(मनोज इष्टवाल)
अभी -अभी अपनी आँखें बंद कर दिमाग को रिवर्स गेयर में डालकर देखा कि इगास की विद्युत लडियां अभी कई मकानों से उतरी नहीं हैं! देहरादून के परेडग्राउंड का वह मंच ठोका-ठाकी में अब उखड़ रहा है और श्रीनगर में हुआ वीर भड माधौ सिंह भंडारी गीत नाटिका का मंचन अभी भी सोशल साईट पर आये दिन तरोताजा है! 12 ऐनी बग्वाळ माधौ सिंगा, 16 ऐनी श्राद माधौ सिंग! या बडू बाबू कु बेटा गाजे सिंगा, उदमतु नि होणु गाजे सिंगा..! जैसे बोल कानों में ऐसे गूंजने लगे हैं जैसे मानो कल की बात हो! चार सदियाँ पार करने के बावजूद भी हम माधौ सिंग की वीरता पर प्रचारित डायलॉग “एक सिंग बण में, एक सिंग गाय का, एक सिंग माधौ सिंग बाकी सिंग काहे का!” यूँ याद रखते हैं जैसे चार सदी नहीं चार दिन पहले माधौ सिंग से मिले हों ? लेकिन कहाँ ये याद करने की जरूरत नहीं क्योंकि सीधे बोल दो ना – मलेथा में!
माधौ सिंह भंडारी की वीर गाथा को 9वीं बार इस सदी की शुरुआत से लेकर अब तक मुंबई व उत्तराखंड के विभिन्न मंचों पर प्रदर्शित करने के लिए पर्वतीय नाट्य मंच की समस्त टीम को शुभकामनाएं! इस दौरान गढ़ सेनापति माधौ सिंह भंडारी से जुड़े कई तथ्य सामने आये जिन्हें कईयों ने सीधे उठाया तो मुझ जैसे और कई मित्रों ने सुझाव व मशविरे के तौर पर उन्हें सोशल साईट के माध्यम से सबके सामने लाने का प्रयत्न किया! जिस से साफ़ हुआ कि माधौ सिंह भंडारी के जिस पुत्र ने मलेथा गूल के खातिर अपनी शहादत दी वह गाजे सिंह नहीं बल्कि उदीना का पुत्र वीर सिंह था जिसकी आज भी मलेथा के उस सेरे में पूजा दी जाती है जहाँ सिर पानी के साथ बहकर रुका था व उस खेत की पूजा भी होती है जिसमें धड़ पानी के साथ बहकर रुका था! गजे सिंह भंडारी माधौ सिंह भंडारी की पत्नी पटरानी रुक्मणी के पुत्र हुए जो बाद में राजा महिपत शाह के पुत्र पृथ्वीपति शाह के राज्यकाल में सेनापति माधौ सिंह भंडारी के युद्ध में शहीद होने के पश्चात सेनापति नियुक्त्त किये गए व कालांतर में उन्हें पांच भाई कठैतों (भगोत सिंग, राम सिंग, उदोत सिंह, सब्बल सिंग, सुजान सिंग) ने कूटनीति के तहत मार डाला! रानी के सलाहकार शंकर डोभाल की ह्त्या कर दी व अबोध कुंवर की ह्त्या करने की साजिश रची जिसका पता चलते ही रानी ने अपने सबसे विश्वासपात्र पुरिया नैथानी को कुंवर की रक्षा हेतु सुरक्षित स्थान पर ले जाने की बात कही! कठैतगर्दी से निबटने के लिए सेनापति गजे सिंह भंडारी के भाई मदन सिंह भंडारी को रानी ने सेनापति बना दिया! जबकि सच यह था कि मदन सिंह भंडारी को सेनापति बनाने के पीछे कठैतों की ही साजिश का एक हिस्सा था लेकिन पुरिया नैथानी की सूझ-बूझ से आखिर भीम सिंह बर्त्वाल व मदन सिंह भंडारी के नेतृत्व में पांच भाई कठैतों के इस हाहाकार से छुटकारा मिला व उन्हें भट्टी सेरा से आगे पंचभैय्याखाल में मौत के घाट उतार दिया गया! इस तरह पांच भाई कठैतों की कठैतगर्दी से राज्य आजाद हो पाया!
खैर अब आते हैं विगत सदी के उस नाटक पर जिसके सर्वेसर्वा तत्कालीन विधायक व बाद में उत्तराखंड के भाग्यविधाता के रूप में सुप्रसिद्ध इन्द्रमणि बडोनी हुए! जिन्होंने इस नाटक की शुरुआत 1968 में पहले चम्बा और फिर मुंबई में 1970 के आस-पास करवाई! तब इस नाटक में संगीत स्व. जबर सिंह नेगी ने दिया था! कई बर्ष नाटक फिर कुंजापुरी मेले की शान रहा लेकिन फिर लम्बे अंतराल तक यह गायब हो गया!
19 अक्टूबर 1988 दिन दशहरा! मौक़ा- कुंजापुरी पर्यटन विकास मेला !
आखिर लम्बे इन्तजार के बाद सुमन लोक कला मंच नरेंद्र नगर टिहरी के राजघराने के ठा. किशोर सिंह परमार को उदिना का किरदार निभाने वाली कलाकारा मिल ही गयी! तब स्मिता डंगवाल अपने पिताजी की सेवानिवृत्ति के बाद पहाड़ आई ही थी! वह गढ़वाली बोलना तक नहीं जानती थी लेकिन पूरी जिंदगी पिता की फ़ौज की नौकरी होने के कारण देश के कई महानगरों में शिक्षा लेने के साथ साथ रंगमंचों पर अभिनय भी किया करती थी! रिहर्सल शुरू हुई लेकिन अन्य लडकियां कहाँ से लाई जायं ये बड़ी समस्या हो गयी थी! स्कूलों में तो लडकियां मंचों पर जा सकती थी लेकिन स्कूल से बाहर सभी अभिवाहक एक ही बाद कहते- न भाई न, हमारी लडकियां इस तरह कैसे …! पुरानी स्मिता डंगवाल और वर्तमान की स्मिता राजेन टोडरिया बताती हैं कि आखिर हमने निर्णय लिया कि घर घर जाकर लोगों को समझाया जाएगा ! हमने ऐसा ही किया और मेहनत रंग लाई! फिर टीम इस तरह तैयार हुई पटकथा सर्वेसर्वा इन्द्रमणि बडोनी,निर्देशक- शान्ति कुमार रतूड़ी, मंच परिकल्पना व रूप सज्जा- शिव प्रसाद बिजल्वाण, मंच प्रबंधन -ठा. किशोर सिंह परमार, संगीत निर्देशक- शांति कुमार रतूड़ी, नृत्य निर्देशक -ऋतुराज नेगी, पार्श्व स्वर- शान्ति कुमार रतूड़ी, कुमारी कमला असवाल, कुमारी सीता नेगी, कुमारी फूल बाला नेगी, कुमारी अनिता नेगी व श्रीमती निर्मला! वाद वृन्द- बचन दास छिगल दास (ढोल दमाऊ), नरेश कुमार (ओरगेन), रामचंद्र (बांसुरी), व शान्ति कुमार!, गीत संरचना व संकलन- इन्द्रमणि बडोनी, मंच संचालन- जगदीश प्रसाद थपलियाल, ललित मोहन काला, ऋतुराज नेगी!, माधौ सिंह भंडारी- शिव प्रसाद बिजल्वाण, उदीना-कुमारी स्मिता डंगवाल, राजा महिपत शाह- शिव लाल भंडारी, उदीना का पिता- ऋतुराज भंडारी, हुडक्या – सतीश नौटियाल, माधौ सिंह का लड़का- बिजेंद्र बिजल्वाण!, नृत्य- कु. सुषमा राय, कु. सुषमा कोहली, कु. बिनीता भट्ट, कुमारी अनिता उनियाल, कु. अनुपमा काला, कु. शकुंतला, कु. रेशमा बानो, कु. मुन्ता पंवार,कु. नीति, कु. भावना, हरीश बेलवाल, संजय डंग, बिजेंद्र राणा, धनेश पालीवाल, हरी कंडारी, आशीष भटनागर, जितेन्द्र बेला इत्यादि!
स्मिता राजेन टोडरिया बताती हैं कि तब इन्द्रमणि बडोनी ऋषिकेश रहते थे व वहीँ से नरेंद्र नगर आया करते थे! शुरूआती दौर में उन्हें ही माधौ सिंह भंडारी का किरदार निभाने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने मुझे देखकर हँसते हुए कहा कि स्मिता तो मेरी बेटी की उम्र की है इसलिए यह संभव नहीं! आखिर शिव प्रसाद बिजल्वाण ने माधौसिंह भंडारी की भूमिका निभाई व उन्ही के पुत्र बिजेंद्र बिजल्वाण ने माधौ सिंह के पुत्र की भूमिका (जिसकी बलि दी जाती है) है! ये दोनों बाप
बेटे अपने गाँव से आकर रिहर्सल में सम्मिलित होते थे! रिहर्सल में लड़कियों के साथ उनके अभिवाहक आया करते थे और जब उन्हें पूरी तसल्ली हो गयी कि नाटकों के अभिनय में कुछ ऐसा वैसा नहीं होता तो धीरे धीरे उन्होंने रिहर्सल में आना कम कर दिया! स्मिता के अनुसार उत्तर प्रदेश के जमाने में कुंजापुरी में बहुत बड़ा पर्यटन मेला लगता था और जिस दिन यह प्ले वहां किया गया इसकी प्रस्तुती सबको बेहद सुंदर लगी जिसका परिणाम यह निकला कि ग्रामीण लोगों द्वारा इसे दूसरे व् तीसरे दिन भी प्रस्तुती के लिए रखा! बहुत भीड़ जुटी! इसके बाद इसे अगले बर्ष कीर्ति नगर में भी मंचन किया गया जहाँ इसकी जमकर तारीफ़ हुयी! सुमन लोक कला मंच ने इसका नाम “गढ़वाली लोक नृत्य नाटिका वीर माधौ सिंह भंडारी” रखा था!
स्मिता बताती हैं कि इसमें हुड्क्या व मेरे अभिनय की काफी प्रशंसा की गयी! उस दौरान अभिनय करने के लिए पारिश्रमिक नहीं होता था मुझे कुंजापुरी मेले में काफी इनाम भी मिला जो मैंने सब सुमन लोक कला संगम के नाम कर दिया! बाद-बाद में इसके मंचन से प्राप्त पारिश्रमिक को एकत्रित कर स्व. इंद्रमणि बडोनी जी ने पट्टी भिलंग वा पट्टी- हिंदाव में कई स्कूल खोले जो कि बाद में राजकीय इंटर कालेज में तब्दील हुए। रा. इ. का. घुत्तू, रा. इ. का. घंडियालधार इन्हीं में से एक हैं। स्व इंद्रमणि बडोनी जी के बाद इसका मंचन “माधो सिंह भंडारी भावनाटिका” के रूप में विशालमणी नैथानी ने भी कई वर्षों तक किया। शादी के बाद भी मैं रंगमंच से जुडी रही! सुरेश काला मुंबई से “कमेड़ा का आखर” प्ले में मैंने अभिनय किया तब मेरा बेटा लुसुन छोटा था व राजेन उसे संभाल रहे थे अब इत्तेफाक देखिये कि विगत 20 फरवरी 2015 में बन्नो स्कूल प्रागंण में सम्पन्न हुए पर्वतीय नाट्य मंच की प्रस्तुति वीर भड माधौ सिंह भंडारी में लुसुन टोड़रिया ने भी अभिनय किया! कालांतर में यही इस नाटक की पटकथा हल्का सा रद्दोबदल कर इसका कई स्थानों पर मंचन करवाया यही नहीं मुनाल संस्था लखनऊ द्वारा भी इसका मंचन किया गया और लखनऊ दूरदर्शन ने इसका प्रसारण भी किया!
बहरहाल जब यह नाटक लिखा गया था तब माधौ सिंह भंडारी के पुत्र का नाम इसमें सम्मिलित नहीं था क्योंकि उदीना से जन्म लेने वाले पुत्र वीर सिंह हुए थे जबकि माधौ सिंह भंडारी की पटरानी रुकमा या रुक्मणि के पुत्र गजे सिंह भंडारी हुई! जिनकी पत्नी मथुरा बौराणी व पुत्र अमर सिंह भंडारी की सनद आज भी अभिलेख के रूप में देवप्रयाग रघुनाथ मंदिर में मौजूद हैं! ताम्र पत्रों में भी उसका जिरह है! कई विद्वान माधौ सिंह भंडारी के कालो भंडारी बताते हैं और कहते हैं कि उन्हें ही मलेथा की जागीर मिली थी जो बेबुनियाद है क्योंकि माधौ सिंह भंडारी के पिता राय सिंह भंडारी लालुरी गाँव के हुए और उनके पुत्र माधौ सिंह भंडारी के द्वापा तिब्बत विजय के पश्चात उन्हें यह जागीर राजा महिपत शाह ने प्रदान की थी जिसके अभिलेख आज भी मौजूद हैं। तैमुर लंग की आत्मकथा “मुलुफात-इ-तिमरी” व ” जहाँगीरनामा” तथा मोहसिन फनी द्वारा रचित “दावेस्तान -ए- मजहब” में भी इस काल के विभिन्न घटनाक्रमों का वर्णन मिलता है!