सीडा….बापरे बहुत मुश्किल है पचाना!
(मनोज इष्टवाल)
आम तौर पर चाइनीज फ़ूड मोमो की शक्ल का लगने वाला यह आहार बेहद बेहद स्वादिष्ट और अनोखा है. इसे बंगाण क्षेत्र उत्तरकाशी में कोई सीढ़ी तो कोई सीडा बोलता है जबकि जौनसार बावर में ज्यादातर स्थानों पर इसे सेडकु नाम से जाना जाता है.
मुख्यत: इसे पीठे का सीडा कहा जाता है क्योंकि यह चावल से बनाया जाता है. सीडा बनाने की विधि भी लगभग मोमो जैसी ही होती है. लाल चावल के आटे को पानी घी में मिक्स करते हुए घुमाया जाता है. इसका मानक जलेबी जैसा ही पतला होता है लेकिन इसे थिकनेस जरा ज्यादा कम होती है.
सीडा के अंदर यहाँ के लोग भंगजीरा, भांग, दाल मास, या मीठा नमकीन अपनी इच्छानुसार डालते हैं. इसे भाप में ठीक उसी तरह पकाया जाता है जिस तरह मोमो को भांप दी जाती है.
बेहद स्वादिस्ट सीडा जब हमें हीरा सिंह चौहान ग्राम बलावट पट्टी भंगाण की धर्मपत्नी ने सर्व किया तो लगा हम कई सीडा खा जायेंगे. लेकिन यह क्या एक गिलास में मट्ठा, बड़ी सी ढेली मक्खन, व कटोरा भर गर्म घी जब थाली में दिखने को मिला तो लार टपकनी स्वाभाविक थी.
एस डी एम शैलेन्द्र नेगी जी हमें इसी ग्राम में मिले जिनके साथ हमने बैठकर सीडा का रस्वादन किया. विजयपाल रावत व दिनेश कंडवाल जी एक सीडा खाने के बाद मैदान छोड़ दिए न वे घी ही पूरा पी पाए लेकिन मैंने व एसडीएम साहब ने पूरे दो दो सीडा खाए. जबकि रतन असवाल पूरे ढाई खा गये. ढाई सीडे खाने के बाद रतन असवाल एक साकोई (बड़ा सा चावल का पापड़) भी खा गए. ऐसे में पूरे दिन भूख लगने का प्रश्न ही नहीं उठता था. लेकिन आज तीसरे दिन पता लगा कि स्वाद के लिए खाए गए सीडा व कटोरी भर घी पीना हम जैसे अदकच्चे पहाड़ी के वश की बात नहीं. जब से आया बस पेट ही चल रहा है. आप भी महमाननवाजी में जब बिशेषत: जनजातीय क्षेत्र के ऐसे पौष्टिक आहार खाएं तो ध्यान से ! कम खाएं स्वाद लें न कि मेरी तरह !