(मनोज इष्टवाल)
सौभाग्य देखिए आज बीच में खड़े विश्वमोहन थपलियाल जी का 92वां जन्मदिन है। लखनऊ में वे मोती लाल मेमोरियल में पहले सदस्य बनने का गौरव हासिल करने वाले व्यक्ति हैं। वे पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने रवाई, जौनपुर जौनसार बावर क्षेत्र पर सबसे पहले कार्य किया। जनजाति क्षेत्र पर कार्य करने पर उन्हें यह गौरव दिया गया।
पंडित जवाहर लाल नेहरू के पिता के नाम मोती महल मेमोरियल सोसायटी बनाई गई जिसे लखनऊ के किसी राजा द्वारा कांग्रेस को दान किया गया था। मोती महल उस राजा की ऐशगाह हुआ करती थी जिसके साथ एकड़ों जमीन थी। आपको बता दें कि चन्द्रभान गुप्ता व नारायणदत्त तिवारी भी मोती महल के लाइफ मेंबर रहे।
1966 में आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रभान गुप्ता ने विश्वमोहन थपलियाल जी को पौड़ी गढ़वाल कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नामित कर दिया। उन्होंने 1969 में जिला कांग्रेस कमिटी के पद से त्याग पत्र दे दिया।
उन्होंने कहा मैंने इस दौरान गलतियां की हैं उसमें चंद्रमोहन सिंह नेगी को टिकट दिलवा दी। विश्वमोहन थपलियाल कहते हैं वे कभी भी कांग्रेस के प्राथमिक सदस्य नहीं रहे।
उन पर विस्तार से लिखूंगा फिलहाल विश्वमोहन थपलियाल जी अपने पिता जी द्वारा लिखी पुस्तक “विश्व दर्शन” के अंग्रेजी अनुवाद को छपवाने आज बिन्सर पब्लिकेशन आये हुए थे। ज्ञात हो कि उनके पिता महात्मा राम रतन की पुस्तक पर 1938 में तब बबाल मचा जब वायसराय लिंगलिज्ञथौ ने उन्हें कहा कि ब्रिटेन में वैज्ञानिक जो खोज में लगे हैं वो तुम कैसे अपनी किताब में पहले ही साबित कर सकते हो। इसलिए उन्हें जेल भेजा गया प्रताड़नाएं दी गयी जिसके बाद उनका दिमाग विचलित रहा और 40 साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जहर देकर मार डाला था।
विश्व दर्शन का पहला एडिशन देहरादून 1930 में तब छपा जब महात्मा राम रतन 28 बर्ष के थे। दूसरा एडिशन 1938 जो गंगा फाइन आर्ट प्रेस लखनऊ से छापा गया। ये दोनों एडिशन महात्मा रामरतन ने छपवाए थे जबकि तीसरा एडिशन विज्ञान प्रेस ऋषिकेश से उनके पुत्र विश्वमोहन थपलियाल द्वारा सन 1962 में दो हजार किताबें छापी गयी जिसका मूल्य मात्र 6 रुपये रखा गया। तत्कालीन टिहरी जिलाधिकारी गंगा राम ने किताब देखते ही दो हजार किताबें एक साथ खरीद ली व सभी खण्ड विकास अधिकारियों को आदेश जारी कर दिये कि इस वैज्ञानिक किताब को अवश्य खरीदें।
तत्कालीन शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश आचार्य जुगलकिशोर के भ्रमण के दौरान मेरी उनसे मुलाकात हुई और किताब का मात्र एक पृष्ठ पढ़ा तो गदगद हो गया उसके बात उन्होंने उस किताब पर लखनऊ असेम्बली में भाषण दिया। उन्होंने कहा कि किताब को सरकार को दे दो उस से पूरे देश को ज्ञान गौरव प्राप्त होगा लेकिन मैंने साफ इंकार कर दिया कि जब हमारी स्थिति ठीक होगी तब इसे छपवा लूंगा।
विश्वमोहन जी बताते हैं कि “विश्व दर्शन” का अंग्रेजी वर्जन छपने से पूर्व इसे महानिदेशक उत्तराखण्ड पुलिस अनिल रतूड़ी पढ़ रहे हैं ताकि इसमें कोई गलती ना रहे। वे कहते हैं कि इसी किताब की रॉयल्टी से उन्होंने बद्रीनाथ के निकट सन 1970 में 10 किमी. क्षेत्र में बद्रीश वन की शुरुआत की लेकिन वहां 1990 तक एक भी पेड़ नहीं पनप पाया। उन्होंने कहा कि उन्हें स्वर्गारोहण से पहले एक महात्मा मिले व बोले कि जब तक आप बिष्णु महायज्ञ नहीं करोगे व 108 पेड़ भोज पत्र नहीं लगाओगे तब तक कुछ नहीं होगा। फिर उन्होंने 1993 में वहां बिष्णु महायज्ञ करवाया। उसके बाद जंगल में पौध पनपनी शुरू हुई जो आज 10 किमी. दायरे तक फैल गयी।
और भी बहुत है विश्वमोहन थपलियाल जिस शख्सियत पर लिखने के लिए । लेकिन फिलहाल इतना ही। आप को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं।