Sunday, July 13, 2025
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37पौड़ी (सुरक्षित): झगुल्ला बल द्वी अर मुख वीई! इस बार राजनेताओं को मुश्किल हो रहा है मतदाताओं का मिजाज समझना।

(मनोज इष्टवाल)

सिर्फ यह एक ग्राम सभा का आंकलन नहीं बल्कि जितने भी विधान सभाओं में भ्रमण करो, ऐसे ही चुनावी मंजर दिखने को मिल रहा है। वही चेहरे और दल विभिन्न…कांग्रेस का उम्मीदवार तो हम उसके, भाजपा का उम्मीदवार तो हम उसके…! बस मलाई काटने में लगे हैं तो बिचौलिए। जो गांव में जितने लोगों की दारू पार्टी कर सके वह उतनी अधिक भीड़ लाकर अपने प्रत्याक्षी के मुंह के आगे खड़ा देता है। आखिर गांव वालों के यही लोग तो सुख दुःख के साथी हैं, उन्हें राजनेताओं से क्या लेना देना।

विचित्र बात तो यह है कि चुनावी उम्मीदवार हैरान परेशान नजर आ रहे हैं कि कल तक तो यह सारी जनता मुझे वोट देने की रस्में-कसमे खा रहे थे फिर आज दूसरे के साथ फिर उसी तरह क्यों खड़े दिख रहे हैं। जनता कह रही है कि चिंता न करो अब हम भी तुम्ही जैसे राजनीतिक हो गए हैं जो भले से समझ रही है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। एक ओर वर्तमान भाजपा सरकार को कांग्रेस महंगाई व बेरोजगारी पर घेर रही है तो दूसरी ओर जनता हाँ में हां मिलाकर यह भी जान ही रही है कि कोरोना काल में घर लौटे लोगों ने कम से कम गांव की रौनक तो लौटाई। महंगाई सही लेकिन समय पर राशन, गैस की उपलब्धता तो है।

जनता यह भी भले से जानती है कि जो भाजपा राज में भ्रष्टाचार का रोना रो रहे हैं वही नेता, समाजसेवी सबसे ज्यादा अवैध धंधों से माल कमा रहे हैं। जिस गढ़वाल कुमाऊं से हर साल हजारों युवा फौज में भर्ती होते थे आज वह सैकड़े तक भी सीमित नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि शराब के प्रचलन ने सबको खोखला बना दिया है व उनकी शारीरिक शक्ति कम कर दी है।

कांग्रेसी विपक्ष की भूमिका में हैं तब उन्हें ध्यान आता है कि पैट्रोल, गैस, खाद्य सामग्री महंगी हो गयी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत रसोई गैस सिलेंडर कंधे में लादकर दिखाते हैं कि गैस ने महंगाई में कमर तोड़ है। लेकिन यह पब्लिक है सब जानती है और मुस्करा भर देती है क्योंकि पढ़े लिखे समाज को भले से पता है कि भाजपा राज में एलपीजी अर्थात रसोई गैस सिलेंडर महंगे होने का रोना रोने वालों…काश आपने कभी यह भी गौर किया होता।
कांग्रेस राज 2004 में – 281 रुपये जो 1 मई 2014 में 928 था व इसमें कोई सब्सिडी नहीं थी। गैस लेने के लिए सुबह 4बजे से लाइन लग जाती थी। इस हिसाब से गैस मूल्यों में इन 10 बर्षों में 197 प्रतिशत मूल्य वृद्धि हुई।

भाजपा राज 1 जून 2014 में रसोई गैस मूल्य 905 रुपये जिस पर सब्सिडी छूट के बाद गौस मूल्य लगभग 859.50 रुपये पड़ती है। इस हिसाब से इन 7से 8 बर्षों के अंतराल में रसोई गैस मूल्य पर 5 प्रतिशत कमी दर्ज हुई है।
अब आप ये बताओ किस काल में गैस कीमत महंगी हुई। कांग्रेस या भाजपा?

अब ऐसे में जनता की खामोशी का अंदाजा राजनीतिक दलों को लगाना मुश्किल हो रहा है कि आखिर हम सरकार में लौट भी रहे हैं या नहीं। कल तक जो एग्जिट पोल उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनते दिखा रहे थे वे अचानक हरीश रावत की कांग्रेस उपाध्यक्ष अकील अहमद से गोपनीय मुस्लिम यूनिवर्सिटी की डील व ईसाइयों के लिए प्रार्थना सभा व मुस्लिमों के लिए नमाज अदा करने के हरीश रावत के मुख्यमंत्री काल के शासनादेश के वायरल होने के बाद एकाएक पिछड़ती हुई बहुत पीछे पहुंच गई है।

यह कांग्रेस भी जानती है कि पहाड़ का व्यक्ति राष्ट्र व धर्म से बढ़कर न महंगाई को तबज्जो देता है न अन्य किसी बात को। राष्ट्र प्रेम उत्तराखंडी समाज की रग रग में तो धर्म उनके गर्व गुमान में शामिल…ऐसे में अन्य धर्मों की यहां वकालत करना सबको नागवार लगता है। पिछले चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार के पीछे भी जनता की यही नाराजगी थी कि हरीश रावत के चुनाव प्रचार के दौरान उनके आगे पीछे दांये बांये सब मुस्लिम समुदाय के लोग दिखाई दिए। जनता ऐसे में यह तक भूल गयी कि ये वही हरीश रावत हैं जिन्होंने हमारे लोकगीतों का प्रमोशन किया, हमारे खाद्यानों को तबज्जो दी और कुमाउनी पर्व हरेला को उत्तराखंड में विशिष्ट पहचान दी।

अब पौड़ी विधान सभा सीट की ही बात करें तो फोटो में ग्राम सभा धारकोट कल्जीखाल की महिला एवं पुरूष दिखाई दे रहे हैं। पहले दिन भाजपा उम्मीदवार राजकुमार पोरी के आगमन पर ग्राम सभा उन्हें आदर पर प्रदान करती है तो दूसरे दिन कांग्रेसी उम्मीदवार नवल किशोर के लिए भीड़ जुटती है। भाजपा उम्मीदवार के साथ वर्तमान प्रधान तो कांग्रेस के साथ पूर्व प्रधान दिखते हैं। यह ग्रामसभा कभी पूर्ण रूप में भाजपा मोदी समर्थक थी लेकिन ग्रामीण राजनीति में प्रधानों की हार जीत के बाद कांग्रेस व भाजपा में बंटती दिखाई दे रही है। चेहरे स्वयं गवाही दे रहे हैं कि वे खड़े दोनों पार्टियों के साथ हैं लेकिन उन्होंने किसे वोट करना है, वे अच्छे से इसका मन बना चुके हैं। वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत ‘अजेय’ इस विधान सभा की समीक्षा अपने शब्दों में कुछ इस तरह करते दिखाई देते हैं:-

37पौड़ी (सुरक्षित): एन्टीइनकमबेंसी के जख्म से तो उभरी भाजपा लेकिन मतदाता खामोश।

विधानसभा सीट पौड़ी (अजय रावत ‘अजेय’)

मतदान को बामुश्किल 8 रोज बाकी हैं, पौड़ी में भाजपा व कांग्रेस के प्रचार अभियान का आलम यह है कि कार्यकर्ताओं की सक्रियता उसी वक़्त दिखाई दे रही है जब उनके क्षेत्र में प्रत्याशी का भ्रमण हो रहा है, बाकी दोनों तरफ खामोशी ही है। हालांकि इसे मौसम के कहर का नतीज़ा भी माना जा रहा है।

इधर, शुरुआती दौर में भाजपा के प्रति जो सत्ता विरोधी लहर की धारणा इस विधान सभा में बन गयी थी, उससे पार्टी काफ़ी हद तक उभरने में कामियाब हो गयी है। व्यक्ति के रूप में राजकुमार पोरी को जनता का अच्छा स्नेह मिलता नज़र आ रहा है, यह दीगर बात है कि यह स्नेह ईवीएम के बटन दबाने के दौरान भी कायम रहता है अथवा नहीं..? वहीं प्रचार अभियान में पार्टी के अन्य दावेदार रहे निवर्तमान विधायक व अन्य नेताओं की निष्क्रियता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, हालांकि इसके पीछे भी एक रणनीति बताई जा रही है।
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी नवल किशोर जो शुरुआत में बीते 5 साल जनता से कटे होने के तंज़ झेल रहे थे, अब उन पर उठ रहे ऐसे सवालों की मार निःसंदेह दिन ब दिन कमजोर पड़ती जा रही है, वहीं विनोद धनोशी जैसे प्रबल दावेदारों द्वारा पार्टी के पक्ष में अपील जारी किए जाने से नवल के समक्ष आ रही अंतर्विरोध की मुश्किलें भी कम होती जा रही हैं।

लेकिन सबसे अहम तथ्य यह कि भले पहाड़ियों पर पसरी बर्फ अब पिघलने को हो, लेकिन मतदाताओं की खामोशी पिघलने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ ग्रामीण महिलाओं व नए वोटर्स में मोदी फैक्टर का अंडर करंट अभी भी मौजूद है इसके विपरीत कर्मचारियों का झुकाव परिवर्तन की तरफ नज़र आ रहा है। प्रचार अभियान के घनत्व के मानक पर यहां बीजेपी आगे है किंतु इस सीट पर जीत हार का अंतर इतना कम हो सकता है कि जीत का सेहरा किसी के भी सर पर सज सकता है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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