Friday, November 22, 2024
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अटल बापू: काल के कपाल पर एक सशक्त हस्ताक्षर…!

अटल बापू: काल के कपाल पर एक सशक्त हस्ताक्षर…!

(कुसुम रावत की बेबाक कलम से)

अटल बापू! आपको ये नाम सुनकर बड़ा अजीब लगेगा ना! पर ये नाम अटल विहारी वाजपेयी जी को टिहरी की एक बूढी साध्वी ने दिया. वो हमेशा उनको इसी नाम से बुलाती हैं. उनको टिहरी वाले ‘मोटी माईजी’ के नाम से जानते हैं. और पुरानी टिहरी में उनकी मिट्टी की कुटिया को ‘माई बाड़ा’. माईबाड़ा पुल पार तीनधारे के ऊपर आम के पेड़ों के नीचे था. उसको जूना अखाड़े की एकमात्र स्त्री कोतवाल महंत १०८ हरी पुरी माई जी ने बसाया था. इस माई बाड़े का अनोखा इतिहास है. ये टिहरी की सांस्कृतिक विरासत है. यंहा पर ६ पीढ़ी की माइयों ने साधना की. आज भी वहां सालों पुराना धूना प्रज्वलित है. माई बाड़े की गुरु माँ ने १२-१३ साल की उम्र में मुझे अपनाया था. वो मेरी दीक्षा गुरु हैं. उनकी शिष्या कैलाशपुरी माई जी इस वक्त उनकी उत्तराधिकारी हैं. वो १०२ साल की हैं. इस माई बाड़ा’ के नई टिहरी में रचने बसने की बड़ी अनोखी दास्ताँ है. आपको जानकर हैरानी होगी कि उसके मुख्य किरदार अपने प्रिय अटल बिहारी वाजपेयी जी हैं. कैसे तो आइये जानें-

सो मेरी गुरु माई जी के प्रिय अटल बापू आपका बड़ा अहसान है मुझ पर- टिहरी की माइयों की कई पीढीयों की अनोखी विरासत ‘माई बाड़ा’ को बचाने को. ये बात हम दो चार लोगों को ही मालूम है कि अटल बापू महिला साध्वियों का कितना मान रखते थे? और कैसे आपने टिहरी की माई लोगों की मदद की? मैं आपको अपनी आप बीती सुनाती हूँ.
पुरानी टिहरी बाँध के कारण डूबने को था. उस वक्त मची अफरातफरी में माई बाड़ा का पुनर्वास एक यक्ष प्रश्न था. मैं १२ सालों से नई टिहरी में ‘माई बाड़ा’ की जगह खोज रही थी. हम सब निराश हो गए थे. मेरी निराशा तब हताशा में बदल गयी जब उस वक्त के पुनर्वास निदेशक चन्द्र सिंह साहिब ने कह दिया कि माईबाडा का नई टिहरी में पुनर्वास नहीं कर सकते. क्योंकि ये तीनधारा ग्रामीण पुनर्वास का हिस्सा है. बड़ी कोशिश की पर सब बेकार. बेचारी ९० साल की बूढी माई जी निराश होकर किसी भले मानस के कहने पर अपनी तरफ से आखरी कोशिश करने कोटि कालोनी पुनर्वास के ऑफिस किसी के स्कूटर पे गयीं. टिहरी की तब की खस्ताहाल सड़क पर स्कूटर पलटा. उनको काफी चोट लगी. मैं लखनऊ थी. किसीने फ़ोन कर बताया. मैं सीधे टिहरी गई. मैंने अपनी परिचित नीरू नंदा दीदी को फ़ोन किया कि ऐसा हो गया है. वो आई.ए.एस. अधिकारी हैं. माई जी की चोट ने उनको भी विचलित किया. माई बाड़ा और ३ बूढी माइयों का पुनर्वास उनको भी परेशान किये था. पहले तो बहुत बिगडी कि ये तेरी जिम्मेदारी नहीं. ये टिहरी शहर की जिम्मेदारी है उनको बसाना. काफी नोंक झोंक के बाद बोली- तुम सब कागजों की कॉपी तुरंत भेजो और चन्द्र सिंह जी से मिलकर पत्र पर लिखा लो की हम उनका पुनर्वास नहीं कर सकते. मैं कोशिश करती हूँ.


मैं टिहरी गई. माई जी से पत्र लेकर नई टिहरी आई. पता चला वो देहरादून को चल चुके हैं. मैं व्यथित थी- बूढी माई की कथा-व्यथा से. सो मैंने फुल स्पीड से जीप से उनका पीछा किया तब जाकर मैं उनको फकोट के आस-पास पकड़ पाई. वो बड़े दयालू थे. तुरंत लिखकर दे दिया कि हम उनका नियमानुसार पुनर्वास नहीं कर सकते. मैंने वो पत्र नीरू दी को तुरंत फैक्स किया. उनके कोई बैचमेट स्वर्गीय अशोक सैकिया प्रधानमंत्री कार्यालय में थे. उस वक्त अटल जी प्रधान मंत्री थे. मैंने अपनी तरफ से इस बावत अटल जी को एक दरख्वास्त लिखी थी. दीदी ने तुरंत उनसे मिलकर मेरी दरख्वास्त दी कि ये माई लोग वंहा पर टिहरी बसने के दिनों से हैं. इनकी कई पीढियां वंहा पर साधना कर चुकी हैं. ये ३ बूढी माई अब इस उम्र में कंहा जाएँगी? दीदी टिहरी बाँध के चेयरमैन से इस बारे में भी कई बार मिली. पर कुछ नहीं हुआ था. अटल जी ने क्या किया क्या नहीं? मैं नहीं जानती. दीदी और उनके मित्र ने कैसे उनको तैयार किया? वो ही जानें पर कुछ समय बाद एक दिन मेरे ऑफिस में माई जी की पसंद की जगह के ऐलोटमेंट के कागज लेकर कोई टी.एच.डी.सी.का बंदा आया कि माईबाड़ा की जमीन के कागज हैं. आप इसके पैसे जमा कर दो. जमीन की वो कीमत बाद में उस वक्त के एम्.एल.ए.टिहरी लाखी राम जोशी भाई जी जी ने किये. जोशी जी मेरी माँ के मायके के है और मेरी माँ के भतीजे हैं. सो मैंने उनको ही बोला था.

आप को जानकर हैरानी होगी ये जमीन टिहरी के राजा और सांसद मानवेन्द्र शाह अपने मंदिर काम्प्लेक्स के लिए चाहते थे. पर अटल जी के हस्तछेप से पुरानी टिहरी की विरासत ‘माई बाड़ा’ को ये जमीन मिली. बाद में टिहरी की नेक कलक्टर राधा रतूड़ी के प्रयासों से ‘माई बाड़ा’ बना. और ऐसे ३ बूढी माई आखरी वक्त में नई टिहरी पहुंची. सो कैलाश माई जी सबको कहती हैं – मेरी ये कुटिया अटल बापू जी ने बनवाई नहीं तो हम कंहा जाते? मेरे गुरु की प्रेरणा से नंदा जी इस कुसुम के कहने पर सीधे अटल बापू तक पहुंची. बाद में राधा रतूड़ी ने मुझको यंहा बसा दिया नहीं तो हम डूब ही जाते. जब भी चुनाव होते तो वो वोट देने जातीं. हम कहते गिर जाओगे तो कहती अटल बापू को वोट देना है. किसी तरह गिरते पड़ते वो आज तक वोट देती हैं अपने अटल बापू को. आज वो बहुत बीमार हैं. उनकी कुटिया की इस जमीन पर बहुत लोगों की नजर थी और है. बार बार अपने गुरु की जगह को किसी तरह मैंने बचाया. आगे की नहीं जानती हूँ.

सो अटल बापू जी मुझ पर माई बाड़ा को बसाने का अहसान है आपका. आपको कभी शुक्रिया तो न बोल सकी पर अब इस जहाँ से आपके जहाँ तक जरूर मेरी गुरु माँ इस सन्देश को आप तक पहुंचा देंगी- जिनकी प्रेरणा से ही आपने ये पुण्य काम किया. नीरू दीदी बता रही थीं कि आप माई लोगों की कथा व्यथा सुनकर इतने व्यथित थे कि कैसे ३ बूढी माई १२ सालों से पुनर्वास को भटक रही हैं. टिहरी डूबने को है और वो कहाँ जाएँगी? मैंने जो टीला माई जी के कहने पे माँगा वो ही उन्होंने टिहरी के महाराजा को न देकर टिहरी के असली महाराजा को दिया- क्योंकि असली महाराजा कोई भोगी राजा न होकर विरक्त सन्यासी ही होता है. ऐसा मेरा मानना है.
अटल बापू मेरी दूसरी बात गौर से सुनो. मैंने खुद १९८५ में आपको सुना है. वो भी एक रोमांच था. ये फोटो शायद उसी वक्त का है. टिहरी का राम लीला मैदान- हजारों की भीड़ थी. पाँव रहने को जगह नहीं. लोग पेड़ों पर भी चढ़े थे. मैं उन पलों की साक्षी हूँ. प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की मौत के बाद राजीव गाँधी प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बने थे. उस दिन आपका भाषण गजब का था. लोग मन्त्र मुग्ध आपको सुन रहे थे. लोग सोच रहे थे- हार पर आप बुझे होंगे. मंच पर टिहरी के संघ के पुरोधा लोकप्रिय डॉ ललिता प्रसाद गैरोला जी थे. वो मेरे पिता के मित्रों में हैं. सो उनको जानती थी. चूँकि मैं सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ी हूँ सो कई और लोगों को जानती थी पर नाम याद नहीं हैं. दूसरे सत्ये सिंह धनोला जो चंबा पेट्रोल पंप के मालिक थे. वो मेरे भाई लगते थे. क्या दिन था वो? ये कोई शायद शाम का समय होगा. अटल बापू आपकी उस दिन की बाकी बातें तो याद नहीं पर दो बातों ने मेरे मन पर गहरा असर डाला. बस उस दिन से आप मेरे प्रिय नेता हो गए इंदिरा जी के माफिक. आप भी अपनी उन दो बातों और भावों को सुनें-

कांग्रेस की बम्पर जीत पर आप अपने चिरपरिचित अंदाज़ में बोले कि हमको कांग्रेस ने नहीं टेलीविजन ने हराया है. भीड़ सन्न. बोले हाँ हमको तो टेलीविजन ने ही बुरी तरह हराया. इंदिरा जी को गोली लगी. उनका गोलियों से छलनी शरीर एक बार दिखाया, दो बार दिखाया, तीन बार दिखाया, बार-बार दिखाया- कई बार दिखाया, दिखाते ही रहे- दिन-रात. दिखाते ही रहे कई दिन तक, लोग देखते ही रहे और देखते ही रहे इंदिरा जी के गोलियों से छलनी शरीर को. और उनके शव के पास खड़े उनके सुन्दर ग़मगीन बेटे राजीव गाँधी को. बस बार-बार इंदिरा जी के मृत शरीर और राजीव गाँधी के गम में डूबे चेहरे ने हिंदुस्तान की जनता को इतना फिघला दिया कि- लोगों ने आव न देखा न ताव. सब भावनाओं में बहते गए. इतना बहे कि कोई रोक न सका. सबने डबडबाती आँखों और रुंधे गले से जो ठप्पे लगाये. पूछो मत. देश भर में बैलट पेपर पर बस ठप्पे ही लगते गए. इतने ठप्पे कांग्रेस के हाथ पर लगे कि हमारा कमल तो बेचारा हाथ के बोझ में कुम्लाह ही गया. चारों तरफ सिर्फ हाथ ही हाथ के पर्चे थे. मानों वो असल में इंदिरा जी का ही हाथ हो….सो मैं तो यही बोलूँगा न कि हमको कांग्रेस ने नहीं टेलीवीजन ने ही हराया. अटल बापू भीड़ अवाक हो आपकी बोली के कमाल को सुन रही थी. पर आप ये बोलकर ऐसे चुप्प जैसे कुछ बोले ही न हों. फिर बोले क्या कुछ गलत बोला मैंने? तब लोगों को समझ आया इनकी ये बात पूरी हो गयी. तब बजने लगी तालियाँ. जब तक तालियाँ खत्म होतीं तब तक आपने एक और मजेदार बात शुरू कर दी. उसे भी सुनें …

अटल बापू आपने पहाड़ की खूब तारीफ की. फिर बोले आप लोग मेहनती हो. कर्मठ हो. ईमानदार हो पर आप बिजनेस करना नहीं जानते. आप मार्केटिंग के गुर नहीं जानते. जो आपकी बड़ी कमी है. इस कमी को आपको पूरा करना होगा. ये वो दौर था जब पहाड़ों में घर-घर में साबुन बनाने की बात हो रही थी. वो बोले- आप बनाते हो साबुन या फिर कुछ पर उसका नाम रखते हो- घोडा छाप, हाथी छाप, टाइगर छाप, शेर छाप वगैरह-वगैरह. लोग तो डर जाते हैं आपके इन भारी भरकम नामों से. घोडा, हाथी, टाइगर, शेर से. जबकि आपके मैदान के साथी वैसा ही साबुन या फिर कुछ और बनाते हैं. पर वो नाम रखते हैं- लिरिल, लक्स, लाइफ बॉय आदि और सुन्दर-सुन्दर विज्ञापन और पैकिंग उनकी होती है….ऐसे मोहक अंदाज़ में वो इनके विज्ञापन बता रहे थे जैसे कोई मार्केटिंग का बंदा हो…सच में भीड़ सन्न थी. क्या मोहक, क्या सरल और क्या सही बात आपने कही कि जिन्दगी में सफल होना है तो- आपको अपनी रणनीतियां ज़माने के हिसाब से बदलनी होंगी…मैं तो दंग रह गयी आपको सुनकर. आप चुपचाप अपनी लम्बी बात कर चले गए. पर ये २ बात मेरे दिल में रह गयीं…शब्द इधर उधर हो सकते हैं पर आपका भाव शत प्रतिशत यही था….अटल बापू ये तो मेरी बात हुई अब दो बात तुम्हारी भी सही. तुम्हारी ये लाइनें मुझे बहुत पसंद हैं-

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं

हाँ मैं मन से मरूं- मौत से क्यों डरूं- मैं फिर-फिर आऊँगा. अटल बापू आपकी ये पंक्तियाँ मुझे बहुत पसंद हैं. इसलिए नहीं कि आपने लिखीं बल्कि इसलिए कि ये पंक्तियाँ ही जीवन-मरण के कालजयी चक्र का सार हैं. ऐसी बात वही डंके की चोट पर बोल सकता है जिसने जीवन का सार समझा हो-जाना हो-बुझा हो और फिर उसे ख़ामोशी और भद्रता से जिया हो. जीवन मरण के इस चक्र में- मैं मन से मरूं खास लाइनें हैं. जिनका मतलब जो कुछ मैंने अपने गुरूजी से समझा है वो ये है- जीते जी ही जीवन की छुद्र वासनाओं और ५ क्लेशों से मुक्त हो जाना. ये कालजयी बोल वही बोल सकता है जो एक मुक्त पुरुष की परिभाषा जानता हो. और जीते जी मुक्ति पाना जिसका लक्ष्य हो. आप वैसे ही मुक्त पुरुष थे ना अटल बापू. तभी तो मेरी माई जी ने आपको अटल बापू नाम दिया. तभी तो आप काल के गाल पर एक सशक्त हस्ताक्षर थे. अटल बापू आपकी मुझे एक और लाईन बहुत भाती है-

हे प्रभु इतनी ऊंचाई न देना
कि गैरों को गले न लगा सकूं

मैंने सालों पहले इनको पढ़ा था. अब भी इनका सार समझने की कोशिश में हूँ. शायद ये दोनों लाइनें ही अटल बापू को जानने को काफी हैं. इनको समझने-बूझने-जानने-मानने में ही मेरा जीवन ख़त्म हो जायेगा. सो अटल बापू इन दो लाइनों से इतर आपको जानने की चाह भी नहीं है मेरी. ये दोनों लाइनें मेरे मन में सालों से कैद हैं. और छोटे से पथरीले जीवन पथ का सार-सबक और पाथेय हैं.

अटल बापू आपका जाना बहुत से मायनों में एक युग का अवसान है. मेरे लिए आप एक राजनेता, कवि, लेखक, पत्रकार, आदि-आदि नहीं थे और ना ही रहोगे. मेरे लिए आप जीवन पथ पर सत्य की ख़ोज में डूबे उस परम सत्य को जानने के एक पिपासु यात्री थे. यदि ऐसा नहीं होता तो अटल बापू आप आज की गला काट राजनीति में भी अपनी भद्रता-शालीनता-मर्यादा को यूँ न बनाये रखते? आप अपनी उद्दात सादगी-सरलता को अपनी ढाल न बनाते? मानवीय मूल्यों को हर कीमत पर बचाने की वकालत न करते? अटल बापू आपकी ये ही सरलता मुझे पसंद थी. मेरा राजनीति से कोई वास्ता नहीं पर एक सच्चे सीधे इंसान को कौन नहीं पसदं करता? नहीं तो बहुत बड़े बड़े सुरमा धरती पर उतरे पर वो काल के गाल पर कंही खो जाते हैं ना? अटल बापू वो ही युग पुरुष बचता है जो मानवीय करुणा को जन-जन तक बांटने का पिपासु हो. परम सत्य पथ का जिज्ञासु हो. अटल बापू मैंने आपको ऐसे ही महसूस किया था जब पहली और आखरी बार देखा था.

चारों ओर आपको लेकर बड़ी बड़ी बातें हो रही हैं. मेरे पास कुछ खास समझ है नहीं आपको समझने की. हाँ मैं सिर्फ इतना जानती हूँ कि आप एक खास बन्दे थे. जिसमें एक ही खासियत थी कि आप बेहद सरल थे. मेरे गुरूजी बोलते हैं कि इसी सरलता को पाना ही मानव जीवन का उदेश्य है. अटल बापू आपकी ये ही बात मुझे पसंद आई. और आपके प्रति ये ही मेरा पहला और आखरी सच है. अटल बापू आप तो चले गए. आप पर कुछ लिखने का शहूर मुझे नहीं पर आपसे जुड़े ये संस्मरण ही आपको मेरी नम्र श्रधांजलि हैं. आप पर मैं कैसे लिख सकती हूँ. फिर भी मेरे शब्दों की धृष्टता को छोटा जान माफ करियेगा.

उम्मीद है इस नाजुक दौर में आपको मेरा शेर छाप संस्मरण पसंद आया होगा? क्या करूं हम टिरियाली लोग हैं ही कुछ ज्यादा ही रुफ-टफ. सो माफ करिए. अटल बापू मैं आपकी आभारी हूँ आपने मेरी बूढी माई जी और उनके पुरखों और टिहरी की विरासत ‘माई बाड़ा’ को नई टिहरी में सबसे सुन्दर और रौन्त्याली जगह पर बसाकर मुझ पर बड़ा उपकार किया. आपने ही पहली ईंट उसकी रखी- माई बाड़ा की जमीन देकर. सो मैं हमेशा आप की कर्जदार हूँ और रहूंगी. वैसे ये आपकी ही तो जिम्मेदारी थी ना साधुओं की विरासत को बचाना- वो भी एक महिला साध्वी की.
सो मेरी गुरु माईजी के प्रिय अटल बापू आपको उनका कोटि कोटि धन्यवाद और मेरा सादर नमन

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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