छमना पातर के पौत्र ने भी किया कुमाऊं पर राज! क्यों किया ब्रिटिश सरकार ने दोनों राजघराने के दावों को खारिज!
(मनोज इष्टवाल)
इतिहास गवाह है कि किसी भी तथ्य को आप चाहें कहीं से भी छुपाने का प्रयास करें वह कहीं न कहीं से सामने आ ही जाता है! ऐसा ही कुछ दिन पूर्व का किस्सा है जब कुछ बुद्धिजीवियों के बीच यह प्रश्न उठा कि ब्रिटिश काल में गढ़वाल एम्पायर को किंग ऑफ़ गढ़वाल कहलाने का गौरव प्राप्त फिर कुमाऊं में ऐसा क्यों नहीं? और तो और वर्तमान में गढ़वाल नरेश को ससम्मान दिल्ली में रियासत के मानक के हिसाब से बँगला मिला है तब कुमाऊं के राजघराने को क्यों नहीं!
बहरहाल ये प्रश्न जो भी हों और इसके पीछे छुपे तथ्य क्या हैं ये सब इतिहास की गर्त में हैं लेकिन यह तो तय है कि इतिहासकारों ने हमेशा अपने-अपने क्षेत्र में ऐतिहासिक घटनाक्रमों को लिखते समय वे विवादास्पद पन्ने नहीं लिखे जो इतिहास तो है लेकिन उसके सन्दर्भों को जानबूझकर हटा दिया गया! अटकिंशन के हिमालय गजेटियर, बद्री दत्त पांडे के कुमाऊं का इतिहास, व डॉ. शिब प्रसाद डबराल द्वारा लिखित कुमाऊं के इतिहास में समानता तो है लेकिन राज घराने के कई राज अलग अलग तरीके से उदृत हैं!
इतिहास गवाह है कि चंद वंश के अंतिम राजा त्रिमलचंद गिने जाते हैं जिन्होंने सन १६२५ से १६३८ तक राज किया! दैवयोग से उन्हें पुत्र रत्न प्राप्त नहीं हुआ तो उन्होंने श्रीनील गुसाईं के पुत्र बाजा गुसाई उर्फ़ बाज बहादुर चंद को राजगद्दी सौंप दी ! श्री नील गुसाईं के बारे में यों तो कई कहानियां प्रचलित हैं लेकिन कहा जाता है कि आँख से अंधे होने के कारण उनकी परवरिश पंडित धर्माकर तिवाड़ी की सति साध्वी पत्नी ने की और राजा से वचन माँगा कि वे तब ही बाजा गुसाईं को उनके हवाले करेंगे जब वह उसे राजगद्दी सौंपेंगे!
भले ही राज तिलक के बाद बाजा गुसाईं बाज बहादुर चंद कहलाये और उसके बाद भी उनके पुत्र उद्योत चंद, चंद वंशज ही कहलाये लेकिन हकीकत यह थी कि राजा त्रिमल चंद के बाद ही चंद वंशी राजाओं का अस्तांचल धर्मानुसार हो गया था जिसे दत्तक पुत्र के रूप में बाजा गुसाई उर्फ़ बाज बहादुर चंद ने पूरा कर चंद राजवंश को आगे बढ़ाया! शायद यही कारण भी था कि उनके वंशजों को राज घराने की पेंशन देने से ब्रिटिश रूलर्स ने मना कर दिया!
राजा बाज बहादुर चंद ने लगभग ४० बर्ष राज किया और राज विस्तार तराई से लेकर गढ़वाल तक बढ़ाया व इसी काल में वे लोहबा गढ़ से माँ नंदा की स्वर्ण मूर्ती लेकर अल्मोड़ा आये जहाँ उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गयी! इस सबके पीछे अगर किसी को बड़ा श्रेय दिया जाता है तो वह है – छमना पातर!
कटार से तीखे नैन नक्श सुराई सी कमर, खूबसूरती ऐसी की जो देखे वह देखता रह जाय! आवाज में ऐसी खनक कि जो सुने कानों में मिश्री घोल दे! और नृत्य ….! जो ठुमके लगाए तो मानों इंद्र की सभा से उनकी अप्सरा आ पहुंची हो! छमना पात्तर न सिर्फ कुमाऊं बल्कि गढ़वाल हिमाचल व तराई के राजाओं के बीच उस दौर की सबसे प्रसिद्ध नृत्यांगना थी जिसका नृत्य देखने के लिए बड़ी बड़ी महफ़िलें सजती थी! सब उस पर फ़िदा थे लेकिन वह सिर्फ एक पर फ़िदा थी और वह था बाजा ठाकुर यानि राजा बाज बहादुर चंद! कहते हैं छमना पात्तर न सिर्फ बाजबहादुर चंद की प्रेमिका या रखैल थी बल्कि वह सच्ची राज भक्त भी थी जो अपने राजा के लिए जासूसी का काम करती थी! छमना से उत्पन्न पुत्र पहाड़ सिंह कहलाये, जबकि बाजबहादुर चंद की पटरानी से उद्योत चंद व एक और पुत्र पैदा हुए जिसे राजसिंहासन न मिला तो वह जोगी बन गया! वहीँ छमना पात्तर के पुत्र पहाड़ सिंह को यह मलाल था कि उसे चंद नहीं कहलाया जाता इसलिए यह क्रोध उसे अंदर ही अंदर खाया जाता था!
यह क्रोध आगे बढ़ता हुआ उनसे उनके पुत्र हरी सिंह व हरी सिंह के बाद उनके पुत्र मोहन सिंह व लाल सिंह तक जा पहुंचा ! वक्त का इन्तजार करते करते पूरे सौ साल बीत गए और फिर वह मौक़ा भी आया जब बाजबहादुर चंद के पौत्र राजा दीप चंद व उनके दोनों पुत्रों को मोहन सिंह ने जेल में डलवाकर मारवा डाला और सन १७७७ में राजगद्दी पर जा बैठा लेकिन गढ़वाल नरेश ललित शाह द्वारा सेनापति प्रेमपति खंडूरी की अगुवाई में बग्वालीपोखर में मोहन सिंह को बुरी तरह हराकर अपने बेटे प्रधुम्नशाह को कुमाऊँ के राज दीप चंद का धर्मपुत्र बनाकर उसका राजतिलक करवाया और प्रधुम्नशाह तब से प्रधुम्न चंद कहलाये! लेकिन भारी षड्यंत्र के बाद पुनः मोहन सिंह १७८६ में राजगद्दी पर जा बैठे जबकि प्रधुम्नशाह श्रीनगर चले गए! इसके बाद उन्हें विधिवत चंद वंशज माना गया और वे नृतकी पुत्र होने का दाग धोने में सफल हुए! उनके बाद शिव सिंह उर्फ़ शिव चंद राजगद्दी पर बैठे लेकिन वे एक साल ही राज कर पाए और उसके बाद उनके दुसरे पुत्र महेंद्र सिंह उर्फ़ महेंद्र चंद राज गद्दी पर बैठे!
अटकिंशन हिमालयन गजेटियर के पृष्ठ संख्या ३३८ में लिखते हैं कि “चूँकि इस परिवार के बारे में काफी कुछ पहले भी कहा जा चुका है ! मिस्टर बैटन मोहन सिंह को दीप चाँद का चचेरा भाई कहता है तथा मिस्टर फ्रेजर १८१४ ई. में सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में लिखता है कि मोहन सिंह का पूर्वज पहाड़ सिंह , बाजबहादुर चंद का एक नर्तकी से उत्पन्न पुत्र था जिसके बेटे हरी सिंह की दो वैध संताने थी – मोहन सिंह और लाल सिंह! रौतेला उप जाती में चंद वंशज के दोनों तरह के कनिष्ठ सदस्य वैध और अवैध भी शामिल हैं क्योंकि पहाड़ों में वैध और अवैध संतानों में कभी फर्क नहीं किया गया, यहाँ तक की हर्क्देव ने भी मोहन सिंह के जन्म को लेकर कभी अंगुली नहीं उठाई और उसे शाही परिवार का ही माना तथा इस प्रकार पहाड़ी परम्परा के अनुसार मैं समझता हूँ कि उसे शाही खून से उत्पन्न या रौतेला ही माना जाय ! वरिष्ठ शाखा के वे लोग हैं जो अल्मोड़ा में पेंशन भोगी हैं और कनिष्ठ शाखा का काशीपुर का शिबराज सिंह है, जिसे ब्रिटिश सरकार ने राजा बनाया है! दोनों के दावों को सरकार के बोर्ड ने पत्र संख्या ३५ दिनांक ४ मई १८२१ के द्वारा खारिज कर दिया!”
काश…कि ब्रिटिश हुकुमत यहीं रूकती उन्होंने पुराने अल्मोड़ा में जो बदलाव किये उस बदलाव पर कवि गुमानी के ये शब्द बेहद लोमहर्षक पीडादायक और लोकप्रिय हुए:-
बिष्णु को देवाल उखाड़ा, ऊपर बँगला बना खरा!
महाराज का महल ढवाया, बेड़ीखाना तहां धरा!
मल्ले महल उड़ाई नंदा, बंगलों से भी तहां भरा!
अंग्रेजों ने अल्मोड़े का नक्शा और ही और करा!!
छमुना पात्तर पर अन्य जानकारियां:-
1- छमुना पातर कत्यूरी नरेश धाम देव की नृत्यांगना थी यह चौकोट के सैलून का नैखाणा गाँव की बताई गई है छमुना का पति हमेरू नायक था छमुना के पुत्र बिजुला सुजल गुजराती मधु नायक थे जमुनादेवी पात्र हमेरू की हुडकी की ताप पर बाद अपने पुत्र बिजुला की हुडकी में नाचती थी गाथाओं के अनुसार वह विरमदेब, धामदैव मालूशाह तथा सुनने सौ का के सौकाण राज्य में जाकर नृत्य करके लुभाती थी छमना के कंठो से निकले स्वर और नृत्य देश देशान्तर मे डंका बज रहा था प्रत्येक राजा ऐसी नृत्यांगना का नृत्य अपने दरबार की शान समझता था कहा जाता है बिरमदेव अपनी आशक्ति को ना रोक सका स्वंभावतः बिरमदेव का अवैध सम्बध छमुना सा हो गया जिससे बिजुला नैक को उत्पन्न मानतेहैं धाम देव सागर ताल गढ़ विजय अभियान पर गया उस युद्ध में बिजुला नायक भी साथ गया उस युद्ध में धाम देव ने समुआ या बिछुआ को परास्त कर गिरा देता है कटार से बिजुला उसे मार देता है बिजुला नायक की इस वीरता से छमुना का राज दरबार में सम्बध बन गया धाम देव वृद्ध हो गये थे उनकी युवा रानी कामसिणा का दिल बिजुला पर आ गया रानी ने संगीत सम्राट बिजुला से कहा तुम राजा से पुरस्कार में मुझे मांगना बिजुला ने कहा रानी मे तुम्हारा दास हूँ ऐसा सोचना भी पाप है परंतु रानी का कामसिणा प्रेम अग्नि मे जल रही थी उसने कहा तुमने मेरी बात नही मानी तो मैं कहुगी की मेरी इज्जत लुटने की कोशिश की है बिजुला धर्म संकट में फंस गया दूसरे दिन राज सभा में पुरस्कार मिलने थे राजा ने कहा बिजुला में तुम हमारे राज्य की अनमोल निधि होता आज जो चाहोगे वह मिलेगा धाम देव वचन के पक्के थे छमुना ने कहा पाली पछौं की या चौकोट की जागीर मांग ले परंतु उसने रानी कामसीणा को झरोंके से देखा और राजा की कटार डरते हुए उसने कामसीणा रानी को माँग लिया यह सुनकर धाम देवी को तलवार पर हाथ चला गया परंतु छमुना ने कत्यूरी राजाओं की वचन की मर्यादा का इतिहास दोहराया राजा ने वचन का पालन किया इससे छमुना विशेष राजदूति बनी धाम देव की मृत्यु के बाद छमुना मालुशाह की राजधानी बैराठ चली गई छमुना ने मालुशाह को बताया उसके राज्य के उतरी भाग में शक्तिशाली राजा सोनपाल की कन्या अति सुंदर है राजुला यदि उस से विवाह करके सम्बध स्थापित होंगे उसका राज्य भी मिल जायेगा उसका पुत्र नही है और पैदा होते ही तुम्हारी मंगनी हो गई थी छमुना ने मालुशाह के हृदय में प्रेम अग्नि जला दी मालूशाह ने उसे सोनपाल के दरबार में भेजा छमुना ने सुरीले कंठ और मनमोहक नृत्य से सोनपाल को साध दिया छमुना कई दिनों से उनके दरबार की शोभा बनकर रहने लगी अवसर पाते ही राजुला के मन में मालूशाह के प्रति प्रेमाग्नी जागृत कर एक नई गाथा को जन्म दिया आज भी कत्यूरी जागरो में उषेल मंत्रों में छमुना का जिक्र आता है छमुना महान नृत्यकी के साथ साथ एक राजनीतिक दूती थी कई राजवंश उसकी कोठारी नजरों की कटार से बने और बिगड़े राजूला हरण का युद्ध छमुना की कुटनीतिज्ञता थी!
(डॉ रणवीर सिंह चौहान/हरीश खँखरियाल द्वारा प्रदत्त जानकारी)!
2-छमना पातर के बारे में आपकी जानकारी एटकिंसन पर आधारित हैं . छमना पातर का उल्लेख नेपाल के लोक साहित्य में भी. छमना ओड़िया लोकसाहित्य में भी है. उत्तराखंड के जागरों और तंत्र साधना में भी छमना पातर का स्मरण होता है …….अथा सुमैण विधयाँण लिखिते . ॐ नमो निलम द्यौ सुकिली सभा बोल्दी कालीझालीमाली देवी . गोरिखाडा खेत्रपाल बेतालमुखी छुरी: खेगदासझाळी भाली देवी सुजस जैपाल ब्रना महरि : लेंडा महरि कुव महरि छमना पातर गुरु बेग्दास झाली माली देवी तन का (संकलित) … यह भी प्रचलित है कि बिजुला नेक और उसकी माँ छमना पातर ‘नर्तकी’ नित्यप्रति दुलाशाह के खैरागढ की मैंलचौंरी में हुड़कयों के साथ कार्यक्रम प्रस्तुत किया करती थी, ऐसा भी उल्लेख आता है।(जनश्रुति) लोकगीतों में भी “डीडीहाट की छमना छ्योरी… लोकगीत पर लोग झूमते हैं उत्तराखंड में छमना नाम से स्थान अभिधान भी हैं.
(डॉ सुभाष थलेड़ी द्वारा प्रदत्त जानकारी)!