Friday, November 22, 2024
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साहसिक पर्यटन में विश्व रिकॉर्ड ..फिर भी हाशिये पर…! मनीष जोशी को क्यों नहीं प्रमोट करती प्रदेश सरकार !

(मनोज इष्टवाल)

विगत 6, 7 और 8 मई 2019 की खबरों में पर्यटन विभाग उत्तराखंड का वह कडुवा सच सामने था जब हर अखबार व सोशल साईट पर यह खबर सुर्ख़ियों में थी- ” उत्तराखंड सरकार की ऐतिहासिक कैबिनेट का गवाह बना फ्लोटिंग मरीना आखिरकार टिहरी झील में डूब गया। चार करोड़ रुपये की लागत से फ्लोटिंग मरीना वर्ष 2015 में बनकर तैयार हुआ था, लेकिन सरकार और पर्यटन विभाग चार साल में भी इसका संचालन शुरू नहीं करा पाए। जिस कारण मरीना टिहरी झील में खड़े खड़े पानी के थपेड़े खा रहा था। बीती रात फ्लोटिंग मरीना का आधा हिस्सा टिहरी झील में डूब गया।”

अब आम आदमी की तो बात ही दूर है यहाँ वह फ्लोटिंग मरीना डूब गयी जिस पर प्रदेश सरकार की कैबिनेट हुई हो ! यह महज डूबना तैरना बिषय नहीं है बल्कि वर्तमान प्रदेश सरकार को इसका गंभीरता से संज्ञान लेकर टिहरी झील साहसिक पर्यटन पर खर्च हुए करोड़ों रूपये की एक एक पाई कहाँ और कैसे खर्च की गयी उसकी भी जांच कर लेनी चाहिए क्योंकि अब संज्ञान में आ रहा है कि इस पर तो करोड़ों की डंकार लेने वालों को जब से यह फ्लोटिंग मरीना डूबी है तब से अपच हो रखा है व वे अपने नोटों के थैले भर भर कर अपने घोड़े आईएएस अफसरों की चौखट तक भिजवा रहे हैं ताकि उनकी गर्दन तक फंदा न पहुंचे!

गरुडा कैंप जहाँ जमा कर लेते हैं मनीष विश्व का बड़ा हुजूम!

खैर यह तो एक बानगी भर थी क्योंकि इस बानगी को देखते हुए सोशल साईट पर यह तक ट्वीट होने लगा है कि पर्यटन विभाग टिहरी झील में डूब कर मर गया है! यहाँ विगत सरकार के दौर में हुए व्यापक घोटालों पर ही ध्यान केन्द्रित कर यह कहकर इतिश्री कर लेना ठीक नहीं रहेगा कि यह जिम्मेदारी पूर्व सरकार के कारनामों का फल है ! अगर यह पूर्व सरकार ने किया तो आप भी तो उसी का अनुशरण अब तक कर रहे हैं क्योंकि आप भी उन लंगड़े घोड़ों को रेस में दौड़ा रहे हैं जो साहसिक पर्यटन की “सा..प..” तक नहीं जानते! बर्ष 2016 में मेरे द्वारा पर्यटन विभाग के ध्यानाकर्षण हेतु एक लेख ऐसे ही प्रदेश के अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त युवा पर लिखा गया था जिसे विश्व के कई सुप्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं ने प्रमुखता से छापा है जिनमें वेस्ट सक्सेस गजेट (इंग्लैंड), लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड, सन मैगजीन, बिजनेशलाइन, इंडिया टुडे, सहारा समय, दैनिक जागरण इत्यादि कई पत्र पत्रिकाएं शामिल हैं!

विश्व भर की पत्रिकाओं में सुर्ख़ियों में मनीष जोशी

प्रदेश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा क़ि साहसिक पर्यटन व् साहसिक खेलों में विश्व रिकॉर्ड कायम करने वाले पौड़ी निवासी मनीष जोशी के गृह जनपद पौड़ी में हर साल साहसिक पर्यटन को प्रमोट करने के लिए 40 से 50 लाख का सालाना बजट सिर्फ बड़े अधिकारियों के घर की शोभा बढ़ाने में खर्च होता है। जो लैप्स न हो जाय इस डर से दुसरे विभाग में ट्रांसफर कर कार्पेट सोफा इत्यादि के काम आता है।

पौड़ी के सौन्दर्य से अभिभूत विश्व मानस

साहसिक पर्यटन पर पौड़ी जनपद ने सिर्फ हाल ही में एक ट्रेक पर काम किया जो मात्र दो किमी का है। वहीँ विभाग का आलम यह है कि पौड़ी जैसे पर्यटन के बड़े बिषय पर आँखें मूंदे बैठे हैं जहाँ मनीष जोशी जैसा व्यक्तित्व है जो लगभग तीन बार लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं। ये वे ही मनीष जोशी हैं जिन्होंने नार्थ इंडिया में सर्व प्रथम पैराग्लाइडिंग शुरू करवाई। वो भी पौड़ी के पास एक छोटे से स्थान कंडारा में । जहाँ अंग्रेज, सेना व् स्थानीय कई लोगों के अलावा उ.प्र. के जमाने के तत्कालीन आई एस, आई ऍफ़ एस व् आई पी एस व् पी सी एस अफसरों के भी प्रशिक्षण प्राप्त किया।

दून स्कूल की मेटल वर्कशॉप में 13 बर्षीय मनीष जोशी एयर क्राप्ट निर्माण में ब्यस्त!

मनीष जोशी वह व्यक्तित्व है जिसने मात्र 13 साल की उम्र में दून स्कूल में अपने अध्ययन के दौरान वहाँ की मेटल वर्कशॉप में सिंगल इंजन का एक एयर क्राप्ट बनाकर सबको हैरत में डाल दिया! यह ऐसा एयरक्राफ्ट बना जिसमे दो व्यक्ति आराम से उड़ सकते हैं। यह उनके द्वारा बनाया गया विश्व कीर्तिमान है जिसे वर्ल्ड रिकॉर्ड के रूप में दर्ज किया गया, आज की दृष्टि से अगर देखा जाय तो यह खुफिया ऐसा एयरक्राफ्ट हो सकता है जो बेहद कम लागत के बाद भी आधुनिक कैमरों से लेश होकर दुश्मन देश की सीमा पर टोह लेने का काम कर सकते हैं।

पत्र-पत्रिकाओं की सुर्ख़ियों में मनीष जोशी

हिमालयन पैराग्लाइडिंग के नाम से इंस्टिट्यूट चलाने वाले मनीष जोशी ने मोटर चालित पहला ऐसा पैराग्लाइडर बनाया जो बहुत लंबी व् ऊँची उड़ान भर सकता है। जो दुश्मनों के राडार से बचकर सीमा की निगरानी कर सकता है। यह पहला व्यक्ति है जिसने संसार की सबसे ऊंची सड़क पर मोटर साइकिल दौड़ाकर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया।

आज साहसिक खेल पर सरकार टिहरी झील में करोड़ों रूपये खर्च कर उसे प्रमोट कर रही है जो बहुत बड़ा शुभ संकेत है। वहीँ पौड़ी जैसी नैसर्गिकता से भरे शहर या जिले के नाकाबिल अफसरों की वजह से यहाँ के वर्ल्ड रिकॉर्ड धारी मनीष जोशी जैसे होनहारों को किनारे कर लाखों के वारे न्यारे करने के लिए जिले में पैराग्लाइडिंग करवाने के लिए हिमाचल से ट्रेनर बुलाये जाते हैं जो मनीष जोशी के उसी पॉइंट से जो सीतावनस्यु में स्थित है पैराग्लाइडिंग करवाते हैं। आखिर प्रदेश सरकार क्यों अपने ऐसे नकारे अधिकारियों को कुर्सी पर बिठाये है जो सिर्फ कमाई का जरिया ढून्ढ रहे हैं और बाकी कुछ नहीं।


मनीष जोशी को न सिर्फ हिंदुस्तान के बड़ी पत्र-पत्रिकाओं ने छापा बल्कि विश्व भर के अखबारों ने उनका लोहा माना। मनीष शायद पहले ऐसे गढ़वाली हैं जो टाइम्स मैगज़ीन की खबर में भी रहे। फिर भी दुर्भाग्य देखिये कि कभी भी पर्यटन विभाग द्वारा इस युवा को प्रमोट करने की कोई पहल नहीं की गयी! आज जबकि पर्यटन व्यवसाय प्रदेश की आर्थिकी का सबसे बड़ा तंत्र माना जा रहा है वहीँ एक दीमक वाला सिस्टम कभी नहीं चाहेगा कि ऐसे लोग प्रमोट किये जाएँ जो इस व्यवसाय को अपने कन्धों पर लाधकर आगे बढ़ा सकें!

गरुडा कैंप में जनरल शेरू थपलियाल, एडमिरल काला व विश्व समुदाय के लोगों के साथ लेखक मनोज इष्टवाल व मनीष जोशी

मनीष जोशी वर्तमान में पौड़ी गढ़वाल के विकास खंड पौड़ी पट्टी पैडुलस्यूं के अपने गाँव जोशियाणा में गरुडा कैंप चला रहे हैं व रिवर्स माइग्रेशन को लेकर बेहद संजीदा हैं! ज्ञात होकि पौड़ी शहर में मनीष जोशी के पिता मोहन जोशी भी अपना मोहन एंड मोहन करके जहाँ लीसा फैक्ट्री चलाते थे वहीँ मांडाखाल में उनका उस जमाने में स्टोनकर्सर था जब पहाड़ की वादियाँ यह नहीं जानती थी कि इन पत्थरों को पीसने से भला क्या हासिल होने वाला है! मनीष जोशी अपना बसंत बिहार देहरादून का ऐशोआराम त्याग रिवर्स माइग्रेशन करते हुए अपने पुरखों की बंजर जमीन को आबाद करने अपने पैत्रिक गॉव जोशियाना जा पहुंचे जहाँ बमुश्किल बचपन में उनके कभी कभार कदम पड़े रहे होंगे!

सारे भौतिक संसाधनों का उपभोग करने वाले मनीष ने आखिर क्यों यह दर्द लिया कि वे बंजर में उगी झाड़ियों के कंटीले दंश झेलें. यह प्रश्न न मैंने मनीष जोशी से पूछा और न ही उन्होंने बताया लेकिन वे इस बात से बर्षों से हताश व परेशान लगते थे कि गॉव से निकला व्यक्ति बड़े शहरों में 8 से 10 हजार की नौकरी करने को तो राजी है शहर में 30 गज या 50 गज में मकान बनाकर रातदिन मेहनत करने को भी राजी है लेकिन अपने पहाड़ की कई हेक्टेअर जमीन कई नाली जमीन पर बने पैत्रिक मकान व साग सगोड़े जल जंगल और जमीन त्यागकर शहरी बन रहा है!

मनीष जोशी कहते हैं वे भी वही सोचते हैं कि स्वास्थ्य शिक्षा और जरूरतें हर इंसान अपने परिवार के लिए ढूंढता है और शायद यही कारण भी रहा कि गॉव बंजर होने शुरू हुए लहलहाते खेतों में दूब उगने लगी और गॉव वीरान होने लगे! सियार गीदड़ भालू जंगली सूअर अब उन घरों के बाशिंदे होने लगे जहाँ कभी खिलखिलाती हंसी गूंजती थी! आंगनों की फटालें माँ बहनों के क़दमों की चाप से मुलायम व चिकनी हो जाती थी जिसके पत्थरों को सुरीले सुरों की आवाज़ व पायल की झंकार सुनने की आदत थी आज वही मूर्तवान पत्थर फिर से घर आँगन में जड़वत हो गए थे! मनीष जोशी की यह तीस बर्षों तक उन्हें सालती रही. वे किसी से कहें भी तो कहें कैसे कि गॉव वीरान मत करों वही खेत खलियान आपकी आय का मजबूत जरिया बन सकता है!


मनीष के पारिवारिक पृष्टभूमि की अगर बात करें तो आपको ज्ञात होगा कि दुनिया के सबसे धनि व्यक्ति बिलगेटस के सेक्रेटरी कैलाश जोशी मनीष जोशी के ही पारिवारिक सदस्य हैं! मनीष जोशी का परिवार कुमाऊं से उस दौर में आकर जोशियाना बसा जब कुमाऊं के राजसी ठाठ बाट उनके हाथ से छूटे और गढ़ नरेश ने उन्हें अंगीकार किया!

मनीष जोशी की पारिवारिक पृष्टभूमि देखते हुए यह तो नहीं लगता था कि लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अलग अलग रिकॉर्ड बनाने वाले मनीष जोशी पीछे मुड़कर अपने गॉव में ही ग्रामीणों के लिए रोजगार तलाशने का जरिया बनेंगे! उन्होंने गरुडा एडवेंचर के नाम से एक कैंप शुरू किया और उनकी मेहनत उन्हीं के बंजरों को इन्सानियत की सुगबुगाहट से सौंधी मिटटी में तब्दील करने लगी जो लगभग आस छोड़ चुकी थी! मनीष जोशी के अनुरोध पर उन्होंने राउंड स्क्वायर के अपने दोस्तों से बात की जिनमें मिस एलिजाबेथ ग्रे, श्रीमती कैथलीन ग्रे, और मिस्टर पॉल इंग्लैंड, मुल्ली जैक्सन टीचर कनाडा, साइमन और जूली टीचर सिंगापुर, डॉ. माइक और कैरोलिन इंग्लैंड, मिस्टर पीटर और चारमीन इंडोनेशिया, मैं स्वयं अम्बिकेश शुक्ला (डायरेक्टर ऑफ़ सोशल सर्विस एंड एक्टिविटीज दून स्कूल), डॉ. अमर लंका (रेजिडेंशियल डॉक्टर दून स्कूल), आनंद कुमार मधियान (केमिस्ट्री टीचर दून स्कूल), के सी मौर्या (कम्यूटर असिस्टेंट दून स्कूल), गौतम कुमार (इकोनॉमिक्स टीचर लौरेंस स्कूल सनावर हिमाचल प्रदेश), डॉ. सद्दीक खान (हेड एस.यू.पी.डब्ल्यू. लौरेंस स्कूल सनावर हिमाचल प्रदेश), राखी काला जोशी (टीचर सैंट मैरी स्कूल नैनीताल) अवनी जोशी (स्टूडेंट सैंट मैरी स्कूल नैनीताल), मिस्टर जोसेफ (योगा टीचर एंड सोशल एक्टिविस्ट केरल) ने मिलकर एक रूपरेखा तैयार करते हुए पट्टी पैडूलस्यूं पौड़ी गढ़वाल के डुंगरी गाँव में सीमित संसाधनों से एक कम्युनिटी सेंटर बनाने की कार्ययोजना बनाई! और आज वह कम्युनिटी सेंटर बनकर तैयार है जिसमें देश की सबसे टॉप मोस्ट शैक्षणिक संस्थान दून स्कूल की छात्र छात्राओं ने श्रमदान कर उसको अंतिम स्वरुप दिया!

मनीष जोशी बताते हैं कि उन्हें इस बात की बेहद हैरत होती है कि हम जब भी रिवर्स माइग्रेशन की बात पर अपने सो काल्ड उत्तराखंडी समाज के वेल सेटल्ड लोगों से बात करते हैं तो उन्हें लगता है कि यह बेहद पीड़ा दायक है क्योंकि उन्हें आराम पसंद जिन्दगी जो पसंद है! वह इस बात पर ख़ुशी जताते हैं कि उनके कैंप में जो भी विदेशी मेहमान आता है वह यहाँ की माटी का हो जाता है! वह भी हमेशा अपने विदेशी मेहमानों को परमार्थ निकेतन में योग व उत्तराखंड के धार्मिक मान्यताओं सम्बन्धी बिषय पर अध्ययन के लिए ले जाते हैं, साथ ही मसूरी व लैंसडाउन भी जाते हैं ताकि ये अपने-अपने देशों में जाकर उत्तराखंड के पर्यटन विकास की बात कर सकें! उन्होंने बताया कि विगत दिन उन्होंने पूरी टीम को पौड़ी के नागदेव, झंडीधार, गरुडा पीक से बुबाखाल तक वाइल्ड लाइफ ट्रेक करवाया जिस से सभी बेहद खुश दिखे!

अभी हाल के ही दिनों गरुडा कैंप में मेरी मुलाक़ात लिज ग्रे नामक महिला से हुई, पॉल के साथ एलिजाबेथ लिज ग्रे नामक लेखिका इंग्लैंड से आई थी! एलिजाबेथ लिज ग्रे कहती हैं कि हिमालय सिर्फ उनके लिए नहीं बल्कि विश्व भर के समुदायों के लिए बिशेष आकर्षण महत्व का बिषय रहा है! हम सभी हिमालय से बेहद प्यार करते हैं और यही कारण भी है कि उनकी माँ लगभग 78 बर्ष की उम्र होने के बाबजूद भी अपने को यहाँ आने में रोक नहीं पाई! यही उनके दोस्तों का भी हाल है लेकिन उन्हें आश्चर्य है कि इस देवभूमि के लोग लगातार अपने खेत – मकान छोड़कर पलायन कर रहे हैं जोकि चिंता का बिषय है! सिंगापुर से आई शारमिन का भी यही सोचना है कि प्रदूषण से मुक्त यह क्षेत्र योग और ऊर्जा केन्द्रित करने में बिलक्षण है! यहाँ आकर स्वाभाविक तौर पर एक ऐसी ऊर्जा का संचार मनोमस्तिष्क में होता है जिसका बखान करना मुश्किल है. यहाँ के आम जन मानस की भाषा वह समझ नहीं सकती लेकिन मेहमानों के लिए उनकी आँखों में छलकता प्यार अतुलनीय है!

बहरहाल मनीष जोशी जैसे होनहार अपने बलबूते विश्व समुदाय का ध्यान उत्तराखंड की वादियों घाटियों पर्वतों और नदियों के बीच बसे हिमालयी संस्कृति की ओर खींचने में लगे हैं लेकिन प्रदेश पर्यटन विभाग कब ऐसे होनहारों पर अपना ध्यान केन्द्रित करेगा जबकि इस समय पर्यटन विभाग में सचिव के तौर पर सुलझे व्यक्तित्व के दलीप जवालकर हैं व विश्व भर का भ्रमण करने वाले मंत्री के तौर पर सतपाल महाराज!

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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