Saturday, December 21, 2024
Homeउत्तराखंडहम होंगे सिनला पार एक दिन…!वह कमजोर दिल वालों के लिए हिलाने...

हम होंगे सिनला पार एक दिन…!वह कमजोर दिल वालों के लिए हिलाने वाला रास्ता।

(ट्रेवलाग…केशव भट्ट)

शुरूआत की दुकान के बाहर हमने रुकसैक किनारे रखा और वहीं बैठकर डबल चाय के साथ बिस्कुटों का नाश्ता किया। आगे कच्ची सड़क के अवशेष दिखाई दे रहे थे, जो गर्बाधार तक जाती थी। सड़क कई जगहों से भू-स्खलन की भेंट चढ़ चुकी थी। हमारे साथ कई परिवार भी आगे जा रहे थे। पता चला वे व्यास घाटी में अपने गांवों में पूजा के लिए जा रहे हैं। आधे घंटे बाद गर्बाधार पहुंचने तक हम पसीने से बुरी तरह तरबतर थे। यहां एक दुकान खुली दिखी और शेष दो-तीन दुकानें बंद थीं। यहां की दुकानें कैलाश यात्रा सीजन के वक्त ही आबाद होती हैं। बाकी समय दुकानदार दूसरे कामों में लग जाते हैं।

दुकान के बगल में बह रहे ठंडे धारे में मुंह धोया तो काफी राहत मिली. दुकान स्वामी धामीजी नाम के कोई सज्जन थे. दुकान के बाहर हरी ककड़ी के सांथ चटपटा नमक देख उनसे एक ककड़ी खरीद ली। धारे का मीठा पानी, हरे नमक के साथ ककड़ी का स्वाद लाज़वाब था. धामीजी से एक और ककड़ी देने का आग्रह किया। धामीजी हम पर बिफर पड़े- एक तो खा ली, पैसा दिया नहीं…! अब दूसरी मांग रहे हो. हमने उन्हें समझाने की कोशिश की हम ककड़ी का पैसा दे चुके हैं, लेकिन वह समझने को तैयार नहीं थे। स्थानीय भाषा में गुस्से से फनफनाते हुए वह कह रहे थे कि, कैसे वह नेपाल के गांव से ये ककड़ी लाए हैं। वहां बैठे कुछ ग्रामीणों ने ने बहुत मुश्किल से उन्हें समझाया कि ये लोग पैसे दे चुके हैं। तब जाकर वह शांत हुए और उन्होंने हमें दूसरी ककड़ी दी. दरअसल माज़रा हमें बाद में समझ में आया। हुआ यह था कि धामीजी ने दोपहर तक ठीक-ठाक कमाई कर लेने के बाद थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खूब ‘चक्ती’ डकार ली थी और तब तक वह अपनी मौज में आ चुके थे।

दूसरी ककड़ी निपटा लेने के बाद हम आगे लखनपुर-मालपा की ओर बढे। आगे दिखाई दे रहा सीधा रास्ता अचानक बांई ओर मुड़ गया। आगे जो नज़ारा था वह कमजोर दिल वालों के लिए हिलाने वाला था। चट्टान काटकर बनाए गए बेहद संकरे चंद्राकार रास्ते के ठीक नीचे काली नदी भयानक गर्जना कर रही थी। अचानक हमारा ध्यान रास्ते में पड़ी चप्पलों की ओर गया तो हम सभी चौंक उठे। नीचे को झांका तो एक महिला बड़ी तल्लीनता से चट्टान के किनारे हरी घास काटने में मशगूल थी। पहाड़ में महिलाओं का जीवन कितना संघर्षभरा होता है, ऐसे दृश्य इस बाद को सिद्ध कर देते हैं।मैंने सभी को चुपचाप आगे चलने का इशारा किया।

हम काली नदी के इस पार थे। अपने ऊपर के पहाड़ से रिसते हुए आ रहे पानी से भीगते हुए हम काली के उस पार नेपाल के घने जंगल की ओर उत्सुकता से देख रहे थे। सर के ऊपर टपक रहा पानी कई जगह जब झरने की शक्ल ले लेता तो हमारा छाता भी जवाब दे जाता। काली के किनारे उतरते-चढ़ते इस डरावने मार्ग को पारकर अब हम ‘शान्ति वन’ में पहुँचे. यहां घना जंगल और उसमें छाई असीम शांति मिली तो कुछ देर वहीं पसर गए।

एक जवान जोड़ा अपने झोपड़ीनुमा ढाबे के बाहर ढलती धूप में अपनी थकान मिटा रहा था. यहां चाय, पानी व नाश्ते-भोजन के अलावा पांच-सात लोगों के रहने की व्यवस्था थी. हमने ठंडा पानी पिया और चाय-बिस्किट से अपनी भूख शांत की। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद हम आगे चढ़ाई की ओर बढ़ चले. आगे दो-तीन दुकानें और दिखीं, जहां बोझा ले जा रहे मजदूर सुस्ता रहे थे। व्यास घाटी में पूजा को जा रहे हमारे ज्यादातर सहयात्री आगे निकल चुके थे. सामान ले जा रहे गिने-चुने मजदूर हमारे आगे-पीछे चल रहे थे। कोई तीन किलोमीटर चलने के बाद लखनपुर पड़ाव मिला। मैं दुकान के बाहर तकली से ऊन कात रही एक महिला की फोटो खींचने लगा तो वह झेंपती हुई तुरंत दुकान में समा गई। यहां भी यात्रियों के चाय व भोजन की व्यवस्था थी। यहां चाय पीने के वक्त याद आया कि दो साथी तो अपने गिलास लाना ही भूल गए हैं। हमने होटल मालिक से मनुहार की और दो गिलास खरीद लिए।

अब सूरज अपना बिस्तर समेटने लगा था और जीप में धक्के खाने और फिर उतार-चढ़ाव कठिन पैदल यात्रा के बाद हम भी बुरी तरह थक गए थे। अंधेरा घिरने लगा और परिंदे भी अपने घोसलों में पहुंचकर चहचहा रहे थे, मानो गिनती कर रहे हों की सारे परिजन वापस लौट आए कि नहीं. हमने अपने-अपने टॉर्च निकाल लिए। मजदूरों ने बताया कि मालपा अभी करीब चार किलोमीटर दूर है। जब जाने का इरादा कर लिया हो तो परवाह किस बात की। आगे तीखी चढ़ाई शुरू हो गई थी. काली नदी अब हमसे दूर जा चुकी थी और हम घने जंगल के बीच गुज़र रहे थे। घंटेभर बाद अचानक नदी का जैसा शोर सुनाई पड़ने लगा। गुर्राते हुए अपने होने का एहसास करा रहे एक गधेरे को पार किया तो सामने कुछ झोपड़ियां दिखीं। अंदर झांका तो झोपड़ी में खाने से लेकर रात गुजारने की सारी व्यवस्था दिखी। अचानक बगल वाली झोपड़ी से आवाज आयी कि यह मालपा है और आप लोगों के रहने की व्यवस्था पहली झोपड़ी में की गई है। आवाज देने वाले धारचूला से साथ-साथ चल रहे सहयात्री थे, जिन्हें गुंजी गांव से आगे नाभी गाँव जाना था। (जारी..)

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES