जलपाईगुड़ी (प. बंगाल)/ देहरादून 30 अगस्त (हि. डिस्कवर)
रिक्शा चालक पिता घर में बीमार पड़ा है। माँ चाय पत्ती चुनकर जैसे तैसे अपने परिवार का गुजर बसर कर रही है।टिन निर्मित एक घर के आशियाने में जिंदगी के सपने संजोने के लिए सचमुच सपने जैसा था लेकिन सपना तो वह सपना देख चुकी थी। वह हर हाल में जिसे पूरा करना चाहती थी। गरीबी व आर्थिक तंगी के चलते वह जूते भी खरीदने में सक्षम नहीं थी शायद इसलिए भी कि उसके पैर का छत्तता चौड़ा है दोनों पैरों में छः छः अंगुलियां है। लेकिन आज जिसने भारत के लिए 18वें एशियाई खेलों का 11वां दिन हमेशा के लिए यादगार बना दिया, उसका नाम है सपना बर्मन।
स्वप्ना बर्मन ने भारत को 11वां स्वर्ण पदक एक ऐसी स्पर्धा में दिलाया जिसे आमतौर पर बेहद कम लोग जानते हैं। स्वप्ना ने महिलाओं की हेप्टाथलॉन स्पर्धा में कुल 6026 अंक अर्जित कर स्वर्ण पदक पर कब्जा किया। हेप्टाथलॉन में एथलीट को सात अलग-अलग स्पर्धाओं में अंक अर्जित करने होते हैं। हार जीत का फैसला सभी स्पर्धाओं में अर्जित कुल अंक के आधार पर होता है। ऐसे में स्वप्ना ने शानदार प्रदर्शन करते हुए चीनी खिलाड़ी वांग किंग्लिंग को 72 अंक से पछाड़ दिया।
शुरुआती स्पर्धाओं के बाद स्वप्ना चीनी खिलाड़ी से पीछे थीं। लेकिन दांत के दर्द के बावजूद उन्होंने गोलाफेंक में शानदार प्रदर्शन करते करते हुए बढ़त को कम किया। दर्द से कराहते हुए उन्होंने गोलाफेंक में 707 अंक अर्जित किए। लेकिन इस प्रदर्शन के लिए उन्हें अपने जबड़े में बैंडेज चिपकाना पड़ा जिससे कि उन्हें परेशानी न हो और वो अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन कर सकें।
(गुलाबी ब्लाउज पहने सपना की माँ के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहव थे)
सपना आज भी एक टिन निर्मित घर में रहती है। पश्चिमी बंगाल के जलपाईगुड़ी शहर के घोषपाड़ा की रहने वाली सपना बर्मन के परिजन जहाँ आज सुबह से ही एक पुराने से टीवी पर चिपके हुए थे वहीं माँ बोशाना माँ काली के मंदिर में 2 बजे से पूजा अर्चना के लिए जमकर बैठी हुई थी। बोशाना माँ काली की अनुनय भक्त है।
सपना के पिता पँचन बर्मन पिछले एक हफ्ते से बिस्तर में हैं। अभी सपना का मैच शुरू ही हुआ था कि माँ अपने उदगार रोक नहीं पाई व बिलख-बिलखकर घर में ही बने माँ काली के मंदिर में नतमस्तक हो गयी। वह ऐसे दहाड़े मारकर रो रही थी कि अडोस पड़ोस के लोग एकत्र हो गए लेकिन कुछ ही देर में पता चला कि सपना स्वर्ण पदक जीत गई है। माँ ने जहां मन्दिर वाले कमरे में अपने को कैद कर दिया वहीं घर के बाहर बधाई देने वालों व मिठाई बांटने वालों का तांता लग गया।
बहुत देर बाद अपने को संयमित कर जब सपना की माँ बाहर निकली तो नेत्र खुशी से फिर भी सजल हो रहे थे वह कुछ बोल नहीं पा रही थी आखिर इतना कहकर फिर रो पड़ी कि हम उसकी एक भी जरूरत पूरी नहीं कर पाते और वह कभी जिद भी नहीं करती लेकिन अपने खेल के लिए वह बहुत जिद्दी है। उसके कारण हमें सब जानने लगे हैं यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
ज्ञात हो कि सपना पिछले एशियाई खेलों में भी ऊंची कूद में देश को स्वर्ण दिला चुकी है लेकिन अफसोस कि अभी भी उसके घर की हालत नहीं सुधरी। पश्चिम बंगाल सरकार ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार को भी ऐसी प्रतिभावान बेटी को हर सम्भव आर्थिक मदद देनी चाहिए।