Friday, November 22, 2024
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हरदा की आम पार्टी नहीं….ख़ास पार्टी कहे इसे! क्या भाजपा क्या उनकी पार्टी सब चित्त!

(मनोज इष्टवाल)

शायद राजनीति इसी को कहते हैं! और होनी भी कुछ ऐसी ही चाहिए! अब हम चाहे धुमाकोट के 48 लोगों की मौतों की बात कहें या लोकगायिका कबूतरी देवी की मौत की बात…! राजनीति तो बदस्तूर चलती वह गाड़ी है जिसकी थम गयी उसका नाम लेने वाला नहीं बचता! लेकिन उत्तराखंड प्रदेश में एक तो ऐसा व्यक्तित्व है जिसने विगत विधान सभा चुनाव में अपनी लड़ी दोनों सीटें बुरी हार के साथ गंवाई! और तो और पूरी पार्टी रसातल पर आ गयी और इस से बड़ी बात उनकी पार्टी ने उन्हें रसातल पर लाने के अब हर संभव प्रयास कर दिए हैं लेकिन यह ढीढ राजनितिक योद्धा मैदान छोड़ने का नाम नहीं लेता! अब देखिये न हर डीएम हर पल चर्चाओं में बने रहने के लिए जमीनी वो चीजें उठा लाता है जो लाजिमी है सबकी फेवरेट होती हैं! जिस शख्स की मैं बात कर रहा हूँ वह हैं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत! और जिस बात की यहाँ बात करना चाह रहा हूँ वह है उनकी आम पार्टी! इस आम में सचमुच इतनी मिठास थी कि उनकी पार्टी के उन लोगों को उल्टियां होने लगी जिन्होंने इसमें शिरकत नहीं की! उन भाजपाइयों का हाजमा खराब हो गया जो आम नहीं चूस पाए! अब कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री की पार्टी में भाजपाई वर्तमान मुख्यमंत्री पहुँच जायं तो खलबली तो मचनी ही थी न!

यह आश्चर्यजनक रहा कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष प्रीतम सिंह व नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश सहित कई कद्दावर इस आम पार्टी में मिठास घोलने नहीं पहुंचे! कांग्रेसी विधायकों में सबसे पहले जिस विधायक की वहां मौजूदगी थी वह केदारनाथ के विधायक मनोज रावत हुए ! उसके बाद एक के बाद एक कई विधायक व पूर्व मंत्री भी आम चूसने आ पहुंचे! अचानक पूर्व मेयर व भाजपा विधायक चमोली के वहां पहुँचने से एक अलग ही माहौल नजर आने लगा! कयासें लगती रही! खीरा काटकर खिलाने वाला कहता सुनाई दिया भाई…प्रदेश ने कद्र नहीं जानी लेकिन हरदा अभी भी सबको सर माथे बिठाकर चलते हैं क्या पत्रकार क्या आम आदमी! आप आज के मुख्यमंत्री को देखो न आम आदमी से ही ठीक न पत्रकारों से ही कोई नाते रिश्ते!

मैं समझ गया कि यह मुझे पहचानता जरुर है लेकिन अनसुनी करता हुआ मैं बोला- भैया इस बार खीरे पर नमक मत लगाना क्योंकि पिछले की मिर्ची अभी नहीं मिटी! बहरहाल पूरे प्रदेश ही नहीं उत्तर प्रदेश से भी आमों की खेप मंगाई गयी थी! कुमाउनी ककड़ी का राइता ऐसे फ़ैल रहा था कि क्या भाजपा क्या कांग्रेस और क्या आम जन खूब सुपड-सुपड कर पी रहे थे! जामुन की क्या कहने दिखने के काले थे लेकिन हट्टे-कट्ठे खूब! कुछ लोग उन्हीं की तरह काले कपडे पहनकर आये थे! अब जामुन नीले भी अँधेरे में काले लगें तो मेरा दृष्टि दोष मत कहियेगा!

आम पार्टी में आमों में गुलाब जामुन, डिंगा, रितोल गोला, हलदान, नाघमापसंद, सेहरी, चौसा, अनारी,शरीफा, अरुणिका, तोतापरी, दसेरी, गुलाब खुश, ज़फ्रान, मुसू, चितला, अन्गूरदाना, बेगम पसंद, निदाली, हुसनारा, हाथीझूल, जैदन, अबेहयात, सैबू, पीच, फजरी, ओनेराज, हिदू, लंगडा, बेरिया, रदान, फैसल्या, सुर्ख, गोला, आम्रपाली इत्यादि शामिल थे! यानि जितने रंग के नेता व जनता सभी का समावेश इस आम पार्टी में था! आश्चर्य की बात तो ये इतने आमों के नाम आप लोगों ने मेरी तरह कम ही सुने होंगे!

वहीँ कुमाऊं से आये भुट्टे (मुंगरी), पहाड़ी ककड़ी ने तो रिकॉर्ड ही तोड़ रखा था ! मुझे दुःख है कि मैं एक फल खाने से वंचित रह गया क्योंकि भीड़ ही बेइन्तहा थी! सुनने में आया कि पकोड़ी भी थी और वह फल भी जिसका नाम याद नहीं आ रहा है! छोड़िये याद करूँ भी क्यों जब खाया ही नहीं!  लेकिन ऐसी ऊर्जा से भरा व्यक्ति बहुत कम दिखने को मिलता है जो माइक हाथ में लिए सबको आमंत्रित करते हुए कहते दिखाई दे रहे थे कुमाऊं का ये …गढ़वाल का ये और उत्तर प्रदेश का ये! लेकिन रायपुर का दूध जब कहा तो भला मैं कहाँ पीछे रहने वाला था दो गिलास पी आया. सोचा पचे न पचे मेरी बला से..! लेकिन आश्चर्य ऐसे हजम हुआ कि क्या कहने!

बहरहाल इस आम पार्टी ने यह तो तय कर ही दिया कि प्रदेश की राजनीति में हरदा जैसे राजनीति और कूटनीति से भरा कोई खिलाड़ी नहीं है! उन्होंने इस पार्टी के माध्यम से जहाँ एक तीर से दो शिकार किये वहीँ अपना राजनीतिक जीवन भी तय कर दिया क्योंकि जितने लोग वहां थे उनके मुंह से यही था कि इस आम पार्टी के बावजूद कहीं राजनीति नहीं दिखी! लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमने इन जैसा राजनीतिज्ञ हरा दिया! मैं मन ही मन बोला- ये हमने नहीं बल्कि हरदा के उन अपनों ने उनका बेडागर्क किया जो कुछ न होते हुए भी हर बात पर सांप सा फन मारकर बैठ जाते थे! मुझे वह इत्तेफाक भी याद आ गया जब हम कुछ पत्रकार उस स्टिंग के बाद उनसे मिलने गए थे जिसमें शराब की लेन-देन जैसी बातें हुयी थी ! हमने चिंता भी जताई कि नौकरशाह लौबी ऐसे पत्रकारों को पनपा रही है जो पत्रकार नहीं बिजनेशमैन या सौदेबाज हैं और उनका कोकस कुंडली मार चौबीसों घंटे उनकी ही परिक्रमा करता रहता है! आम पत्रकार हाशिये पर है जो चुनाव के समय इस सब से वाफिक रहता है कि अब उसकी पारी का इन्तजार है और वह गेम खेल देता है! देखा जाय तो वर्तमान मुख्यमंत्री की आँखों में भी घोड़े वाले पट्टे डालें हुए हैं ताकि वह इधर उधर न देख सकें! जिसके परिणाम आने वाले नगर निकाय चुनाव में दिखने को मिल सकते हैं!

रही हरदा की बात तो अब वह उत्तराखंड की जमीन की माटी की हर खुशबु सूंघ चुके हैं शायद उन अपनों को भी जो पार्टी में नदारद मिले! यही उनके लिए बेहतर विकल्प भी है कि वे उन अपनों की छाया भी अपने पर न पड़ने दें जिन्होंने उन्हें यहाँ लाकर पटक दिया है! मैं राजनीति से हटकर एक व्यक्ति बिशेष के रूप में इस शख्स का प्रशंसक तब से हुआ हूँ जब से हरदा ने राजसी खानपान में हमारे पहाड़ के अन्नों को प्रमोट किया! यह प्रमोशन इतना बड़ा हुआ कि आज प्रदेश में जितनी भी बड़े घरानों की शादी होती हैं उसमें पहाड़ी अन्नों के भोज को बेहद शौक से सजाया जाता है! और तो और पहाड़ के लोगों को मंडुआ, झंगोरा इत्यादि की कीमत का भी अनुमान हो गया है! और वह उनकी आय का अच्छा साधन भी बनता जा रहा है!

यह आम पार्टी भले ही ऐसे मौसम की बेहतरीन मिठास घोलने वाली है लेकिन मैं दावे के साथ कहता हूँ कि कल की यह पार्टी क्या कांग्रेस क्या भाजपा के राजनेता ! ज्यादात्तर की नींद उड़ा ले गयी होगी!

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