Saturday, July 27, 2024
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15 बर्षों में 4 लाख से भी अधिक बलात्कार के मामले! सिर्फ एक पर हुई फांसी !

(मनोज इष्टवाल)

आंकड़े वास्तव में तब आपको चौंका देते हैं जब आप उन पर सरसरी नजर मारते हैं! हैदराबाद तेलांगना में डॉ. रेड्डी के रेप आरोपियों के इनकाउंटर के बाद जो विजय जश्न पूरे देश में देखा जा रहा है वह शुकून देने के साथ न्यायपालिका की लचर व्यवस्था पर कहीं न कहीं प्रश्न चिह्न अवश्य लगाता है क्योंकि इस इनकाउन्टर की खुशियों में वह बात बिल्कुल सामने दिखाई दे रही थी जो न्याय पालिका से जुडी हुई है! अगर ऐसा न होता तो मात्र 15साल में 4 लाख से अधिक रेप केस दर्ज नहीं होते व इनमें मात्र एक व्यक्ति को ही अब तक फांसी हुई है! 25 प्रतिशत अर्थात मात्र एक लाख पर ही अपराध साबित हुए हैं बाकी 3 लाख से ज्यादा यूँहीं छूट गए या केस झेल रहे हैं !

जहाँ हैदराबाद प्रकरण के बाद देश भर में दुबारा उबाल दिखा व निर्भया काण्ड में बाद फिर कुछ राजनेताओं के पसीने छूटे क्योंकि अब उनके पास ऐसे बलात्कारियों को बचाने का आप्शन नहीं रहा ! तब क़ानून की सख्त पैरवी में उन्हें भी मजबूरन सरकार का साथ देना ही पड़ेगा! पहले उपराष्ट्रपति व अब राष्ट्रपति ने आई पीसी की धारा 375 व धारा 376 , 376 (इ) में बदलाव की बात करते हुए साफ़ किया है कि बलात्कारी को 5 या 10 साल की सजा नहीं बल्कि सीधे मृत्युदंड का प्राविधान होगा तब क़ानूनविदों के लिए अपनी वकालत में अवश्य खतरा मंडराता नजर आ रहा होगा क्योंकि वे अब ऐसी पूडियां नहीं ताल पायेंगे जैसे अब तक निर्भया काण्ड में होता आ रहा है कि 7 साल बीत जाने के बाबजूद भी व फांसी की सजा सुनाये जाने के बाद भी अपराधियों को फांसी नहीं होती!

यह शुकून देने वाला है कि पहले गृह मंत्रालय ने और अब राष्ट्रपति ने निर्भया काण्ड के अपराधियों की दया याचिका खारिज कर दी है जिससे यह साफ़ हो गया है कि 15 साल के बाद अब रेपिस्टों को शीघ्र ही फांसी होगी!

बर्ष 2012 में जब निर्भया कांड हुआ, दिल्ली में रेप के 706 मामले दर्ज हुए थे, पिछले वर्ष यह संख्या 2146 पर पहुंच गई है। सात साल पहले 2012 में जब पूरा देश गुस्से में था, तब निर्भया केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजा गया! फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सिर्फ 9 महीने के अंदर अपना फैसला भी सुना दिया. 13 सितंबर 2013 में निर्भया के गुनाहगारों को फांसी देने का वो फैसला आज छह साल बाद भी अपने अंजाम का इंतजार कर रहा है.

निर्भया रेप केस के बाद कठुवा की गुडिया, मुंबई की शक्ति मिल में गैंगरेप हुआ! 2010 में दिल्ली में एक और रेप हुआ, मध्य प्रदेश में छोटी बच्ची के साथ रेप का मामला सामने आया. इसी तरह कई मामले सामने आते गए लेकिन किसी को फांसी नहीं दी गई, हालांकि कुछ मामलों में उम्रकैद जैसी सजा भी दी गई! 2011 में 572 , 2012- 706, 2013-1636, 2014 -2166, 2015-2199, 2016-2155,2017- 2146 (15 जून तक 949), 2018-995  (15 जून तक) रेप केस अकेले दिल्ली में दर्ज हैं!

निर्भया, दामिनी, फलक, गु‍ड़िया, कठुआ, इंदौर, दिल्ली, पठानकोट, अजमेर, न जाने कितने नाम, कितने शहर, कितनी विभत्स कहानियां हैं और इनके बाद हमारा खून दो, तीन दिनों के लिए खौलता भी है लेकिन उसके बाद हम भूल जाते हैं।  राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड 2017 की रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में 32,559 रेप केस दर्ज हुए। इसमें मध्य प्रदेश पहले और उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर था।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक देश भर में वर्ष 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,59,849 मामले दर्ज किए गए. महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार तीसरे साल वृद्धि हुई है! 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,29,243 मामले दर्ज किए गए थे और 2016 में 3,38,954 मामले दर्ज किए गए थे! महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों में हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, एसिड हमले, महिलाओं के खिलाफ क्रूरता और अपहरण आदि शामिल हैं!

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, अधिकतम मामले उत्तर प्रदेश (56,011) में दर्ज किए गए. उसके बाद महाराष्ट्र में 31,979,पश्चिम बंगाल में 30,992, मध्य प्रदेश में 29,778, राजस्थान में 25,993 और असम में 23,082 मामले दर्ज किए गए

दिल्ली में महिलाओं के प्रति अपराध के दर्ज मामलों की संख्या साल 2015 में 17 हजार 222 और साल 2016 में 15 हजार 310 थी। वहीं 2017 में इन आंकड़ों में कमी आई और 13 हजार 76 मामले दर्ज किए गए।  012 के दिल्ली के निर्भया कांड के बाद संविधान संशोधन के जरिए आईपीसी की धारा 376 (ई) के तहत बार-बार बलात्कार के दोषियों को उम्रक़ैद या मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया था. बॉम्बे हाईकोर्ट ने बार-बार बलात्कार के दोषी को उम्रकैद या मौत की सजा देने के लिए आईपीसी की धारा में किए गए इस संशोधन की संवैधानिकता को बरकरार रखा!

इन आंकड़ों का अगर हिसाब लगाया जाय तो देश में हर साल 40 हज़ार, हर रोज़ 109 और हर घंटे 5 लड़कियों की अस्मत लूट ली जाती है !

यह आश्चर्यजनक है कि 15 बर्ष पूर्व अर्थात 14 अगस्त 2004 को नाबालिग छात्रा का रेप कर उसकी हत्या करने के जुर्म में धनंजय चटर्जी को कोलकाता के अलीपुर जेल में फांसी दी गई थी, इस बात को 15 साल हो गए हैं, तब से 4 लाख से अधिक रेप केस हो गए हैं लेकिन दो तीन फांसी की सजा सुनाये जाने के बावजूद भी आजतक किसी रेपिस्ट को फांसी नहीं हुई! पिछले 10 साल में करीब 2.79 लाख रेप के मामले दर्ज किए गए ! हर साल 2000 ऐसे मामले होते हैं जिनमें पीड़िता का गैंगरेप किया गया, औसतन 40 हज़ार में से 10 हज़ार रेप के मामले नाबालिग बच्चियों के हैं! रेप के 71 फीसदी मामले तो ऐसे हैं जिन्हें रिपोर्ट ही नहीं किया जाता है !

देश की लोकसभा और विधानसभा में बैठे 30 फीसदी नेताओं का आपराधिक रिकार्ड है, जिनमें 51 पर महिलाओं के खिलाफ अपराध किए जाने के मामले दर्ज हैं! 4 नेता तो ऐसे हैं जिनपर सीधे रेप के ही मामले चल रहे हैं! फिर भी ढ़ाक के तीन पात…! आखिर हमारी न्याय पालिका की इतनी लचर व्यवस्था क्यों है यह समझ नहीं आता जबकि विदेशों में रेप प्रकरण में तत्काल सजा सुनाई जाती है जिनमें सऊदी अरब में बलात्कारी का सिर क़लम कर गुप्तांग काट दिया जाता है, यूएई में सीधे फांसी, अमेरिका में ज़हरीला इंजेक्शन, चीन में डीएनए मैच के बाद सीधा फांसी, जर्मनी में गैस चेंबर में डालकर बलात्कारियों को मौत, इंडोनेशिया में रेपिस्ट का गुप्तांग काट करे शरीर में महिलाओं के हार्मोंस डाल दिए जाते हैं! उत्तर कोरिया में दोष सिद्ध होने पर सिर में गोली मारी जाती है व कई अरब देशों में बलात्कारी के साथ संगसार किया जाता है, कई देशों में इलेक्ट्रिक चेयर पर 2 हज़ार वोल्ट का करंट दिया जाता है!

ये तो रही देश दुनिया की बात..! अब आते हैं उत्तराखंड पर! जिन राज्य आन्दोलनकारियों के बलिदान व बहु बेटियों की आबरू लुटने के बाद यह राज 20वें बर्ष में प्रवेश कर गया है! वहां की माँ-बहनें आज भी मुजफ्फरनगर काण्ड में इज्जत आबरू लुटाने के बाद केस झेल रही हैं व इतने साल गुजर जाने के बावजूद भी उन्हें न्याय नहीं मिल पाया तब न्याय व्यवस्था पर अंगुली उठना लाज़िम सी बात है! जिनके डीएम पर यह राज्य बना उन्हीं के केस अभी तक राज्य सरकार उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड में स्थानांतरित नहीं करवा पाई है तो किया भी क्या जा सकता है! ऐसे में हैदराबाद इनकाउन्टर पर देशवासी ख़ुशी न मनाएं तो क्या करें!

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