ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
रामकथाओं में सबसे प्राचीन विश्व सांस्कृतिक धरोहर रम्माण गांव सलूड की चौपाल सीरिज़ के जरिये आपको रम्माण मंचन और इससे जुडी कुछ अलग तस्वीरें और जानकारी से रूबरू करवा रहें हैं। रम्माण न केवल एक आयोजन भर है, अपितु इसके पीछे ग्रामीणों की आस्था भी जुड़ी हुई है। रम्माण के आयोजन के दिन आपको रम्माण प्रांगण में ग्रामीणों के हाथों में हरियाली की कई टोकरी देखने को मिलेंगी। लीजिये प्रस्तुत है आज दूसरी किस्त.. ।
हरियाली टोकरी!
हिंदू धर्म के हर त्योहार में कई रीति-रिवाज होते हैं। मान्यता है कि सृष्टि की शुरुआत में सबसे पहली फसल जौ की ही थी। जौ को पूर्ण फसल भी कहा जाता है। जौ का तेजी से बढ़ना घर में सुख समृद्धि का संकेत माना जाता है। पहाडों में पंचमी, नवरात्रि सहित अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में हरियाली डालने की परंपरा बरसों से है। सलूड गांव में भी चैत्र के महीने लोग अपने अपने घरो में हरियाली डालते हैं, ये हरियाली की टोकरी की संख्या 3 से लेकर 5 तक होती है।
पहली टोकरी को लोग संक्रांति दिन अपने पितरों को चढ़ाते हैं। दूसरी टोकरी गांव के निकट जो भी मंदिर होता है वहा पर चढ़ाते हैं। इसी प्रकार अन्य टोकरी को भी अलग-अलग धार्मिक आस्था के तहत चढाते हैं। रम्माण के आयोजन के दिन गांव के लोग हरियाली की टोकरी को रम्माण प्रांगण में लाते हैं जबकि कई ग्रामीण जब भूमियाल देवता गांव भ्रमण पर जातें हैं तब हरियाली की टोकरी को चढाते हैं। सलूड गांव के युवा विकेश सिंह कहते हैं कि हरियाली बोने व हरियाली की टोकरी को रम्माण के आयोजन के दिन भूमियाल देवता को चढ़ाया जाता है। बरसों से ये परंपरा चली आ रही है। माना जाता है कि इससे घर में सुख समृद्धि और खेत खलिहानों में अनाज के भंडार में वृद्धि की कामना अपने अराध्य देवता से की जाती है।
पंचमी से लेकर नवरात्रि सहित विभिन्न अवसरों पर हरियाली को उगाना हमेशा से ही शुभ माना जाता है। रुद्रप्रयाग जनपद के त्रिजुगीनारायण मंदिर में तो हर साल बामन द्वादशी पर हरियाली मेला का आयोजन किया जाता है। जिसमें ग्रामीणों द्वारा रिंगाल की टोकरी में उगाई जौ की हरियाली को आराध्य बामन भगवान को अर्पित की जाती है।वास्तव में देखा जाए तो इस प्रकार के रीति रिवाज और परंपराएं हमारी सांस्कृतिक पहचान है।
Vikesh Singh
महादीप पँवार