(मनोज इष्टवाल)
- क्यों मोहभंग हुआ दून स्कूल के छात्रों का सिविल सर्विस से!
- कितने राजाओं की सल्तनत ने बसाया है दून स्कूल!
- मंत्री का बेटा हो या प्रधानमन्त्री या फिर आम नागरिक किसी को नहीं मिलता है वीवीआईपी ट्रीटमेंट !
- ब्रिटेन के राजघराने के बच्चों को पढ़ाने वाले हैरो स्कूल की तर्ज पर बनाया गया था दून स्कूल!
- लागू है वसुधैव कुटुंबकम की पद्धति !
(ऊपर लेक्चर देते मनीष जोशी व नीचे पुराना एफआरआई व आज का दून स्कूल फोटो- मनोज इष्टवाल)
लगभग 70 एकड़ जमीन में फैला देहरादून शहर का पूरा पर्यावरणीय मानकों को पूरा करने वाला स्कूल, जिसके बाहर कई प्रजाति के पेड़ व स्वीमिंग पुल, स्पोर्ट्स ग्राउंड, वर्कशॉप इत्यादि पूर्ण रूप से पर्यावरण शुद्धता का प्रतीक हो भला कौन अपने को सौभाग्यशाली नहीं समझेगा इसका हिस्सा बनना! मेरे साथ भी कुछ ऐसा हुआ जब इसी स्कूल में पढ़े एक छात्र ने मुझे आमंत्रित किया कि मैं भी उनके साथ दून स्कूल के “Summer at Doon” कार्यक्रम में शिरकत करूँ जहाँ हर गर्मियों की छुट्टियों में पूरे देश ही नहीं बल्कि विदेश के छात्र छात्राएं भी दून स्कूल के डेकोरम को जानने समझने के लिए आते हैं. इस बार भी देश के 18 राज्यों की प्रतिष्ठित स्कूलों से यहाँ छात्र-छात्राएं आई हुई हैं.
(दून स्कूल का क्लास रूम)
मनीष जोशी को “Summer at Doon” कार्यक्रम में यूथ मोटिवेशन का लेक्चर देना था क्योंकि वे दून स्कूल के ऐसे बिरले छात्र रहे हैं जिन्होंने मात्र 14 बर्ष की उम्र में एरोप्लेन का दून स्कूल की वर्कशॉप में ही आविष्कार कर पूरे देश में प्रसिद्धी पा ली थी. मनीष जोशी दून स्कूल ही नहीं बल्कि विश्व भर के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिनका 32 साल पहले कायम किया हुआ यह रिकॉर्ड अभी तक कोई नहीं तोड़ पाया है!
(गंभीरता से हर बात समझना व समझाना अपने आप में एक कला)
बहुत कम लोग जानते हैं कि दून स्कूल के संस्थापक कोई अंग्रेज नहीं बल्कि एस आर दास थे जिन्होंने इस स्कूल की परिकल्पना ही इसलिए की थी ताकि वे हिन्दुस्तान के छात्रों को ब्रिटेन की शिक्षा के बराबर ला खड़ा कर सकें! क्योंकि तब यहाँ राजाओं के रजवाड़े जरुर थे लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में देश के पास कोई ऐसा विकल्प नहीं था जिस से वे शैक्षणिक क्षेत्र में ब्रिटिश या यूरोपियन देशों की बराबरी कर सकें. 1872 में जन्मे एस आर दास का निधन भले ही दून स्कूल की शुरुआत से पूर्व सन 1928 में हो गया था लेकिन तब तक स्कूल को वह हर क्षेत्र में इस काबिल ले आये थे कि वह बनाई जानी भी आवश्यक थी. न्याय पसंद अंग्रेजों ने भी उनकी हर बात का मान रखते हुए 27 अक्टूबर 1935 में हेडमास्टर ए ई फूट के नेतृत्व में दून स्कूल का संचालन शुरू कर दिया! इस स्कूल का निर्माण ब्रिटेन स्थित हैरो स्कूल की तर्ज पर किया गया था क्योंकि हैरो स्कूल में सिर्फ और सिर्फ राजघराने के बच्चे ही पढ़ते थे. ऐसे में एस आर दास यह आईडिया दिमाग पर लेकर चले और उन्होंने इस स्कूल की परिकल्पना करनी शुरू कर दी. आज आलम यह है कि ब्रिटेन के राजघराने के बच्चे व वहां के नामचीन स्कूल अपने पुराने आइडियाज का अध्ययन करने दून स्कूल आते हैं.
(दून स्कूल के मुख्य भवन )
चूँकि यह स्कूल चाँदबाग़ रियासत का हिस्सा था लेकिन ब्रिटिश काल में इसी रियासत की 78 एकड़ जमीन पर अंग्रेज शासकों ने फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (एफआरआई) बनाकर इसे अपने कब्जे में ले लिया था. दून स्कूल के संचालन के लिए प्रयुक्त जगह न मिलने के फलस्वरूप इसी कैम्पस को उन्होंने दून स्कूल को हस्तगत कर दिया और वर्तमान में जो एफआरआई है वहां बन रही समर राजधानी के भवन में एफआरआई का कार्यालय स्थानांतरित कर दिया!
(मुख्य भवन जो पहले एफआरआई था)
देश आजाद हुआ और एफआरआई आज तक भी एफआरआई ही है! वहीँ देश विभाजन के बाद पाकिस्तान जा बसे इस स्कूल से पढ़े वहां के हुक्मरान व फ़ौज के जनरल जब हिन्दुस्तान आये तब उन्होंने दून स्कूल के प्रत्येक ड्रेस कोड, जूते, स्कूल कैम्पस, खान-पान, रहन सहन से लेकर कक्षाओं के अध्यापन तक की बारीक से बारीक जानकारी न सिर्फ अपने कैमरों में कैद की बल्कि उसको रिकॉर्ड करके भी ले गए! उन्होंने दून स्कूल के समकक्ष पाकिस्तान में भी दून स्कूल शुरू कर दिया जिस पर भारत द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद उन्होंने इसका नाम बदलकर दून चाँदबाग़ स्कूल रख दिया!
(क्लास रूम में छात्रों के साथ छात्र बनने का सुनहरा मौक़ा)
“Summer at Doon” कार्यक्रम में जहाँ मनीष जोशी द्वारा छात्रों की कार्यशाला ली गयी वहीँ मैं और मेरा कैमरा भी मीडिया सम्बन्धी ज्ञान बघारने में पीछे नहीं रहा. दून स्कूल की फाइव स्टार फैसिलिटी से लकदक कक्षाओं में बैठे छात्र-छात्राओं का अनुशासन यह था कि जब तक लेक्चर चलता रहा तब तक पूरी कक्षा में पिन ड्राप साइलेंस था. भविष्य से जुड़े कई प्रश्न जब छात्र सामने लाये तब महसूस हुआ कि वास्तव में दून स्कूल पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी क्यों प्रसिद्ध है. जिस तरह मनीष जोशी उन्हें मोटिवेट कर रहे थे वह काबिलेतारीफ़ था क्योंकि ऐसे लेक्चर जो बेहद सरल भाव से शुरू हुआ हो और बेहद इजीगोइंग हो जिसमें जिंदगी का सार छुपा हो मैंने देश विदेश की बड़ी बड़ी कार्यशालाओं में नहीं सुना. सचमुच यह मेरे लिए गर्व की बात थी कि मैं उस जनरेशन का एक हिस्सा था जिसने आगामी समय में देश की अर्थव्यवस्था, राजनीति का हिस्सा बनना है!
(मिस्टर प्रभाकरन नायर)
दून स्कूल मुख्यतः इंडियन पब्लिक सोसाइटी के नाम से पंजीकृत है. स्कूल से सम्बन्धित जानकारी लेने के लिए जब मैंने प्रयास किये तब मिस्टर प्रभाकरन नायर ने जानकारी देते हुए बताया कि दून स्कूल शुरू होने से 3 बर्ष पूर्व ही यहाँ से एफआरआई कार्यालय शिफ्ट हो गया था. दून स्कूल से सिविल सर्विस में क्यों नहीं निकलते! मेरे इस प्रश्न के जवाब में वे मुस्कराए और बोले- 1960 से 1970 तक दून स्कूल से सबसे ज्यादा छात्र सिविल सर्विस में जाना पसंद करते थे लेकिन दिनों-दिन राजनीति के घटते स्तर के कारण अब यहाँ के स्टूडेंट्स की रूचि इसमें समाप्त हो गयी है. वैसे दून के आईपीएस अभिनव कुमार भी इसी स्कूल के छात्र रहे हैं! और हमारे अगले दिन “Summer At Doon” के वही गेस्ट स्पीकर बने!
(दून स्कूल का पहला बैच)
प्रभाकरन नायर ने बताया कि दून स्कूल से राजनीतिक, व्यवसायी, लेखक, बैंकर्स, मीडिया सहित विभिन्न ऐसे फील्ड में छात्र निकलते हैं जो उन्हें देश के शीर्ष तक ले जाते हैं. मैंने कई छात्रों से सिविल सर्विस में जाने के सम्बन्ध में पूछा तब उनका भी यही कहना था कि अब सिविल सर्विस में वह चार्म नहीं रह गया है जो पहले था. देश के अनपढ़ नेताओं की जी हुजूरी करने से बेहतर तो यह है कि घर में बैठे रहो. या मजदूरी कर पेट पालो!
(मिस्टर पियूष मलावीय जी के साथ)
हाँ यहाँ से पढ़े छात्र आज भी आर्मी ऑफिसर या फिर गवर्नर बनना पसंद करते हैं. नायर बताते हैं कि यहाँ से मीडिया में आज भी चुनिन्दा नाम हैं. यहाँ राज-घरानों से लेकर हर वह छात्र शिक्षा ग्रहण करता है जिसमें काबिलियत हो. उन्होंने बताया कि यहाँ से प्रसिद्ध लेखक अमिताभ घोष, विक्रम सेठ, रामचन्द्र गुहा सहित कई नामी लोग निकले हैं. वहीँ सिनेमा के क्षेत्र में हिमानी शिवपुरी, चन्द्रचूढ सिंह, अली फजल, नसुरुद्दीन शाह के पुत्र दीवान शाह, लतिका कट इत्यादि वहीँ राजनीति में संजय गांधी, राजीव गांधी, राहुल गांधी, राबर्ट बाड्रा व उनका पुत्र रेहान, अभिनव बिंद्रा, बंकर रॉय, तरुण तहिलिआनि ,नवीन पटनायक, दुष्यंत सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित कई नामी गिरामी हस्तियाँ इसी दून स्कूल का हिस्सा रही हैं.
(वेलमेंटेन क्लास रूम पूरा वेंटिलेटेड फोटो- मनोज इष्टवाल)
प्रभाकरन नायर जानकारी देते हुए बताया कि दून स्कूल की तर्ज पर पाकिस्तान में बना चाँदबाग़ स्कूल का लोगो तक बिलकुल एक जैसा है बस ज़रा सा अगर अंतर है तो उनके लोगो के साथ चाँद बना हुआ है.
(पाकिस्तान स्थित दून स्कूल का लोगो जिसे चाँद बाग़ स्कूल कहा जाता है फोटो- मनीष जोशी)
वे कहते हैं भारत पाकिस्तान के राजनैतिक सम्बंधों के चलते भले ही अब दून स्कूल का पाकिस्तान जाना या चाँदबाग़ स्कूल का दून स्कूल आना बंद हो गया हो लेकिन दोनों के आज भी कल्चरल रिलेशन बहुत बेहतर हैं. उन्होंने बताया कि “Summer at Doon” में विश्व भर के कई देशों से छात्र दून स्कूल घुमने आते हैं व यहाँ कि शैक्षिक पद्धति का अध्ययन करते हैं जिनमें अमेरिका, यूके, साउथ अफ्रीका, सिंगापुर सहित विश्वभर के 40 से अधिक स्कूल शामिल हैं.
(डाइनिंग हाल लगभग 300 छात्रों के एक साथ बैठने की व्यवस्था)
छात्रों को उनकी शरारतों पर दून स्कूल में कैसा पनिशमेंट दिया जाता है ! इस प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि यहाँ फिजिकल पनिशमेंट नहीं दिया जाता बल्कि इसके नियम उस से अधिक कठोर हैं. यहाँ येल्लो कार्ड या हाउसमास्टर कार्ड दिखाया जाता है और तब भी छात्र ने अपने में सुधार नहीं लाया तो उसे बाहर कर दिया जाता है और तब कोई सोर्स यहाँ नहीं चलती.
(मनीष जोशी स्विमिंग पूल के बाहर अपने स्कूली अनुभव से रूबरू कराते हुए)
आज दून स्कूल में लगभग 500 छात्र अध्ययनरत हैं जिनके ऊपर 65से 70 स्टाफ़ है. अगर देखा जाय तो प्रतिमाह यहाँ एक छात्र पर 30 से 50 हजार रूपये खर्च होता है. अब तक दून स्कूल 10 हेडमास्टर रख चुकी है. जिसमें एक दून स्कूल के संस्थापक एस आर दास के पुत्र 1988-1996 तक एस आर दास रहे हैं.
(पैवेलियन ग्राउंड दून स्कूल फोटो- मनोज इष्टवाल)
(जोधपुर हाउस हॉस्टल फोटो- मनोज इष्टवाल)
लगभग 78 एकड़ क्षेत्र में फैला दून स्कूल राजा जयपुर, राजा जम्मू. हैदराबादी नवाब सहित वर्तमान में विभिन्न उद्योगपति जिनमे ओबेरॉय, टाटा व मार्टिन शामिल हैं ने इसकी बसागत में अपना अमूल्य योगदान दिया है. पूरे दून स्कूल प्रांगण में मुख्य भवन (जिसमें पूर्व में एफआरआई था), पुस्तकालय, विज्ञान लैब, हेडमास्टर आवास, आर्ट स्कूल, सेंट्रल डायनिंग हाल, मल्टीपर्पज हाल, फूट हाउस, जयपुर हाउस, पैवेलियन, कश्मीर हाउस, हैदराबाद हाउस, ओबेरॉय हाउस, टाटा हाउस, मार्टीन हाउस ( ये इसी स्कूल के हेड मास्टर हुआ करते थे जिनकी नौकरी के दौरान ही मृत्यु हो गयी थी), हॉस्पिटल, रोज बोएल (मनीष जोशी बताते हैं कि उन्होंने अपने समय में इस हाल में एफएम हुसैन, फील्ड मार्शल मानेकशाह, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ. सलीम अली, फिल्म एक्टर नसुरुद्दीन शाह,एस्ट्रोनॉट राकेश शर्मा तथा राजिव गांधी सहित कई अन्य दिग्गजों के लेक्चर सुने हैं), म्यूजिक स्कूल, बैंक, जनरल स्टोर, वर्कशॉप, व स्टाफ़ क्वाटर्स इत्यादि मुख्य हैं. शुरूआती दौर में भले ही यह देश के राजाओं, संभ्रांत खानदानों और राजनेताओं के बच्चों के लिए तैयार किया गया माड्यूल स्कूल रहा हो लेकिन आज इसमें वह हर बच्चा शिक्षा प्राप्त कर सकता है जो यहाँ का टेस्ट पास कर दे लेकिन उसका डेकोरम भी वासुधैव कुटुम्बकम ही हो. यह पहला ऐसा स्कूल है जिसमें चाहे प्रधानमन्त्री का पुत्र हो या गवर्नर का या फिर किसी राजा का. सबको एक समान सुविधाएं उपलब्ध हैं. यहाँ सब वीवीआईपी हैं कोई भी छात्र यहाँ कम नहीं आंका जाता. शायद यही डेकोरम मेंटेन होने के कारण दून स्कूल की पढ़ाई का स्टैण्डर्ड आज भी विश्व बिख्यात है.