Thursday, November 21, 2024
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32 राज्यों में मात्र 14 राज्य ही हुए गणतंत्र दिवस परेड झांकी में चयनित! सरल नहीं होती चयन प्रक्रिया!

(मनोज इष्टवाल)

जब उत्तराखंड राज्य निर्माण के कई बर्षों तक उत्तराखंड की झांकी गणतंत्र दिवस यानि 26 जनवरी की परेड में राजपथ में नहीं दिखाई देती थी तब बड़ी आत्मग्लानि होती थी कि आखिर क्यों नहीं हमारे राज्य का प्रतिनिधित्व इस परेड में शामिल किया जाता है लेकिन अब जब खुद परेड रिहर्सल देखने का मौक़ा मिला तब अनुभव हुआ कि यह बहुत कठिन प्रक्रिया है जिस से सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं देश के हर राज्य को अपने चयन के लिए इस से गुजरना पड़ता है!

(राष्ट्रीय रंगशाला)

इस बार की गणतंत्र दिवस परेड में 32 राज्यों द्वारा अपने आवेदन केंद्र सरकार की चयन समिति को भेजे गए थे जिसमें मात्र 14 राज्य ही उन सारे नॉर्म्स पर खरे उतर पाए हैं जो राजपथ में गुजरने के लिए जरुरी मानक समझे जाते हैं! आखिर बर्षों की उत्सुकता तब शांत हुयी जब मुझे राष्ट्रीय रंगशाला के अंदर जाकर गणतंत्र दिवस की परेड की रिहर्सल देखने का मौक़ा मिला!

उत्तराखंड प्रदेश के सूचना विभाग के इस अधिकारी पर हमें नाज होना चाहिए जिसके बलबूते व अथक प्रयासों से प्रदेश विगत कई बर्षों से लगातार राजपथ पर उत्तराखंड की झांकी प्रस्तुत कर प्रदेश को गौरान्वित करने में सक्षम रहा है! राष्ट्रीय रंगशाला की रिहर्सल परेड के दौरान सूचना विभाग के उप निदेशक केएस चौहान जब मुझे दिखाई दिए तो उनका प्रसन्नचित्त चेहरा देखकर मुझे भी प्रसन्नता हुई! मैंने जैसे ही उन्हें इस बात की शुभकामनाएं दी कि यह सब आपके ही प्रयास से हो रहा है तो वे झट से बोल पड़े- नहीं इष्टवाल जी, यह पूरे प्रदेश की सरकार का सामूहिक प्रयास है मैं तो मात्र एक माध्यम हूँ लेकिन इस बात की मुझे ख़ुशी होती है कि ईमानदारी के साथ अपना कर्तब्य निभाते हुए प्रदेश का नाम रोशन करने में अपनी फर्ज व ड्यूटी के साथ इन्साफ कर रहा हूँ!

(सूचना विभाग के उप निदेशक केएस चौहान)

केएस चौहान ने बताया कि हर बर्ष चयन प्रक्रिया के लिए फॉर्म्स जुलाई माह के अंतर्गत जमा करने पड़ते हैं सितम्बर माह से लेकर दिसम्बर माह तक कई दौर की मीटिंग्स होती हैं जिनमें अपने आप को साबित करना होता है ! इस बार अनासक्ति आश्रम (महात्मा गांधी) कौसानी की झांकी को राज्य सरकार द्वारा 26 जनवरी की परेड में शामिल करवाया गया है जिसके लिए कई दौर तक उसके डिजाईन व गीत पर चर्चा हुई! मात्र 56-57 सेकेंड्स के इस गीत का एक एक वाद्ययंत्र सुना जाता है है और फिर गीत के प्रत्येक बोल के शब्दों पर बिशेष ध्यान दिया जाता है! फिर चयन समिति के सुझाव के बाद उस पर अमल करते हुए आवश्यक फेरबदल होते हैं!

बहरहाल मैंने रिहर्सल के हर पक्ष को जांचने परखने की हिम्मत दिखाई! जैसे तैसे अंदर प्रवेश का पास मिला ! जहाँ हर कोने पर रक्षा मंत्रालय की सतर्कता टीम, सिविल इंटेलिजेंस और कुछ ऐसी गिद्ध नजरें आपका एक्सरे करती रहती हैं कि उन्हें ज्यादा देर झेल पाना संभव नहीं है! केएस चौहान जी के साथ मैं उस क्षेत्र में भी प्रविष्ट हुआ जहाँ 14 प्रदेशों की झांकियों के मॉडल तैयार हो रहे थे! जिन्हें तैयार करने वाले हर कारीगर के सिरों के उपर कैमरे, डॉग स्कवाड, व सिविल इंटेलिजेंस के लोगों का तगड़ा पहरा था! मुझे यहाँ वह कला भी दिखी जिसे मूर्तरूप देने वाले ज्यादात्तर बाबूमोशाय बंगाली थे! उनके हाथों के गुजरती चिकनी मिट्टी, कूंची के बाद जो मूर्ती तैयार हो रही थी लग रहा था मानों अभी बोल पड़ेगी! वहीँ झांकियों के निर्माण में लकड़ी पर आरी, हथोडी कीलों की ठोका-पीठी करने वाले काष्ठकारों का हुनर भी अजब गजब का था! यह आश्चर्यजनक था कि हर घंटे बाद डॉग स्कवाड टीम हर झांकी के अंदर बाहर जासूसी कुत्तों को सूंघवाकर हर झांकी की पड़ताल कर रहे थे कि कहीं कोई अवैध असला तो इसमें फिक्स नहीं हुआ है!

(गणतन्त्र दिवस परेड में शिरकत करने पहुंची उत्तराखंड सरकार के 14 सदस्यीय दल के कुछ सदस्य)

सूचना विभाग उत्तराखंड सरकार के उप निदेशक केएस चौहान से प्राप्त जानकारी के अनुसार मालूम चला है कि झांकियों पर कार्य 1 जनवरी से 23 जनवरी तक होना सुनिश्चित होता है जिसका फाइनल टच 25 जनवरी को पुनः बेहद निगरानी के साथ निबटाया जाता है! उन्होंने बताया कि विगत 14 जनवरी से 14 राज्यों की टीम हर दिन यहाँ गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होना का अभ्यास करती है! हर दिन कई दौर की वार्ताएं यहाँ रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों से होती हैं और किसी भी प्रकार की कोई भी चूक की यहाँ कोई गुंजाइश नहीं होती! 23 जनवरी को राजपथ पर फाइनल रिहर्सल होती है व उसके बाद कभी गृह मंत्री के यहाँ, कभी प्रधानमन्त्री के यहाँ, कभी संस्कृति मंत्री तो कभी माननीय राष्ट्रपति के यहाँ इन टीमों को आमन्त्रण होता है! और यह प्रक्रिया शतत 2 फरवरी तक चलती रहती है!

(राजपथ पर रिहर्सल)

इस दौरान जो देखने को मिलता है वह यह कि फोटो में इन महानुभावों के साथ फोटो खिंचवाते अधिकारी व राज्य टीमें सचमुच अपने को गौरान्वित समझती हैं और आम व्यक्ति को भी इस बात का फक्र होता है लेकिन इस सब प्रक्रिया तक पहुँचने के लिए जो एड़ी चोटी की मेहनत इन अधिकारियों को करनी पड़ती है वह फ़िल्मी परदे के पीछे के उसी डायरेक्टर की तरह है जिसकी फिल्म की वाहवाही उसके निर्देशन को नहीं बल्कि शतरंगी परदे पर किरदार निभाने वाली अभिनेत्री व अभिनेता ले जाते हैं!

मुझे तब और ख़ुशी हुई जब रक्षा मंत्रालय में बड़े अधिकारियों में तैनात अपने गढ़वाल क्षेत्र के दो अफसरों से मुलाक़ात हुई! एक तो पूरी राष्ट्रीय रंगशाला के सर्वेसर्वा रक्षा मंत्रालय में ओएसडी मेरे गाँव के पडोसी गहड गाँव विकास खंड कल्जीखाल, पट्टी कफोलस्यूं, पौड़ी गढ़वाल के निकले जिनसे परिचय केएस चौहान जी ने करवाया व वे बहुत आत्मीयता के साथ मिले! ब्यस्तता में उनकी चाय का ऑफर शाम तक टालने की मजबूरी के कारण साथ बैठकर चुस्कियां न ले सका इस बात का मलाल तो है लेकिन फक्र इस बात का है कि जिस सरकारी विद्यालय से मैं पढ़ा हूँ वे भी उसी से पढ़कर ऐसे बड़े ओहदे तक पहुंचे हैं! आप पर हमें नाज है!

प्रशिक्षण शिविर में फोटो खींचना बर्जित है इसलिए माफ़ी चाहूँगा कि अंदर की कोई भी फोटो आप सबको अपडेट नहीं कर पाया!

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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