वाह…शानदार रजनीकांत! आज की छोपाती मेरी भाग्यानी बौs रै तुमारा जुम्मा!
(मनोज इष्टवाल)
विगत दो दिन पहले जब यह गीत देहरादून के एक शानदार होटल में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की मौजूदगी में लांच किया गया था तब से लेकर अब तक इसे कई बार हरका-फरकाकर सुन चुका हूँ! पोस्तु का छुम्मा मेरी भाग्यानी बौs शुद्ध रूप से इसी क्षेत्र का पारम्परिक गीत है! और जब ठेठ पर्वत क्षेत्र की भेषभूषा में प्रोफेशनल आर्टिस्ट के साथ जखोल गाँव की ग्रामीण महिलायें व युवक कदम ताल करते नजर आये तो वह कमाल का लग रहा है!
पहाड़ी दगडया प्रोडक्शन यकीनन पूरी मेहनत के साथ अपनी लोक संस्कृति की छटा में वह नया अंदाज ला रहा है जो वर्तमान की बड़ी मांग कही जा सकती है!
सिनेमाफोटोग्राफी में गोविन्द नेगी व चंद्रशेखर चौहान ने ड्रोन व कैमरों की खूबसूरती के जो अन्गल लिए हैं वह काबिलेतारीफ है! आप ने जिस तरह जिस खूबसूरत से मशकबीन की धुन के साथ पूरा जखोल गाँव उठाया है उसे देखकर मैं अभी भी हैरत में हूँ कि ड्रोन को लेकर आप आखिर गए कहाँ जहाँ से इसे इतनी खूबसूरती के साथ उठाया गया है! नृत्य निर्देशन में सोहन चौहान व सैंडी गुसाईं को इसलिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ी होगी क्योंकि ठेठ ग्रामीण क्षेत्र की परम्पराओं पर केन्द्रित यह गीत फिल्माना बड़ी जद्दोजहद का काम तब होता है जब आप ठेठ ग्रामीणों के साथ काम कर रहे हों! दोनों ने बड़ी ख़ूबसूरती से कुछ फ्रेम जरुर बनाएं हैं जिनके साथ गायक/अभिनेता रजनीकांत सेमवाल, शैलेन्द्र पटवाल व अभिनेत्री पूजा भंडारी ने पूरा-पूरा इन्साफ किया है!
यों तो पूरी टीम का काम काबिलेतारीफ है लेकिन एक कमी मुझे जरुर खली और वह है निर्देशन पक्ष कुछ क्लोज अप काटने में शायद चूक गए! भले ही लॉन्ग शॉट्स में अभिनेता शैलेन्द्र पटवाल ने गीत के बोलों के साथ पूरा न्याय किया है! लेकिन यह ठेठ फोकलोर है जिसमें हमने वह सब वस्तुवें गौण कर दी जो आनी जरुरी थी! जिसमें कूडै की अटाली, गेहूं-जौ की दाई, पटाली, बूणी जाला भाटा, घाट कु भग्वाडी, बाजी जालो बानौ, बैशाखी कु थोलू, जैसे शब्द फिल्मांकन की दृष्टि से ज्यादा नजदीकी से आनी चाहिए थी! भले ही निर्देशन पक्ष ने ये सारी चीजें अपने लॉन्ग शॉट्स में बखूबी दर्शायी हैं! ऐसा मेरा मानना है!
हिप-पॉप का गढ़वाली में पदार्पण करवाने वाले गीतकार/गायक व संगीतकार रजनीकांत सेमवाल ने इस बार ठेठ क्षेत्रीय वाद्ययंत्रों की भरमार में जिस तरह इस गाने को सजाया है वह अकल्पनीय है! तभी शायद लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने शब्दों में कहा कि वे होनहार रजनीकांत सेमवाल से कुछ ज्यादा अपेक्षाएं करते हैं लेकिन उनकी प्रयोगधर्मिता मुझे बिशेष पूर्व में पसंद नहीं आई लेकिन इस गीत ने वह कसर पूरी कर दी! ठेठ पर्वतीय आंचल के फोकलोर को उसी हिसाब से प्रस्तुत करके रजनीकांत ने उसकी सुन्दरता पर चार चाँद लगा दिए! उन्होने कहा कि पहाड़ में लोक समाज के पास लोक संस्कृति के इतने रंग हैं कि उस पर अभी मात्र ५ प्रतिशत ही काम हुआ है! इसके लिए रजनीकांत जैसा ब्यक्ति चाहिए जो इसे आगे बढा सकता है! उन्होंने कहा कि इस गीत की निर्मात्री उनकी माँ श्रीमती महेश्वरी सेमवाल भी खुद यही चाहती हैं कि हमारा ठेठ हमें दिखने समझने को मिले
इस गीत की जो सबसे बड़ी खूबसूरती है वह ठेठ फोक है! लोक संस्कृति में ठेठ ग्रामीण अंचलों में आंगनों, मेलों व कौथीगों में जो नृत्य विधा है उस से जरा सी भी छेड़छाड़ नहीं की गयी है! यह सबसे बड़ा इस गीत का सकारात्मक पहलु नजर आया! आभूषण वस्त्र सजा में ठेठ पर्वत क्षेत्र की वानगी प्रस्तुत कर निर्देशक गोविन्द नेगी व रजनीकांत सेमवाल ने इस गीत की खूबसूरती बढ़ा दी! बेहद कम समय में इतना ब्यापक बिषय उठाकर विजुलाइजेशन करना और वह भी चंद प्रोफेशनल आर्टिस्ट के साथ बेहद अलग काम दर्शाता अहै क्योंकि ग्रुप आर्टिस्ट सभी वो ग्रामीण थे जिन्होंने कैमरा पहली बार फेस किया है!
भले ही गीत के रोमांटिक स्वभाव से यह लगता है कि गीत यूँ आया और कानों आँखों को शुकून देकर निकल गया लेकिन गीत के बोल एक पूरी संस्कृति के उस वातावरण को प्रस्तुत करते नजर आते हैं जिसकी आवोहवा में हमारा समाज ज़िंदादिली से खुशमिजाज होकर हर पल हर दिन ख़ुशी ख़ुशी गुजारता है! पूरी टीम के इस सफलतम प्रयोग के लिए बधाई! पहाड़ी दगडया टीम व रजनीकांत सेमवाल को बधाई ! सुप्रसिद्ध गीतकार/गायक रजनीकांत सेमवाल के इस गीत ने फिल्मांकन के बाद यह तो साबित कर ही दिया है कि आप फोकलोर का जो भी मिजान अपने संगीत पक्ष में ढालें लेकिन इसके अमृत्व के लिए आपका विजुअल वर्क आपको साबित करने का सबसे बड़ा माध्यम बनाता है! और इस गीत में जो फिल्मांकन हुआ है वह ठेठ संस्कृति के लिए दिया गया ठेठ कार्य किसी नायाब तोहफे से कम नहीं है!आप भी देखिए गीत की इस खूबसूरती को:-