Saturday, July 27, 2024
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200 करोड़ की लागत से पौड़ी जिले के राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के लिए टिहरी गढ़वाल के विधायक विनोद कंडारी का समर्पण!

200 करोड़ की लागत से पौड़ी जिले के राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के लिए टिहरी गढ़वाल के विधायक विनोद कंडारी का समर्पण!

(मनोज इष्टवाल)

यह सचमुच आश्चर्यजनक है कि विधायक टिहरी गढ़वाल के देवप्रयाग विधान सभा क्षेत्र का व काम पौड़ी जिले में करवाए ! वो भी एक आध करोड़ का नहीं बल्कि पूरे दो सौ करोड़ की लागत का..! तो आप ही बताइये हैरत की बात है या नहीं! ऐसा तो कोई बिरला कैबिनेट मंत्री भी नहीं सोचता कि वह अपनी विधान सभा से बाहर के क्षेत्र में इतना बड़ा बजट खर्च करने की बात करे! उत्तराखंड प्रदेश का यह बड़ा दुर्भाग्य है कि यहाँ चंद मंत्रियों के अलावा अभी तक ऐसा कोई कैबिनेट मंत्री पैदा नहीं हुआ जिसने क्षेत्रवाद व अपनी  विधानसभा से बाहर करोड़ों के काम करने के लिए प्रदेश हित की बात सोची हो! 

(फ़ाइल फोटो)

भले ही राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान पौड़ी गढ़वाल के अलकनंदा भागीरथी संगम के पास अवस्थित है लेकिन यह कम लोग जानते हैं कि यह क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल में होते हुए भी टिहरी गढ़वाल के विधान सभा देवप्रयाग का ही क्षेत्र है और शायद यही कारण भी है कि यहाँ के विधायकों ने इस सीमान्त क्षेत्र में हर संभव नेक नियति के साथ अपना कार्य किया है! वर्तमान विधायक विनोद कंडारी इसे क्षेत्रीय प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते हैं और कहते हैं यह हमारे लिए गौरव की बात है!

आपको बता दें कि बर्ष 1908 में देवप्रयाग में संस्कृत संस्थान की नींव ऋषि परम्परा के अनुसार रखी गयी थी। इसे रघुनाथ कीर्ती आदर्श संस्कृत महाविद्यालय नाम दिया गया जो कि नरसिंगाचल पर्वत पर स्थित है। वहीँ कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि इसे सन 1960 में स्थापित किया गया था जो बहुत ही कम संसाधनों के चलते बस सिर्फ गतिमान रहा!  फिर भी तत्कालीन विद्वानों और समाजसेवियों ने अपने स्मरणीय योगदान से इस संस्थान को सारस्वत साधना का बेजोड़ उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। प्रसिद्ध कवि सदानन्द डबराल ने रासदिहाल एवं नर नारायणीयम आदि काव्यों से विद्या जगत में अपना योगदान दिया और पंडित बालकृष्ठ भट्ट शास्त्री ने कालीदास भू-विलास तथा आर्यों का आदि देश जैसी रचनाओं से अपने वैद्वष्य के कीर्तिमान स्थापित किये। बाद में अनेक विद्वानों ने भी समय-समय पर इस महाविद्यालय एवं संस्कृत भाषा के संवर्धन  में अपना योगदान प्रदान किया।

प्राप्त अभिलेखानुसार सन 1944-45 से निरन्तर इस महाविद्यालय को राज्याप्रदान प्राप्त होता आ रहा है। सन 1954 से साहित्य शास्त्री परिक्षम की स्वीकृति तथा इससे पूर्व मध्यमा परीक्षा की स्वीकृति मिली थी। शिक्षा की यात्रा में इस विद्यालय ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया लेकिन कई स्वयंसेवियों और विद्वानों के अथक प्रयास से इस संस्था का सकारात्मक विकास हुआ। यद्वपि यहाँ पर मानव संसाधन भौतिक संसाधन, आर्थिक संसाधनों के कमी थी लेकिन समाज के कुछ लोगों ने इसके सभी आयामों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। 

देवप्रयाग विधान सभा क्षेत्र के विधायक विनोद कंडारी का मानना है कि यह संस्थान राज्य निर्माण के पश्चात उस तेजी से विकसित नहीं हो पाया जिस तेजी से होना चाहिए था लेकिन अब वह इसे राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भव्य स्वरूप देने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं ताकि हमारे संस्कारों की यश कीर्ति विश्व स्तर तक पहुंचे! उन्होंने बताया कि अभी तक इस संस्थान के प्रथम चरण में 98 करोड़ की स्वीकृति हो चुकी है जिसमें 35 करोड़ अभी तक अवमुक्त हो चुके हैं और इसके व्यवस्थित होते होते यह प्रोजेक्ट लगभग 500 करोड़ तक पहुंचेगा जबकि यह तय है कि इस पर 200 करोड़ तक की लागत खर्च होगी ताकि हम इसमें विश्व स्तरीय संसाधन जुटा सकें व धर्म संस्कृति ऋषि परम्पराओं में ब्याप्त अनुशासन का परचम विश्व भर में लहरा सकें! उन्होंने बताया कि इस भवन के निर्माण की स्वीकृति सन 2016 में मानव संसाधन विकास मंत्री केंद्र सरकार स्मृति ईरानी द्वारा दी गयी थी तत्पश्चात 7 मई 2017 में इसके लोकार्पण के लिए तत्कालीन महामहिम  राज्यपाल के के पाल आये व पुनः 8 नवम्बर 2017 में इसका लोकार्पण मानव संसाधन विकास केन्द्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सत्यपाल सिंह द्वारा किया गया! इस दौरान उत्तराखंड के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. धन सिंह रावत, पौड़ी विधायक मुकेश कोहली भी उपस्थित रहे !

वर्तमान में इस संस्थान में विश्व भर से छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं ! अभी तक राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान परिसर में प्रशासनिक भवन, छात्रावास, गेस्ट हॉस्टल, सहित कक्षाएं संचालित होने के लिए भवन निर्माण हो चुके हैं जबकि ऑडियोटोरियम सहित कई और भवनों का निर्माण कार्य होना बाकी है! शुरूआती दौर में यह संस्थान कई बर्षों तक किराए पर चल रहा था ! विनोद कंडारी कहते हैं कि उन्हें इस बात की ख़ुशी है कि यह भवन ऐसे स्थान पर निर्मित है जहाँ से माँ गंगा धाराप्रवाह पूरे देश में बहती हुई हिन्दू धर्म संस्कृति के हर अध्याय को जोडती हुई आगे बढ़ रही है!  

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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