ जाऊं! दौड़ता रहा बदहवास सा ..! फिर अचानक एक पैर दूसरे पैर से टकराया और जाने कितनी दूर तक यूँही लुढकता रहा..! सारे देवी देवता याद कर दिए! आखिर अपनी कुल देवी और नागराजा याद किये और कहा कि आज बचा ले फिर कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा! फिर एक चमत्कार हुआ किसी ने मेरी टांग पकड़ी और ऊपर की ओर खींच ली! फिर एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गाल पर मारता हुआ बोला – कहाँ से आया रे बाबू, तुझे पता है कि तू कहाँ जा रहा है! अबे…. मैं नहीं पकड़ता तो जाने कई सौ फीट नीचे गहरी खाई में समा जाता! सच बताऊँ तो मैं इतना डरा सहमा छोटे बच्चे के सामान जोर जोर से रोने लगा…! उस व्यक्ति ने जिसकी भेषभूषा बिलकुल भेडालों (बकरी चुगाने वालों) की तरह थी ने चिलम निकाली और सुलगा ली फिर मुझे चुप कराया मुझे जरा भी आभास नहीं हो रहा था कि मुझे ठंड है फिर उसने कहा क्या तू नाग देवता का पुजारी है! मैने कहा – नाग देवता हमारे कुलदेवता हैं, तो वह बोला चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा! मैं तुझे सर-बडियार ले चलता हूँ वहां तेरा रहने का बंदोबस्त हो जाएगा! मैंने कहा मैं तो…उसने कहा मुझे पता है कि तू कहाँ किस गॉव से आया! फिर मैं खामोशी से उसके साथ चलने लगा..! करीब तीन घंटे चलने के बाद हम जंगल के करीब पहुँच गए जहाँ बर्फ तो थी लेकिन रास्ता दिखने लगा था यह ढालदार नीचे को उतरता रास्ता था जहाँ अखरोट के से पेड़ रास्ते के आस-पास दिखाई दे रहे थे! यह बेहद आश्चर्यजनक था कि वह भेडाल आगे था और मैं उसके पीछे-पीछे! हम बातें कर रहे थे और आगे बढ़ रहे थे! मैं अचम्भित हुआ जब मुझे लगा कि बिना टार्च के भी कोई ऐसी अदृश्य रोशनी इस भेडाल से फूट रही है जिसकी रौशनी में मैं रास्ता नाप रहा हूँ! बदन ने हलकी सी झुरझुरी ली लेकिन मेरे पास अपनी जान बचाने या गंवाने का इसके अलावा और कोई माध्यम भी नहीं था! मैं मन ही मन पश्चाताप कर रहा था कि यों ऐसे अनजान रास्तों में बिना गाइड के कभी नहीं आना चाहिए! मुझे अपने पर नहीं बल्कि संजू पर गुस्सा आ रहा था!

दूर मद्धिम सी रौशनी टिमटिमाते जुगनू की तरह दिखाई दे रही थी! अब मुझे साहस आने लगा कि जिंदगी बच गई! आधा पौन घंटे के बाद हम किसी गॉव के नजदीक थे! वह लगभग छ: फिट लंबा भेडाल रहा होगा हो सकता है उस से भी ज्यादा लम्बा क्योंकि मुझे उसका चेहरा स्पष्ट नहीं दिखाई दिया! उन्होंने जोर से आवाज दी- ओ राय चंद… ओ राय चंद! जो रात के वीराने में गूंजती चली गयी! थोड़ी देर बात गॉव की ओर इशारा करते हुए बोला- अच्छा बाबू अब तू जा..राय चंद जयाडा तुझे लेने आ रहे हैं मंदिर के पास ..! मैं चलूँ जाने मेरी भेड़-बकरियां जंगल में कहाँ होंगी! यह कहते ही वह अदृश्य हो गए और मैं अब और ज्यादा डर गया था तेजी से गॉव की और लपकने लगा तो देखा — कुछ लोग मशालें जलाएं मेरी ओर बढ़ रहे हैं ! उनमें सचमुच एक व्यक्ति मुझे ही देख रहा था स्थानीय भाषा में आवाज देता बोला- कौन है भाई …! मैंने कहा एक भूला भटका राहगीर..!

मुझे लेकर लोग एक मंदिर के बिशाल प्रांगण के पास ले गए! एक लोटे पर पास से ही पानी लाया गया और मेरे ऊपर घुमाकर उन्होंने कुछ बुदबुदाया और फिर सब अपने अपने घर की ओर चल पड़े! जिस व्यक्ति ने मुझे पूछा था आखिर उन्ही के यहाँ रात गुजारी वो भी बड़े मजे में…! उन्हें पूरा वृत्तांत सुनाया तो उन्होंने उठकर करछी निकाली उसमें जलते कोयले डाले और उसमें कुछ जड़ी बूटियाँ डाली जिसकी खूश्बू से पूरा कमरा महकने लगा फिर मन ही मन बुदबुदाए और अंत में बोले- जय कालिया नाग तेरा ही आसरा!  सुबह जब उठा तो चटक धूप के साथ ढ़ोल की आवाज सुनाई दी! चाय लाते जयाडा जी की श्रीमती जी हंसती हुई बोली- साहब नींद ठीक आई थकान से..!मैंने हां में सिर हिलाया और पूछा यह ढोल क्यूँ बज रहा है! उन्होंने जवाब दिया -कालिया नाग की नौबत है बाबू..!बाहर आकर देखा तो विस्मित था घर के बिलकुल पास सात धारे और बिशाल मंदिर जो कालिया नाग का था! यह उनकी जन्मस्थली थी! मुंह से शब्द फूट पड़े जय नाग देवता! और तब तो मुझे ज्यादा ही आश्चर्य हुआ जब पता चला कि वह रायचंद उनके कोई पूर्वज थे जिनके बहादुरी के लामण आज भी लगाए जाते हैं व जिनके घर मैं रुका था वे उन्ही रायचन्द के परपोते हुए! यह और आश्चर्यजनक लगा कि कोई व्यक्ति घर घर सबके दरवाजे बजाकर गया कि कोई बटोही राह भटक गया है व वह गाँव के ऊपर से आ रहा है!

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES