(मनोज इष्टवाल)
यह बात तो हम सभी जानते हैं कि भारत बर्ष में सितंबर 2025 तक लगभग 393 प्राइवेट सैटेलाइट न्यूज़ टीवी चैनल काम कर रहे हैं। और तो और आये दिन इनमें बढ़ोत्तरी होती ही जा रही हैं लेकिन साथ ही टीवी पत्रकारिता के नामी-गिरामी चेहरे आज बड़े संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं। भारतीय टीवी पत्रकारिता आज एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जहाँ नामी-शानदार पत्रकारों का चैनलों से पलायन आम हो गया है। यह दौर 2024-2025 में और अधिक तेज हुआ है। इस संक्रमण में कई नाम धनाढय वरिष्ठ पत्रकारों ने इस्तीफे दिए हैं या फिर उनकी जबरन विदाई की गई। यह भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अचंभित करने वाला समय कहा जा सकता है क्योंकि यह सिर्फ व्यक्तिगत फैसलों नहीं, बल्कि उद्योग की गहरी समस्याओं का प्रतिबिंब कहा जा सकता है।
यही कारण भी है कि भारत बर्ष प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में सन् 2025 में 151वें स्थान पर पर खिसक गया है। जो देश के पत्रकारिता जगत के लिए एक गंभीर चेतावनी समझी जानी चाहिए क्योंकि आज बिशेषकर टेलीविजन पत्रकारिता अपने मूल स्वरूप से भटककर एक ऐसे दौर में चली गई हैं जहाँ कुछ न्यूज़ चैनल TRP (टेलीविजन रेटिंग पॉइंट) के चक्कर में सनसनी, गाली-गलौज और पक्षपाती कवरेज पर जोर दे रहे हैं। वहीं वरिष्ठ पत्रकार, जो तथ्यपरक रिपोर्टिंग में विश्वास रखते हैं, उन्हें ऐसी पत्रकारिता व न्यूज़ चैनल मालिकों के इस बाजारीकरण रवैये ने हक्का-बक्का करके रख दिया है। उनके पास वर्तमान में दो ही ऑप्शन हैं, एक या तो वर्तमान की चाल-ढाल में परिवार पालने के लिए हथियार ड़ालकर नए तौर तरीके सीख लें या फिर बाईज्जत ऐसे पेशे को गुड़बाय, नमस्ते, सलाम कह दें।
यह भी जगजाहिर है कि टीवी उद्योग में विज्ञापन राजस्व गिर रहा है, क्योंकि 2021 से 2024 तक DTH सब्सक्राइबर्स 69 मिलियन से घटकर 62 मिलियन हो गए हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स (OTT, YouTube) का उदय चैनलों की दर्शक संख्या छीन रहा है। नतीजा यह निकल रहा है कि कॉस्ट-कटिंग के नाम पर वरिष्ठ पत्रकारों को हटाया जा रहा है। जो भले ही चैनल मालिकों के लिए वर्तमान में फायदेमंद हो लेकिन लोकतान्त्रिक रूप से यह लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ के लिए अच्छा प्रयोग नहीं कहा जा सकता है।
वर्तमान में कई नामी गिरामी पत्रकार नौकरी से इस्तीफ़ा देकर अब स्वतंत्र डिजिटल प्लेटफॉर्म्स (YouTube, पॉडकास्ट) पर जा रहे हैं, जहाँ वे बिना दबाव के काम कर सकते हैं। यह ट्रेंड 2019 से तेज हुआ, जब OTT ने टीवी को चुनौती दी। और अब OTT प्लेटफार्म तेजी से न्यूज़ चैनल्स ले दर्शकों को छीनकर अपने पक्ष में कर रहा है। देश में प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में लगातार गिरावट (2025 में 150वें स्थान पर) ने पत्रकारों को असुरक्षित महसूस कराया।
रविश कुमार सहित कुल 10 प्रमुख वरिष्ठ पत्रकार ऐसे हैं, जिन्हें टीवी चैनलों की नौकरी छोड़नी पड़ी या उन्हें जबरन हटाया गया है। यह संख्या पूर्ण नहीं है, (कई मामलों में गोपनीयता के कारण रिपोर्टिंग सीमित है), लेकिन ये वे नाम हैं जो सार्वजनिक रूप से चर्चित हैं। ये ज्यादातर 2018 से 2025 के बीच के हैं, जिसमें 2024-2025 के हालिया केस शामिल हैं। टीवी पत्रकारिता के ऐसे नामी-गिरामी पत्रकारों में अगर देखा जाय तो पहले स्थान पर रविश कुमार आते हैं।
आइये जानते हैं किस टीवी पत्रकार को कारणों में इस्तीफा (स्वैच्छिक लेकिन दबाव से), जबरन हटाना या उत्पीड़न शामिल हैं:-
रविश कुमार, NDTV India 2022 (नवंबर) विदाई, तदोपरान्त अदानी ग्रुप के अधिग्रहण के बाद नैतिक आधार पर इस्तीफा लिया गया या स्वीकार किया गया।, निधि कुलपति, NDTV 2025 (मई) को संतुलित पत्रकारिता के कारण प्रबंधकीय दबाव, स्वतंत्र आवाज के रूप में जाना जाता रहा लेकिन फिर भी इनको हटाया गया जिसके कारण स्पष्ट नहीं हैं।, उमाशंकर सिंह NDTV, 2025 (जुलाई) को सिस्टम का दबाव और पक्षपाती कवरेज का विरोध करना महंगा पड़ा उन्हें इस्तीफा देकर डिजिटल शिफ्ट किया गया। , अभिषेक श्रीवास्तव Outlook Hindi, 2025 (मई) इनसे जबरन इस्तीफा लिया गया और वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे से पहले असम्मानजनक विदाई कर दी गई। रोहित सांवाल, ABP News , 2025 (सितंबर) को मालिकों का वैचारिक दबाव में हटाया गया जिसके पश्चात् उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म शुरू करने की योजना बनाई।, प्रियंका, Republic टीवी, 2025 (अगस्त) को प्रबंधन का उत्पीड़न और पक्षपाती प्रसारण के इस्तीफ़ा देना पड़ा। उन्हें प्रेस आईडी रद्द कर क्षेत्र छोड़ना पड़ा। इसमें कितनी सच्चाई है, वह जांच का बिषय है।, शमशेर सिंह, India Daily Live , 2024 (फरवरी) को उद्योग की गिरावट और दबाव के फलस्वरूप वरिष्ठ पत्रकार के रूप में इस्तीफा देना पड़ा।, विनीता यादव NewsNation/ABP, 2019 (मार्च 2025 में चर्चा) ने पत्रकारिता स्तर गिरने से तंग आकर 19 साल बाद विदाई को सही फैसला बताया। , प्रसून बजपेयी, ABP News 2018, को एंटी-मोदी कार्यक्रम के बाद जबरन इस्तीफा देना पड़ा। सरकार समर्थक दबाव के कारण उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया।, मिलिंद खंडेकर ABP News, 2018 को एंटी-गवर्नमेंट शो के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया व संपादक के रूप में हटाया गया। यही नहीं इनके अलावा कुछ और प्रसिद्ध नाम भी हैं जैसे अंजलि इष्टवाल (शर्मा) ND TV, पूजा सेठी India TV, आशुतोष चतुर्वेदी TV today Network आजतक, चित्रा त्रिपाठी TV today Network आजतक, अजीत अंजुम News 24/TV9, आशिफ़ इक़बाल Jantantra TV सहित कई अन्य नाम भी शामिल हैं जिनके द्वारा इस्तीफ़ा दिया गया या इनकी असमय विदाई हुई है।
इन टॉप गन्स के अलावा भी बहुतेरे उभरते, चमकते पत्रकार भी अकारण ही टीवी चैनल्स से विदा कर दिये गए या विदा ले चुके हैं। मीडिया में यह गिरावट नये मीडिया के जन्म के बाद आई है या फिर मीडिया घराने के लिए इनके पैकेज ज्यादा बड़े होने के कारण इन्हें विदा करना ही उचित समझा होगा।
कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि मीडिया के इन धुरंधर पत्रकारों का हश्र देखने के बाद अब ऐसा महसूस होता है कि पत्रकारिता भी एक बनिया की ऐसी नौकरी हो गई है, जिसमें अनिश्चितताओं का अम्बार लग गया है। कब किसकी छुट्टी हो जाय कोई पता नहीं। उपरोक्त का अगर संदर्भ लें, तब 70% मामलों में प्रबंधकीय/राजनीतिक दबाव मुख्य कारक व कारण कहे जा सकते हैं। जिसके फलस्वरूप कई अब YouTube/डिजिटल पर सक्रिय होकर रविश कुमार जैसे दमखम के साथ मैदान में उतर रहे हैं क्योंकि इसके अलावा अब सीनियर्स के पास कोई चारा भी नहीं है।
टीवी चैनल घराने की इन अप्रत्याक्षित घटनाओं को प्रेस फ्रीडम इंडेक्स से भी जोड़कर देखा जा रहा है। वर्तमान में प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में सन 2025 में भारत 151वें स्थान पर पर खिसक गया है। CPJ रिपोर्ट्स के अनुसार, 2024-2025 में दर्जनों पत्रकारों पर हमले/धमकियां हुईं, लेकिन TV स्पेसिफिक विदाइयां सीमित रिपोर्टेड हैं। यह सब प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक कुठाराघात के समान कहा जा सकता है।