आखिर संगीता ने बजा ही दिए ऐसे ढोल-दमौ, जिसका हमें भी इंतजार था।
(मनोज इष्टवाल)
वो जब पांच साल की थी तब गाना शुरु कर दिया था वह जब 9वीं में पढ़ती थी तब कैमरा फेस कर लिया था। लेकिन तब से अब तक वह जितना भी गाती रही दूसरे के लिए गाती दिखी। चाहे टीवी चैनल पर झूमीगो को होस्ट करना रहा हो या विभिन्न कला मंचों पर…! संगीता की सुर गंगा किसके गीतों पर बहे यह कह पाना बड़ा मुश्किल था। और जब ढोल दमौ बजे तो आवाज की मिठास के पुट जो बहे तो कमाल बहे।
अपने सिनेमा कैरियर की शुरुआत नेपाली अल्बम “रमाइलो गीत” में उत्तराखण्ड फ़िल्म एसोशियेशन के अध्यक्ष एसपीएस नेगी के साथ बतौर अभिनेत्री मात्र 14-15 साल में करने वाली संगीता मदवाल आज भले ही शादी के बाद संगीता डौंडियाल हो गयी हों लेकिन आज भी उनके चेहरे की ताजगी ज्यों की त्यों बरकरार दिखाई देती है।
यकीनन आज भी अगर कोई आकर मुझसे कहे कि संगीता डौंडियाल ने कौन सा गीत गाया जो आपको सबसे पसन्द है तो मैं यही कहूंगा ” ढोल दमौ बजी ज्ञेना”!
ऐसा भी नहीं कि सुप्रसिद्ध गायिका संगीता डौंडियाल कभी लोकसंस्कृति के मंच से गायब मिली हों फिर भी मुझे जाने क्यों लगता है कि इस चेहरे को इस से पूर्व अच्छा प्लेट फॉर्म गायन में या फिर विजुअलाइजेशन में मिला हो जो उनके मनमुताबिक रहा हो। भले ही विजुअली संगीता डौंडियाल गढ़वळि फ़िल्म रैबार व टीवी प्रोग्राम झूमिगो में अपने जलवे बिखेर चुकी हों। लेकिन यह गीत तो ऐसे लग रहा है जैसे इन्हीं के लिए खास बना हो। जिस खूबसूरती के साथ गीत के हर शब्द के साथ उन्होंने इंसाफ किया है उतनी ही ख़ूबसूरती के साथ संगीतकार रणजीत ने इस गीत की हर रिदम पर मेहनत की है।
वहीं दूसरी ओर गीतकार संगीता डौंडियाल व मिलन आनन्द ने गीत पर काफी मेहनत की है। विजुलाइजेशन में गोबिंद नेगी यूँ भी कमाल करता आ रहा है इसमें उनकी सिनेमाफोटोग्राफ़ी ने गीत पर चार चांद लगा दिए। मैं बेहद ईमानदारी के साथ स्पष्ट शब्दों में लिखना चाहूंगा कि संगीता डौंडियाल जैसी सुप्रसिद्ध गायिका को गीत गाने से पहले अब बेहद जरूरी है कि वे उस से पहले गीतों का चयन करना शुरू कर दें। सिर्फ पैसे के लिए गाना गाकर प्रसिद्धि के चरम पर तो पहुँचा जा सकता है लेकिन अपनी मानसिक तसल्ली व लोक समाज को गीत का सुर सुनाने के लिए बाध्य करना इस कला का सबसे बड़ा पक्ष है जो उसको महानता की श्रेणी में शामिल करता है।
संगीता डौंडियाल को ईश्वर ने हर क्षेत्र में नेमत बख्शी है। अब उन्हें इस गीत के बाद अपने साथ खुद नेमत बख्शने का काम करना होगा क्योंकि मात्र दो हफ्ते में यह गीत 6 लाख के आस पास हो गया है। क्या कुमाऊँ क्या गढ़वाल जहां देखो वहीं हर एक के मोबाइल में ढोल “दमौ बजी ज्ञेना…दगड़या की बरती मा।” सुनने को मिल रहा है। ईमानदारी से कहूं तो हमने भी (राजेन्द्र रावत और मैंने) नैनीताल में इस गीत का जमकर लुत्फ उठाया और इस गीत ने हमें थिरकने को मजबूर कर दिया।
मुझे लगता है आप सबको भी संगीता का यह अंदाज पसन्द आएगा। आप भी देखिए: