Friday, November 22, 2024
Homeउत्तराखंडपहाड़ की बंजर ढाकर मंडी में पलायन एक चिंतन की टीम उगा...

पहाड़ की बंजर ढाकर मंडी में पलायन एक चिंतन की टीम उगा रही है सोना! बीज धरा की गोद में समाये..!

(मनोज इष्टवाल)

यों तो चर्चाओं के बाजार में बहुत दिनों से नदारद रही पलायन एक चिंतन टीम के बारे में कय्यासबाजी का दौर चल रहा था कि मीडिया और सोशल साईट पर पिछले दो तीन बर्षों से सिर्फ और सिर्फ पहाड़ और पहाड़ से पलायन पर प्रवासियों के लिए संदेश देकर उन्हें लौट आने अपने घर खेत संभालने के लिए विभिन्न तरह से गोष्ठियां आयोजित करते जाने ये लोग अब शहरों से कहाँ नदारद हो गए हैं? लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि इस टीम ने अपनी कार्य संस्कृति बदलने का दृढ संकल्प ले लिया और फिर तय किया कि कहाँ से और कैसे नयी कार्य संस्कृति की शुरुआत की जाय!

विभिन्न चिंतन मंथन के बाद पलायन एक चिंतन की टीम ने संयोजक रतन असवाल की अगुवाई में नयार घाटी से इसकी शुरुआत की! शायद यह सोच बनाई कि कभी पहाड़ की बड़ी व्यापार मंडी दुगड्डा के बाद बांघाट से इसकी शुरुआत की जाय! काम नयार घाटी के खांटी पत्रकारों के जिम्मे हुआ और गणेश काला, अजय सिंह रावत ने वह माटी तलाशनी शुरू कर दी जहाँ से शुरुआत की जा सके! काफी जद्दोजहद के बाद पलायन एक चिंतन की टीम को कई एकड़ बंजर भूमि बांघाट नयार वैली में मिल ही गयी ! जहाँ माटी की उर्वाशक्ति का परिक्षण हुआ होगा और जिस जमीन पर झाड़ियाँ उग आई थी वह इस टीम के प्रयासों से पहले कंकड़-पत्थरों में फिर मिटटी डलियों में और बाद में मखमली जमीन में तब्दील होने लगी!

हाथ की छोटे खेतिहर ट्रेकटर्स की मदद से जमीन की सूनी मांग में माटी ने फिर से भरभराकर मांग सजाना शुरू कर दिया! टीम के अथक प्रयासों की खुशबु अब आस-पास क्षेत्र के ग्रामीण व प्रबुद्ध समाज के लोगों को भी लगनी शुरू हो गयी! लोग देखना चाह रहे थे कि आखिर यह टीम करना क्या चाह रही है! क्योंकि वातानुकूलित कारों से चलकर अपने कार्यक्षेत्र में मिटटी की धूल व पसीने की बूंदों से अपने शरीर का श्रृंगार कर रहे ये सो कोल्ड आरामपरस्त आखिर हैं कौन? देखते देखते बंजरों की तकदीर तस्वीर संवरने लगी और अब तो उसकी मुंडेर उसकी मांग की मानिंद भी दिखने लगी थी! बस अंतर यह आया था कि इस कृषि प्रणाली में नए आधुनिक यंत्रों का प्रयोग किया जाने लगा!

पलायन एक टीम के संयोजक रतन सिंह असवाल, सह संयोजक वरिष्ठ पत्रकार अनिल बहुगुणा, अनुसूया प्रसाद घायल, अजय रावत, गणेश काला सहित अन्य टीम मेम्बर ने अब बांघाट की नयार वैली में ही डेरा दाल दिया था! दिनों-दिन कार्य प्रगति से उत्साहित इस टीम ने प्रयोग के तौर पर यहाँ क्या क्या बोना है यह तो वह टीम ही बता सकती है लेकिन विगत दिनों रा.इ.का. बिलखेत में आई राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के छात्र-छात्राओं ने भी इस मिटटी में होली के रंग घोलने के लिए अपने हाथ आजमाए! अभी तो यह भूरी मिटटी है लेकिन इनके हाथों में आये बीज कुछ महीनों बाद जब रंगत में आयेंगे तो इसके रंग हरे होंगे फिर उनमें पुष्पित रंग खिलेंगे और अंत में उसकी कोख से किसान का उगने वाला सोना जमीन फाडकर बाहर आएगा!

राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी सुशील नैथानी की अगुवाई में इस टीम ने यहाँ आलू के बीज का रोपण किया! इन सभी छात्र-छात्राओं के चेहरे पर जहाँ ये बीज रोपण के बाद ख़ुशी की लहर थी वहीँ यह क्युरेसिटी भी है कि कब उनका परिश्रम पुष्पित पल्लवित होकर फलित होगा! पलायन एक टीम के सदस्य अजय रावत सोशल साईट पर ट्वीट करते हैं कि:-

●युवा पीढ़ी का मिट्टी में उंगलियां रौन्दना बेहद ज़रूरी●
विद्वान अग्रज श्री 
Anusooya Prasad Ghayal जी बार बार दोहराते हैं कि पेट की आग बुझाने को आटा तो गेंहू से ही निकलेगा, सिलिकॉन से नहीँ।यानी मिट्टी में हाथ रौन्दे बिना जीवन के अस्तित्व की कल्पना बेमानी होगा। इसी हकीकत को मध्य्नज़र रखते हुये आज अभियान पलायन एक चिंतन..! के कृषि आधारित बहुउदेशीय कार्य स्थल पर राइंका बिलखेत के राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के शिविरार्थियों को आमन्त्रित किया गया। 
स्वच्छता अभियान से पूर्व छात्र छात्राओं द्वारा अभियान पलायन एक चिन्तन …! द्वारा आबाद किये गये खेतों में आलू का रोपण किया गया।तकरीबन सभी छात्र-छात्राओं द्वारा पहली मर्तबा खेती की गतिविधियों में हाथ आजमाया गया। इस अनुभव से शिविरार्थी भी प्रसन्न नज़र आये और उन्हे जमीन से जुड़ने की प्रेरणा भी मिली। तद्नोपरान्त अभियान द्वारा आयोजित दोपहर के साधारण भोज के बाद अभियान के संयोजक 
Ratan Singh Aswal, सहसंयोजक Anil Bahuguna Anil द्वारा छात्र छात्राओं से संवाद भी किया गया।
अभियान कॉलेज के रासेयो प्रभारी 
Sushil Naithani ji का भी आभार प्रकट करता है। ऐसे कार्यक्रमों को रस्म अदायगी से बाहर खेतों और मिट्टी तक ले जाकर ही इनकी प्रासंगिकता है।

वरिष्ठ पत्रकार अनुसूया प्रसाद घायल लिखते हैं कि- “थोकदार साहब आज आप और हम सब मित्रों की भी टीम पलायन एक चिन्तन के सूत्रधार ठाकुर रतन सिंह असवाल जी की अगुवाई मे अपनी इस जीवन रेखा नयारघाटी मे जो पहल कर रही है और उसमे आप गणेश काला जी आदि का सीधा शारीरिक त्याग भी है ये प्रयास पहाड़ की पुरानी जडों को और मजबूत करेगा फिर कह रसा हूँ ग्रेन का दुनिया मे कोई विकल्प नही होगा विज्ञान गां–मुं– का जोर लगा ले रोटी ब्रेड आटे से ही बनेगी ये चुनावबाज भी समझ ले और पलायन पर चिन्तन टीम की चुगली हंसी उडाने वाले भी ये पहाड़ लौटेंगे हम घूमने या उन अपनों के बुलावे पर एक आध दिन रात्रि प्रवास पर जरूर जाएंगे पर अब संकल्प है कि अपने पुरुखों के नाम सदियों से लगी हजारों हैक्टेयर की थाती नही छोडेंगें और पट्टियों से तीन पाँच बिस्वा के प्लाटों के बंद मकानों मे नही हर्चेंगें पट्टी बोले तो मनियारी रौतों की मनियारस्यूँ असवालों की असवालस्यूँ गोर्ला रावत ठाकुरों की गुराडस्यूँ/वीरांगना तीलू रौतेली की भूमि कफोला बिष्टों की कफोलस्यूँ बंगारस्यूँ मौन्दाडा परमार रावतों की मौन्दाडस्यूँ आदि। आपके प्रयास को कोटी कोटि नमन सपना सकार होगा माधो सिंह भंडारी ने तो पहाड़ छेद दिया आप बंजर आबाद कर रहे हैं।” वहीँ व्यवसायी आशुतोष वर्मा इस ट्वीट के सन्दर्भ में अपनी बात लिखते हुए कहते हैं – ” Very good…बेहद आवश्यक है बच्चो को सिखाना की खेती कैसे होती है।।अच्छा कदम !” वहीँ युवा नितिन काला ने बेहद भावुकता पूर्वक लिखा –
“अरे वाह आज त हमरा पितृ भी खुश हुयां होला यू सब देखिकी।।।धन्यवाद आप लोगूका वास्ता🙏🙏🙏🙏 !” नितिन के शब्दों के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार अनिल बहुगुणा ने लिखा – “वाह, बड़ी, मन खुश हो गया ,बहुत बड़ी बात कह दी आपने। आप पर पित्र कृपा रहे।” युवा महावीर सिंह जगवाण लिखते हैं- ” जब सभी सवालों के ढेर पर बैठकर राजनीति कर रहे हों उस वातावरण मे जमीनी संभावनाओं को स्वयं साबित करने की जिद्द उन दिखावटी लोंगो के लिए आइना भी है और कुछ कर गुजरने का हौसला रखने वालों के लिए प्रेरणा भी,छात्रों की उपस्थिति आकर्शक है।” सीबी शाह कहते हैं – ” हमारे क्षेत्र की युवा पीढ़ी में परंपरागत कृषि यन्त्र देखकर मन में असीम प्रसन्नता हो रही है हमारी कृषि संस्कृति की झलक दिखाने और युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए सभी ऊर्जा वान टीम का मैं आभार व्यक्त करता हूँ 🙏 !” वरिष्ठ पत्रकार अनिल बहुगुणा को रतन सिंह असवाल लिखते हैं- “पंडाजी नई पीढ़ी को अग्रसारित किये बिना पहाड़ की संस्कृति और पहाड़ की खेती की कल्पना बेमानी है । निरंतरता मे प्रयास जारी रहेंगे।” वहीँ धीरेन्द्र कुमार उनियाल अपने संस्मरणों को ताजा करते हुए लिखते हैं- “कल तक मैंने यही क्षेत्र हमेशा फसलों से भरा व लहलहाता देखा है , अभी भी इस क्षेत्र के लिए मैं सावन का अंधा ही हूं । रही बात NSS कैंप की जो सराहनीय है ।” पंकज नैथानी कहते हैं – “सराहनीय व प्रेरणादायक काम कर रहे हैं आप लोग। जैंता एक दिन त आलो उ दिन ईं दुनीं मा… !” यस के. थपलियाल घंजीर अपनी विचारधारा प्रकट करते हुए कहते हैं -” आज जु युवा गिरौंड जीरो से अल्लु लगौंदा दिखेणा छन भोल वूंकी गिणती शैरी लल्लुऔं मा नि होणि … यु मेरू बिसबास च् !” पहाड़ से अगाध प्रेम रखने वाले निर्मल नैथानी लिखते हैं- ” आपने बच्चों के मन मे अपनी मिट्टी का मोह जागृत कर दिया हमारी दुआयें आपके साथ हैं ।रोज नयी क्रिएटिविटी !!! गजब “””🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 !” और सबकी बातों का सार निकालती देवेश आदमी की यह कविता पलायन एक चिंतन की टीम के प्रयासों की सार्थकता के रूप में देखी जानी चाहिए कि:- नयी पीढ़ी के दिल में उबाल होना चाहिए, काँधे में बस्ता हाथ में कुदाल होना चाहिए!…खुलेंगे रोजगार के हजारों आयाम पहाड़ में, थाली में मंडवा झंगोरा और दाल होना चाहिए!

इसे कहते हैं जमीन का मोह..! क्योंकि ऊपर जितनों ने भी अपनी प्रतिक्रिया ब्यक्त की है उनमें ज्यादात्तर अपने रोजगार की तलाश कर सुख सुविधाओं के जंजाल में पहाड़ छोड़ चुके हैं लेकिन उन सबके प्राण यहीं बसे हैं! इन सबकी नजर भी पलायन एक चिंतन की इस नवीन कार्यशैली को बेहद आशान्वित नजरों से निहार रही है ! सब में एक सोच विकसित हो रही है कि काश…यह प्रयोग सफल होता तो हम भी अपने वापसी के कदम पहाड़ की ओर बढाते क्योंकि नीति-नियंताओं ने जितने कागजी घोड़े अभी तक दौडाए हैं वे पहाड़ तक चढ़ते चढ़ते कागजों में ही हांपते-हांपते दम तोड़ चुके हैं! पलायन एक चिंतन टीम शायद अब यह समझ गयी है कि सिर्फ कागजी कार्यवाही से काम नहीं चलने वाला ! हमें कुछ कर गुजरना ही होगा ठीक उसी तरह जिस तरह सुमित्रानंदन पन्त की यह कविता है-

मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे, 
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, 
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी 
और फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूँगा! 
पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा, 
बन्ध्या मिट्टी नें न एक भी पैसा उगला!- 
सपने जाने कहाँ मिटे, कब धूल हो गये! 
मैं हताश हो बाट जोहता रहा दिनों तक 
बाल-कल्पना के अपलर पाँवडडे बिछाकर 
मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोये थे, 
ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था! 

लेकिन ये बीज बोने वाले सभी हाथ अनुभवी हैं और एक जूनून की हद तक कार्य प्रणति को देखने सहने वाले हैं! उम्मीदों के द्वार ठीक ढाकरी रूट के इस पड़ाव से होकर आगे बढेगा और पूरे उत्तराखंड में फिर से कृषि क्रान्ति आएगी ऐसा मेरा मानना है! देखिये किस तरह के प्रयास कर रही है पलायन एक चिंतन की यह टीम:-

https://youtu.be/qw6L9HXPrbc

https://youtu.be/qw6L9HXPrbc

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES