तीलू रौतेली के लिए सजा उसका मायका गोर्लाओं का गुराड़! लगने लगा है गाँव पहुँचने के लिए गोर्ला परिवारों का तांता..!
(मनोज इष्टवाल)
अभी नाटक की तैयारियां चल ही रही थी कि सावन की एक काली रात में भयंकर दुर्घटना घटित हुई! विगत २ अगस्त की शांय जब तीलू (वसुंधरा नेगी) रिहर्सल समाप्त कर बाइक से अपने गाँव लौट रही थी तो दुर्घटना में सडक से दो तीन खेत नीचे जा गिरी जहाँ गिरते ही बेहोश हो गयी! आनन फानन वसुंधरा को रातों-रात सतपुली स्थित हंस फाउंडेशन के अस्पताल लाया गया और जब वह होश में आई तो उसकी कुछ पल के लिए याददास्त चली गयी! लेकिन जाने किस माटी की बनी है यह बेटी? जैसे अकेले ही सब कुछ कर गुजरने को कृत संकल्प लिया हो!
आपको बता दें कि इस दुर्घटना में वसुंधरा नेगी की रीड की हड्डी की छठवीं हड्डी पर फ्रैक्चर आ गया लेकिन वह तब भी लगातार अपनी रिहर्सल पर डटी रही और जब दर्द सहा नहीं गया तब पुनः अस्पताल भारती हुई जहाँ उसकी कमर में प्लास्टर चढ़ाया गया और उसे कुछ भी ऐसा करने से इनकार कर दिया जिस से फिर यह नौबत न आये! लेकिन भला आंधी कभी रूकती है! तूफ़ान थमते जरुर हैं लेकिन कुछ कर गुजरने के बाद ..! इसका यह जुनूनी जज्वा शांत नहीं हुआ और वह प्लास्टर के बावजूद भी लगातार क्षेत्रीय कलाकारों को रिहर्सल देती रही! वसुंधरा नेगी ने सोशल साईट पर ट्वीट करते हुए कहा “तीलू घायल जरुर हुई हैं…लेकिन रुकी नहीं है !”अब जबकि आगामी १८ अगस्त को तीलू रौतेली के जन्मस्थान तल्ला गुराड़ में तीलू रौतेली के भव्य सेट पर यह नाटक अभिनीत किया जाएगा तब यह कहना जरुरी है कि इसकी अभी से व आज से ही उलटी गिनती शुरू हो गयी है! गढ़वाल के विभिन जिलों से व दिल्ली एनसीआर से कई लोग इस नाटक के प्रस्तुतिकरण देखने के लिए गुराड़ गाँव पहुँचने शुरू हो गए हैं! गुराड गाँव के गोर्ला रावतों ने तो इसे गाँव का उत्सव बना लिया है और देश के विभिन्न शहरों में बसे यहाँ के लोग परिवार सहित अपने अपने घर लौटने शुरू हो गए हैं!
(विगत बर्ष राजधानी देहरादून के टाउन हाल में तीलू रौतेली की भूमिका में वसुंधरा नेगी)
वसुंधरा नेगी ने जानकारी देते हुए बताया है कि इस नाटक की स्क्रिप्ट, गीत, परिकल्पना और निर्देशन वह स्वयं देख रही है जिसमें संगीत संजय कुमोला का, गायक-मीना राणा, संजय कुमोला, विकास भारद्वाज, दिनेश चुनियाल व जितेन्द्र पंवार, ध्वनी और प्रकाश संयोजन अभिषेक मैंदोला, युद्ध निर्देशक गोबिंद महतो, प्रोडक्शन व मंच प्रबन्धन खुशबु डिल्लो, मंच संचालन-गणेश खुगशाल गणी, वेशभूषा शर्मीला दत्त, मेकअप नीलम डींगरा, कास्ट मैनेजर राकेश प्रसाद लाइव म्यूजिक सरबजीत टम्टा का है जबकि इसमें जितने भी कलाकार है सब स्थानीय है जिनमें तीलू रौतेली की भूमिका वह स्वयं निभा रही हैं इसके अलावा रामू रजवाड-कमलेश जुगरान, शिब्बू पोखरियाल लक्ष्मण सिंह नेगी, मैणा देवी- श्रीमती पूनम देवी, भुप्पू रौत- रविन्द्र सिंह नेगी, घिम्डू हुड्क्या- रमेश ठंगरियाल, देवकी रेनू रावत, सुर्जी- राधिका रावत, वेलु- कोमल रावत, चैती- नेहा नेगी, भवानी सिंह- आकाश रावत, भक्तू रौत- अभिषेक कुमार, पत्वा रौत – कुलदीप सिंह, राजा पृथ्वीशाह- मनोज भट्ट, धामशाही (कत्युर राजा)- अभिषेक मैंदोला व बांसुरी वादक- निखिल कुमार जबकि सैनिकों में आदित्य रावत, प्रियांशु कुमार, अर्पित रावत, अनुज कुमार, लवलेश रावत, प्रियांशु रावत, जतिन नेगी, विकास सिंह, पंकज रावत, संतोष सिंह, दीपक बूधाकोटी, विकास गुसाईं प्रमुख हैं!
(रीड की हड्डी में असहाय दर्द के बावजूद भी प्र्शिक्षाना देते हुए वसुंधरा)
वसुंधरा आर्ट की प्रस्तुति के तहत “द लीजेंड ऑफ़ तीलू रौतेली” गढवाली नाटक के प्र्स्तुतिकरण के लिए मुख्य आयोजक की भूमिका के रूप में तीलू रौतेली के लेफ्टिनेंट जनरल (अ.प्राप्त) जे.एस. रावत ऋतुराज अनुराग चेरिटेबल ट्रस्ट, संयोजक रंजना रावत व उदय रावत अरण्य रिट्रीट डांग्यूँ रीठाखाल ने अहम भूमिका निभाई है! वसुंधरा कहती हैं कि उदय रावत का वह अहसान इस लिए नहीं भूल सकती क्योंकि पूरी रिहर्सल उन्हीं के अरण्य रिट्रीट में दी गयी वहीँ सुप्रसिद्ध नाट्य व सिनेमा से जुड़े कलाकार अभिषेक मैंदोला के आने से उन्हें काफी हेल्प मिली है!
(नए कलाकारों को टिप्स देते नाट्यकर्मी व सिनेमा जगत से जुड़े अभिषेक मैंदोला)
आपको बता दें कि तीलू रौतेली चौन्दकोट गढ़ी के गढ़पति भूप सिंह गोर्ला की पुत्री थी! जिसका जन्म जनश्रुतियों के अनुसार 8 अगस्त 1661में गुराड़ गाँव में हुआ था! बचपन में ही तीलू रौतेली की सगाई इडा गाँव (पट्टी मोंदाडस्यु) के भुप्पा सिंह सिपै के पुत्र भवानी सिंह सिपै के साथ हुई। इन्ही दिनों गढ़वाल में कन्त्यूरों के लगातार हमले हो रहे थे, और इन हमलों में कन्त्यूरों के खिलाफ लड़ते-लड़ते तीलू के पिता ने युद्ध भूमि प्राण न्यौछावर कर दिये। इनके प्रतिशोध में तीलू के मंगेतर और दोनों भाइयों (भग्तू और पथ्वा) ने भी युद्धभूमि में अप्रतिम बलिदान दिया। तब तक तीलू १२ बर्ष की हो गयी थी! माँ ने उसे भाइयों और पिता व पति के प्र्तिशोध का बदला लेने के लिए एक पुरुष के समान रण कौशल सिखवाया और मात्र १५ साल की उम्र में तीलू ने अपनी तलवार के दम पर गढ़वाल कुमाऊं में तैनात गढ़वाली सेना का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार हासिल कर लिया!
उसने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर एक सेना बनानी आरंभ कर दी और पुरानी बिखरी हुई सेना को एकत्र करना भी शुरू कर दिया। प्रतिशोध की ज्वाला ने तीलू को घायल सिंहनी बना दिया था, शस्त्रों से लैस सैनिकों तथा “बिंदुली” नाम की घोड़ी और अपनी दो प्रमुख सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर युद्धभूमि के लिए प्रस्थान किया।
सबसे पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ (वर्तमान कालागढ़ के समीप) को कन्त्यूरों से मुक्त करवाया, उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला, फिर वह अपने सैन्य दल के साथ “सल्ड महादेव” पंहुची और उसे भी शत्रु सेना के चंगुल से मुक्त कराया। चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आयी. कालिंका खाल में तीलू का शत्रु से घमासान संग्राम हुआ, सराईखेत में कन्त्यूरों को परास्त करके तीलू ने अपने पिता के बलिदान का बदला लिया; इसी जगह पर तीलू की घोड़ी “बिंदुली” भी शत्रु दल के वारों से घायल होकर तीलू का साथ छोड़ गई।
शत्रु को पराजय का स्वाद चखाने के बाद जब तीलू रौतेली लौट रही थी तो जल श्रोत को देखकर उसका मन कुछ विश्राम करने को हुआ, कांडा गाँव के ठीक नीचे पूर्वी नयार नदी में पानी पीते समय उसने अपनी तलवार नीचे रख दी और जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुकी, उधर ही छुपे हुये पराजय से अपमानित रामू रजवार नामक एक कन्त्यूरी सैनिक ने तीलू की तलवार उठाकर उस पर हमला कर दिया। निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर किया गया यह वार प्राणान्तक साबित हुआ। वहीँ यह भी कहा जाता है कि रामू रजवार ने नहाते समय तीलू के खुले बाल देखकर जब देखा यह तो महिला है जो हमसे हमारा राज छीनकर विजय होती गयी! ऐसे में रामू रजवार ने धोखे से तीलू की गर्दन उड़ा दी और उसी तलवार ने अपना गला भी रेट दिया!
कुमाऊं दुशांत के रिखणीखाल विकास खंड के कांडा गाँव में हर बर्ष तीलू रौतेली का मेला लगता है जिसमें आज भी उनका रणभूत नाचता है! बहरहाल देखना यह है कि कमर की हड्डी टूटने के बाद भी कमरबंद बांधकर वसुंधरा ठेठ गाँव के बच्चों को अभिनय के क्या गुर सिखा पाई है क्या ये बच्चे आम दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतर पायेंगे!
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