(मनोज इष्टवाल)
हर आपदा के बाद या आपदा के समय सैकड़ों स्वयंसेवी संस्थाएं जनता की सेवा में जी जान से जुटी रहती हैं। वही अखबारों टीवी चैनल्स की सुर्खियां बटोरते भी दिखाई देते हैं। इस बार भी उत्तराखण्ड राज्य में सेल्फ हेल्प ग्रुप व सैकडों एनजीओ आये दिन लाखों का राशन खाद्य सामग्री जनता को बांटती दिख रही है, वहीं दूसरी ओर सरकार अपने कागजों में ही नहीं बल्कि धरातल में भी आम जनता से ग्राम समाज तक जून माह तक का एडवांस राशन कोटा बांट चुकी है। अब प्रश्न ये उठता है कि क्या ग्राम सभाओं तक सरकारी राशन नहीं पहुंचा जो एनजीओ बेहद सक्रियता से शहर गाँवों तक राशन व खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करती दिखाई दे रही हैं।
बड़ा प्रश्न यही है कि क्या सरकारी राशन कागजों में बंटा या धरातल में? अगर धरातल में बंटा तो एनजीओ किसको राशन बांट रहे हैं? क्या सिर्फ यह राशन फोटो खिंचवाने तक है या फिर कहीं सरकारी तंत्र व स्वयं सेवी संस्थाओं के बीच कोई बड़ा झोल है। ज्ञात हो कि पूरे प्रदेश में इस समय लगभग 50 हजार स्वयं सेवी संस्थाएं (एनजीओ) काम कर रहे हैं। जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत एनजीओ आजीविका उन्नयन से मोटा पैसा लेकर काम भी कर रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों व एनजीओ द्वारा जो खाद्य आपूर्ति की बात आये दिन सुर्खियों में दिखती है कहीं वह सीएसआर के पैसे को ठिकाने लगाने का जरिया तो नहीं है?
इस सम्बंध में पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन सिंह असवाल जानकारी देते हुए कहते हैं कि जब सरकार पहले ही जून तक का चार माह का राशन अग्रिम बांट चुकी है, उसमें भी एपीएल कार्ड धारकों तक कोटे से दुगनी राशन पहुंच चुकी है, तब ऐसे में प्रदेश के जितने भी बड़े एनजीओ खाद्य आपूर्ति सम्बन्धी अपनी सेवाएं दे रहे हैं, वह उन्हें अभी की जगह लॉकडाउन के बाद करनी चाहिए क्योंकि जून के बाद सरकार के पास सिर्फ दो माह की ही खाद्य आपूर्ति शेष रह जाती है इसलिए मेरा तो यही मानना है कि वे अगस्त माह के बाद खाद्य आपूर्ति की जगह उत्तराखंड लौटे परिवारो को रोजगार सृजन के अवसर उपलब्ध कराने में मदद करे ताकि लोग पुनः रोजी रोटी के लिए पलायन न करें।
उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने गांव मिर्चोड़ा में बीज आन्दोलन छेड़ते हुए बंजर खेतों को आबाद करने की मुहिम शुरू कर दी है व सबको कह दिया है जिसे जो खेत पसन्द आ रहा है वह उसे आबाद करे, चाहे वह खेत किसी का भी क्यों न हो। इस बहाने तो वे लोग पुनः सोचना शुरू करेंगे कि गांव को भूल जाना मतलब हक अधिकार खो देने जैसा हुआ।
ज्ञात हो कि कि होम या सामुदायिक क्वारनटाइन व्यक्तियों के लिए सरकार द्वारा एक खाद्य पैकेट तैयार किया है जिसमें प्रति व्यक्ति 5किलो आटा, 3 किलो चावल, 2 किलो दाल, 1 किलो तेल, 1 किलो चीनी, 250 ग्राम मसाले, 250 ग्राम चाय पत्ती, 1 किलो नमक इत्यादि शामिल है, जोकि 14 दिन क्वारनटाइन किये गए व्यक्ति के लिए पर्याप्त है। वहीं अन्तोदय कार्ड धारकों को 20 किलो चावल, 10 किलो गेंहूँ व 2 किलो दाल अन्तोदय की सस्ती दरों पर उपलब्ध करवाया जा रहा है जबकि बीपीएल कार्ड धारकों को 3 किलो चावल व 2 किलो गेंहूँ प्रति यूनिट मिल रहा है।
ज्ञात हो कि सरकार अपने पास मात्र 9 माह का राशन ही साल भर के लिए स्टोर करती है जिसमें तीन माह की राशन सुरक्षा बलों व बाकी 6 माह की राशन आम जनता के लिए उपलब्ध होती है, इसे में इस महामारी में हम अग्रिम 4 माह की राशन पा चुके हैं व दो माह जुलाई अगस्त की राशन मिलनी बाकी है। बाकी माह की राशन के लिए हमें अभी से अपनी खाद्य आपूर्ति की योजना को मजबूत करना होगा।
सरकार की पहल पर मनरेगा ध्याडी भी अब बढ़ा दी गयी है। अब प्रति व्यक्ति मनरेगा ध्याडी 201 रुपये व 100 दिन से 200 दिन मनरेगा कार्य बढ़ा दिया गया है जिसका सीधा सा अर्थ हुआ कि अब प्रति व्यक्ति गांव में रहकर मनरेगा से 3600 रुपये से लेकर 4000 रुपये सिर्फ मनरेगा से ही कमा सकता है जो ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को सुधारने के लिए बेहद मददगार साबित होगा। मनरेगा को सरकार कृषि बानगी से भी जोड़ने का यत्न कर रही है। अगर यह सम्भव हुआ तो यह तय है कि उत्तराखंड में इस महामारी।के दौर में हुए रिवर्स माइग्रेशन के पैर अवश्य थमेंगे।