Tuesday, October 21, 2025
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हाई कोर्ट बनाम कुंवर जपेंद्र बनाम प्राइवेट स्कूल बनाम शिक्षा नीति बनाम अभिवाहक..! पीआईएल दर्ज करने वाले व्यक्ति के कितने समर्थन में हैं आप।

(मनोज इष्टवाल)

हाई कोर्ट बनाम कुंवर जपेंद्र बनाम प्राइवेट स्कूल बनाम शिक्षा नीति बनाम अभिवाहक..! ये बनाम-बनाम की आवृत्ति कई बार हो गयी है। आखिर हो भी क्यों नहीं क्योंकि समाज में एक दो ही ऐसे सिरफिरे होते हैं जो सामाजिक मूल्यों के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं। उन्हीं में एक नाम को मैं जानता हूँ वह नाम है कुंवर जपेंद्र।

यह व्यक्ति कुछ साल पहले तक जब अखबारों की सुर्खियों में रहता था तब मैंने कभी इन्हें गम्भीरता से नहीं लिया। सोचता था कि ये भी जाने किस मैदानी भूभाग से चारा चरने ऐसे चारागाह में आ गए हैं जहां इन 20 बर्षों में लूट ही लूट मची है। चुनावी बिगुल भी खूब बजा तो पहले ही समझ गया था कि बिना राजनीतिक आकाओं के फूंकने दो करोड़ों…! होना कुछ नहीं है।

लेकिन एकदिन अचानक एक ब्लैक एंड वाइट फोटो में कुछ राजा महाराजो की शक्ल में एक फेसबुक पोस्ट पर नजर पड़ती है जिसमें कुंवर जपेंद्र लिखते हैं “जिस दिन से लाखों मध्यमवर्गीय अभिभावकों / छात्रो की फीस माफी की मुहिम शुरू की मन में एक सकून सा है। खून की उस फितरत का क्या करें जो अपने बुजुर्गों से विरासत में मिली है ।

माना दौर चला गया पर खून का असर तो पीढियों मे बना रहता है। हमारे बुजुर्गो का उसूल था अपनी जनता के लिए प्राण भी न्यौछावर कर दो । उस जमाने में अच्छे शासक के यही गुण हुआ करते थे। और आज अच्छे वा जनता के प्रति ईमानदार जनप्रतिनिधि मे यही गुण होने चाहिए ।

▪नाभा परिवार हिन्दूस्तान का आखिरी परिवार था जिस पर अग्रेंजों का फौज के बल पर कब्जा हुआ, हमारे बुजुर्गों को राजधानी देहरादून से आगे पहाडों की रानी के नाम से मशहूर मसूरी में अग्रेंजों ने कैद करके रखा ( जहां बचपन में सभी भाईयो की शिक्षा ) Wood Stock School में हुई थी। और फिर वहीं पर उन्हें यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। अब उसी लहू का कतरा-कतरा हमारे अंदर है।▪▪ ये पोस्ट लिखने के लिए इस लिए मजबूर होना पडा क्योंकि कुछ आज के बडे स्कूल माफियाओं को भ्रम हो गया है कि वह हमें इस लडाई में हरा सकते हैं।▪▪ ये 1921 की तस्वीर है । जींद पटियाला और नाभा इन तीन परिवारों की पहचान तब भी जुल्म के खिलाफ लडने की रही है आगे भी रहेगी । हमारी तो यही जन्म भूमि है, और कर्मभूमि भी । बुजुर्गो का आशीर्वाद हमेशा साथ रहे। और आप सबका प्यार । जनहित की सभी लडाईया आप हम मिलकर जींतेगे ।”

फिर मुझे लगा कि इस व्यक्ति को अगर नहीं खंगाला तो तेरी पत्रकारिता पर धिक्कार है। इस से पहले कई पत्रकार मित्रों का लेखा-जोखा जानने के बाद यह पता तो लग ही चुका था कि कुंवर जपेंद्र उन्हें विज्ञापन न सही लेकिन पूरा मान सम्मान अर्पित करते हैं। मैं जरा उस श्रेणी से हटकर पत्रकारिता करता हूँ। जिंदगी में हमेशा तंग हाथ रहा लेकिन कलम को कभी तंग नहीं होने दिया। आज सच कहूं तो इस शख्स का प्रोफाइल देखकर गर्व महसूस होता है।

एक दिन कुंवर शा को फोन करके पूछता हूँ कि अब तो आप भाजपा में शामिल हो गए हैं। वे हंसकर बोले- हांजी, जरूरी भी था। बहुत नाप तोलकर फैसला लिया क्योंकि अगर कहीं कुछ ईमानदारी की गुंजाइश लगी तो इसी पार्टी में लगी। आप देख ही रहे होंगे कि प्रधानमंत्री मोदी जी के मंत्रियों में अब तक कोई अंगुली नहीं उठी।

वार्ता इतने में ही सिमट गयी क्योंकि मैं उनका मनोबल नीचा नहीं करना चाह रहा था और न ही यह कहकर उनका कद छोटा करना चाह रहा था कि आप भाजपा में रहकर ही उत्तराखंड भाजपा सरकार के शिक्षा सचिव के उस फैसले पर विरोध दर्ज कर रहे हैं जिसमें वे पहले दिन तीन माह के फीस माफी या फीस न लेने का निर्देश देते हैं व अगले दिन ही सरकार के राहत कोष में प्राइवेट स्कूलों के सरपरस्तों द्वारा एक डोनेशन (शायद 62 लाख) जाने के बाद फैसला उलट देते हैं।

लेकिन ये प्राइवेट स्कूल के डोनेशन के बाद फैसला उलटने की सामर्थ्य सिर्फ एक सचिव के हाथ में हो ऐसा शायद आप भी नहीं मानते थे इसलिए आपने प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के अभिवाहकों से अपील की कि वे मात्र 1000 रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कर देवें तो उनकी यह छोटी सी राशि करोड़ों में चली जायेगी व शिक्षा माफिया इन स्कूलों की हार हो जाएगी साथ ही तीन माह की हजारों रुपये की फीस माफ भी हो जाएगी। लेकिन साला करप्ट सिस्टम को जो आम आदमी बर्षों से झेल रहा हो भला उसकी समझ में यह सब क्या आता। जब रिस्पॉन्स नहीं मिला तब कुंवर जपेंद्र ने दुबारा अभिवाहकों से अनुरोध किया कि मात्र 100 अभिवाहक भी उनका साथ दे दें तो वे इन शिक्षा माफियाओं को धूल चटा सकते हैं।

दूसरी तरफ खबर मिली कि सोशल एक्टिविस्ट रविन्द्र जुगरान भी इन प्राइवेट स्कूल माफियाओं के विरुद्ध कोर्ट जाने का मन बना चुके हैं। अब ऐसे हालात में जबकि कोई व्यक्ति पूर्व में चुनाव लड़ चुका हो। जुम्मा-जुम्मा कुछ ही साल किसी राष्ट्रीय पार्टी में शामिल हुए हो। वह उस पार्टी के बड़े नेताओं की चरण वंदना की जगह जनता के ज्वलन्त मुद्दे को पार्टी की सरकार के नौकरशाहों के फैसले के विरुद्ध ही उठाये तो आ बैल मुझे मार वाली बात हुई ना। ऐसे राजनीतिक व्यक्ति तो सिर्फ स्वार्थ व चरण वंदना कर अपनी टिकट पक्की करने के जुगाड़ में रहते हैं।

बस यही एक कारण लगा कि यह व्यक्ति राजनीति में रहकर भी बेहद प्रखरता से जन सेवक की भूमिका निर्वाहन करने की जिम्मेदारी उठा रहा है तो लगा कुंवर जपेंद्र के प्रयास को जनता के समक्ष रखकर जनता से ही इसका फैसला करने को कहे देते हैं।
कुंवर जपेंद्र शिक्षा नीति, फीस नीति व प्राइवेट स्कूलों द्वारा बंद स्कूलों में भी जबरन फीस वसूली को लेकर 1 मई को कोर्ट में ऑनलाइन पीआईएल दर्ज करते हैं व ऑनलाइन ही कोर्ट फैसला भी सुना देता है कि इन लॉक डाउन के लॉकडाउन के दौरान प्राइवेट स्कूल फीस वसूल नहीं कर सकते।

भले ही केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक भी इसका संज्ञान लेकर अपील करते हैं। कुंवर जपेंद्र मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी ज्ञापन सौंपते हैं, शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे भी शिक्षा सचिव को निर्देशित करते हैं कि फीस न वसूली जाय लेकिन वो कड़ी अभी तक समझ नहीं आ रही जो इन सबके बीच की है । जो यह सब जानकर भी खामोश है।

क्या यह खामोशी शिक्षा में बढ़ते व्यापार के लिए जहर का काम नहीं कर रही। क्या आप अपने बच्चों के भविष्य के साथ व अपनी पॉकेट के साथ इंसाफ कर पा रहे हैं? क्या आपने मन नहीं बनाया कि आप भी शिक्षा व फीस नीति बनाये जाने के लिए एक अभिवाहक संगठन बनाकर कुंवर जपेंद्र के समर्थन में कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें।

अरे छोड़िए ये काम आप जैसे मरे लोगों के वश की बात नहीं क्योंकि आप जिसे आधे से ज्यादा अभिवाहक भी तो उसी भ्रष्ट तंत्र के हिस्से हैं जो बिना लिए दिए आम जनता की योजनाओं पर एक घुग्गी नही मारते। रहे प्राइवेट नौकरीपेशा लोग तो वे बेचारे अपनी बीबियों के अपने बच्चों के प्रति संवेदनाओं व अच्छे भविष्य की परिकल्पनाओं के तहत न जी पा रहे हैं न मर ही पा रहे हैं। यह प्राइवेट नौकरी पेशा वालों की कमर तोड़ने जैसा हो रखा है जिनकी नौकरी लॉकडाउन के चलते खतरे में पड़ी है व वेतन मिलने का भी असमंजस बना है।

मै तो यही कहूंगा शाबाश राजा शा….कुंवर जपेंद्र। आपने यकीनन यह निर्णय एक प्रजापालक की भांति लिया है। जो निर्णय प्रदेश के मुखिया को लेना था वह आपने लेकर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हजारों हजार उत्तराखण्डियों के मन में जगह बनाने का काम किया है। आप में सचमुच आज भी उसी राजघराने का लहू है जो प्रजापालक राजा की रही है। आप सचमुच में सच्चे उत्तराखण्डी समाजसेवक व नेता हैं। आपको सैल्यूट..!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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