(मनोज इष्टवाल)
जौनसारी में एक गीत के बोल कुछ यों हैं “माड़ी लिखी मेरी किस्मता बद्दी कोसिकै लाणी हो।” ठीक ऐसा ही कुछ देश के प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया या स्वदेशी अभियान का भी बेड़ागर्क हम स्वयं ही कर रहे हैं । एक ओर फाइव स्टार फेसिलिटी के हॉस्पिटल कोरोना के नाम पर आए दिन करोडों लूट रहे हैं वहीं दूसरी ओर पतंजलि योगपीठ जब आयुर्वेद के नुस्खों के साथ स्वदेशी का प्रचार करके सस्ते दामों पर वैसा ही इलाज लगभग 500 रुपए में दे रहा है तब न सिर्फ देश विरोधी शक्तियां बल्कि बाबा को टेढ़ी आंख से देखने वाले कुछ प्रतिशत आमजन, नौकरशाह, राजनेता व राजनीतिक दल उनकी “दिव्य कोरोनिल” दवा पर कोहराम मचा रहे हैं।
राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने तो उससे भी आगे बढ़कर कार्य कर दिया। उन्होंने बाबा रामदेव पर इस दिव्य कोरोनिल के टेस्टिंग को लेकर केस दर्ज ही नहीं किया बल्कि प्रमाणिकता देने वाले निम्स ने भी डरकर बाबा के दिव्य कोरोनिल के रिसर्च को साफ झुठला दिया है।
अब समझना यह होगा कि बाबा झूठे हैं या फिर पूरा तन्त्र? विगत 26 मई 2020 को मोहित शर्मा नामक एक कोविड-19 का मरीज मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली में भर्ती होता है, 7 जून 2020 को जब मोहित शर्मा हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होते हैं तब उनका बिल 15 लाख 33 हजार 588 रुपये अर्थात रुपये 15,33,588.44 आता है। मात्र 13 दिन में मोहित शर्मा के इलाज पर लगभग साढ़े पन्द्रह लाख का खर्चा आता है। वह भी लिखित में यह कहा नहीं जा सकता कि मरीज को कोविड-19 की ईजाद दवाएं दी गयी।
दिल्ली के ही इरफान मलिक कहते हैं कि उनके रिश्तेदार के इलाज पर 20 लाख रुपये लगे फिर भी वे जिंदा नहीं रह पाए। आखिर इस लूट पर केंद्रीय व राज्य सरकारों की लगाम क्यों नहीं है? क्या आयुष मंत्रालय या स्वास्थ्य विभाग सिर्फ उन लोगों को सर्टिफिकेट बांटने के लिए आंखे तरेरती है जो गरीबों का इलाज या आम जन का इलाज का सस्ता सा फंदा ईजाद करते हैं।
इन बिलों को देखकर आपको नहीं लगता कि ये कहीं न कहीं जीते जी मौत देने के समान हैं। वहीं इस देश के उन लोगों से मेरा सवाल है जिन्होंने पतंजलि के प्रोडक्ट तो खरीदने हैं लेकिन योगगुरु रामदेव को लाला कहने में एक पल भी नहीं चूकना है।
मध्य प्रदेश के शिरूर लोकसभा क्षेत्र के सांसद डॉ अमोल रामसिंग कोल्हे ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर के प्रश्न उठाये हैं जिसमें उन्होंने FabiFlu जो Glenmark कंपनी की दवा है जिसकी कीमत 35000 ये है और उस उसमें मात्र 34 टेबलेट्स हैं, व Covifor जो Hetero कंपनी का है जिसकी कीमत 30,000 रुपये है, दोनों द्वारा क्या मंत्रालय से प्रमाणिकता प्राप्त की गई है जबकि पतंजलि योगपीठ द्वारा निर्मित दिव्य कोरोनिल औषधि जिसकी कीमत 545 रुपये मात्र है, आयुष मंत्रालय ऐन तब उसकी प्रमाणिकता जांचने को आदेश देता है जब वह बाजार में उतार दी जाती है।
अब अगर पतंजलि की ये दवा कोरोनिल जब मार्किट में आती है तो बाकि तीन दवाओं (Cipremi, FabiFlu
माना कि बाबा ने एक चूक की कि “दिव्य कोरोनिल” औषधि को बिना आयुष मंत्रालय की प्रमाणिकता के ही कोरोना का सम्पूर्ण इलाज बता दिया व सरकार के बिना संज्ञान में ही 7 मरीजों पर उसका प्रयोग कर उन्हें 100 प्रतिशत ठीक करने का दावा किया है, तब भी मेरा प्रश्न है कि इसमें आयुष मंत्रालय ने इस औषधि के बाजार में उतारने के बाद ही क्यों इस पर आपत्ति दर्ज की जबकि पतंजलि योगपीठ इसका लगभग डेढ़ हफ्ता पहले से प्रचार कर रहा था।
अब सवाल यह उठता है कि माना दिव्य औषधि कोरोना की कारगर दवा नहीं है और वह सिर्फ इम्युनिटी बूस्टर की तरह कारगर साबित हो रही है तो क्या जो ऐलोपैथिक, होम्योपैथिक व अंग्रेजी दवा हफ्ते भर या दस दिन के लिए 10 हजार से ज्यादा वसूल रही हैं तो वह प्रामाणिक कर रही हैं कि वह कोरोना को जड से मिटा देंगी या फिर वह भी सिर्फ इम्युनिटी बूस्टर का ही काम कर रही हैं।
पतंजलि योगपीठ बाबा रामदेव ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जो कोरोना के नाम पर 14 लाख , 5 लाख, 8 लाख ले रहे है? दवाओं के 14000 ले रहे हैं और एक आदमी की 5 बार जाँच करवाकर नेगेटिव – पॉजिटिव करते-करते एक बार के 4500 के हिसाब से 22500 ले रहे हैं, आपको क्या लगता है वो 400-500 रुपए के स्वदेशी उपचार को ऐसे ही बाजार में आने देंगे?
उन्होंने कहा है कि आपको नही ख़रीदना मत ख़रीदिए लेकिन अपने दम पर एक स्वदेशी माचिस की तिली भी अगर बना पाइए तो ज़रूर विरोध कीजिए, अन्यथा मुँह बंद करके कोरोना से परिवार को बचाइए !!
परेशानी ये है कि बाबा आयुर्वेदिक ही बनाएँगे, अगर क्लोरो फ़्लोरो हाइड्रो जैसा कुछ बनाते तो आने से पहले ही बिक जाती क्योंकि आयुर्वेद बिकेगा तो कितनों के धंधे बिक जाएँगे !
लोग कहते हैं कि धंधे वाला है चलो मान लिया कि हाँ है लेकिन ये अकेला इंसान है जिसने भारत की प्राचीन योग कला और आयुर्वेद को विश्व के सामने ला खड़ा किया है, कितना विरोध करोगे, किस किस देशी वस्तु का करोगे? स्वदेशी सामान का करोगे या स्वदेशी सोच का ! कुछ नहीं होगा दिल खोल कर करो ।
और हाँ एक बात है कि मैं ये नहीं जानता कि बाबा रामदेव की कोरोना की औषधि कारगर है या नहीं पर सरकार से भी निवेदन है कि एक बार उन नामी गिरामी कंपनियों से भी प्रमाण मांगें जो काले से गोरे होने की क्रीम, घुटने ठीक होने का तेल बोल बोल कर दशकों से जनता को मूर्ख बना रहे हैं।