जन्मदिन विशेष पर-
जब पहले ही हफ्ते में बिक गई 50 हजार सीडी। नौछमी …ने भरभरा कर गिरा दी राजनीति की चट्टान।
(मनोज इष्टवाल)
एक ओर प्रसिद्ध संगीतकार राजेन्द्र चौहान ने जहां लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के जन्मदिन पर उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में उन्हीं के गीतों के गायन के लिए आम मंच की तैयारी की है तो दूसरी ओर प्रदेश के हर भाग में ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी उनके चाहने वालों ने अपने अपने स्तर से लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के जन्मदिन को मनाने की तैयारी की है। टिहरी के एक लोक संस्कृति के चितेरे कुम्मी घिल्डियाल तो हर बर्ष भारतीय परम्पराओं के अनुसार उनका हर बर्ष कई बर्षों से जन्मदिन मनाते हैं और पूरे साजबाज के साथ उनके मित्रगणों की मंडली उनके घर में चौपाल के रूप में उनके घर में बैठकर उनके गीतों का जश्न ठेठ वैसे ही मनाते हैं जैसे बैठकी होली हो।
आखिर ऐसा है क्या इस शख्स में! जिसके एक गीत से इतना बबाल मचता है कि विश्व प्रसिद्ध टेलीग्राफ तक को उन पर खबर छापनी पड़ती है। 30 जनवरी 2007 में “द टेलीग्राफ” का कलकत्ता एडीटीशन लिखता है कि जागर शैली के गीत नौछमी नारायण गीत ने अब तक के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करते हुए एक हफ्ते में ही 50 हजार सीडी की बिक्री दर्ज की। वहीं भारी दबाब के बावजूद रमा कैसेटस ने इसकी लाखों सीडियां बिक्री की।
आपको ज्ञात होगा कि यह सीडी से पूर्व ऑडियो मार्केट में सितम्बर 2006 में आ गया था। जिसने तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की चूल्हें हिलाकर रख दी थी और यहीं से एक राष्ट्रीय नेता के पतन की ऐसी शुरुआत हुई कि फिर वे संभल नहीं पाए। कहाँ नारायण दत्त तिवारी प्रधानमंत्री के प्रबल दावेदार समझे जा रहे थे और कहां उनकी राजनीतिक सबसे बड़ी हार के बाद उन्हें राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया।
इसके बाद जब लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने दुबारा “अब कतगा खैल्यु” गीत से तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ निशंक को कटघरे में खड़ा किया तब से अब तक हर मुख्यमंत्री में उनका खौफ नजर आता है। और तो और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तो लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के समक्ष ही कह दिया कि घना नन्द तो हमारे दोस्त हुए नेगी जी से तो जानबूझकर दोस्ती बनाये रखनी पड़ती है।
बहरहाल लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने जितना पहाड़ी या गढ़वाली लोक समाज व लोक संस्कृति को अपने गीतों के माध्यम से दिया है वह अभी तक न भूतो न भविष्यति की बात लग रही है। उनके जन्मदिन के लिए सिर्फ ये यादें ही शेष हैं कि एक गीत अगर शिद्दत के साथ आ जाये तो व्यवस्थाएं बदलने में समय नहीं लगता।