(मनोज इष्टवाल)
पर्यटन एवं धर्मस्व संस्कृति, लघु सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज का यह रूप भला किसने देखा होगा! जिन सतपाल महाराज के बारे में आम लोगों के बीच यह प्रचलित किया गया है कि वह गलती से अगर किसी आदमी से हाथ मिला दें तो पुनः हाथ धोते हैं! वही सतपाल महाराज अगर अपनी भोजनशाला में उत्तराखंड के 10 बाजगी/औजी/ढोली/ढाकी के साथ बैठकर अपना राजसी भोज करते हों तब आप क्या कहोगे!
यह जानकारी यों तो मुझे तभी थी जब पर्यटन एवं धर्म-संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज द्वारा संस्कृति विभाग के माध्यम से प्रदेश के 1002 ढोली समाज के लोगों के साथ अपने हरिद्वार स्थित प्रेमाश्रम में “नमो नाद” गुंजायमान किया था लेकिन तब मैंने इसे इसलिए नहीं लिखा क्योंकि यह सिर्फ कानों सुनी बात थी व मेरे पास इसके कोई पुख्ता प्रमाण भी नहीं थे! अब जबकि विगत 23 नवम्बर 2019 को संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित “साहित्य सम्मलेन” में पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की मौजूदगी में मंच से यह बात सार्वजनिक की तब यह जानकारी मेरे लिए पुख्ता बनी!
सतपाल महाराज के बारे में आम लोगों की धारणा है कि वह व्यवहारिक नहीं हैं और आम लोगों से उनका घुलना-मिलना नहीं है, लेकिन मेरा मानना है कि सतपाल महाराज के विराट व्यक्तित्व के पीछे छुपा उनकी दयालु प्रवृत्ति व प्रेम शायद वही जान सकता है जो पहले उपरोक्त धारणा को दिलो-दिमाग से हटाकर उनसे मिलें क्योंकि बिना उन्हें समझे जाने ही कोई धारणा बनाना निरर्थक है! जहाँ तक मैं व्यक्तिगत तौर से सतपाल महाराज को जान पाया हूँ वह यह है कि वह साफ़ स्पष्टवादी ब्यक्ति हैं और आम राजनीतिज्ञ की भाँति वे दोयम छवि के साथ जीना पसंद नहीं करते! अक्सर यही कारण भी है कि मीलों चलकर देहरादून पहुंचा व्यक्ति जब अपनी फ़रियाद लेकर उनके पास पहुँचता है तब वे कभी-कभी उस फ़रियाद पर बिना लाग-लपट के साफ़ कर देते हैं कि यह काम नहीं हो सकता! इस से आम व्यक्ति दुखी जरुर होता है लेकिन यही सच्चाई भी होती है! जबकि आम राजनेता इस बात को जानता है कि मुंह पर यह बात कह देने से जनता में गलत संदेश जाएगा, भले ही तब वह व्यक्ति महीनों तक मंत्री की चिट्ठी लेकर सचिवालय विधान-सभा के चक्कर काटता रहे!
बहरहाल प्रसंग पर लौटते हैं! यह 9 नवम्बर 2017 अर्थात राज्य स्थापना दिवस की बात हुई जब हरिद्वार में 1002 ढोली नमो नाद एक साथ बजाते हुए दिखे! यों तो इससे पूर्व कार्यशाला में 1563 ढोलियों का पंजीकरण हुआ था जो बाद में 1214 हुए और अंत में 1002 ही रह गए क्योंकि इनमें से कई नमोनाद के लिए चयनित नहीं हो पाए! इससे हुआ यह कि संस्कृति विभाग इसे लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भले ही दर्ज नहीं कर पाया लेकिन इन ढोलों की गूँज सुनकर सचमुच नटराज थिरकने लगे होने क्योंकि जब ये नाद बजे तब मेरे मुंह से स्वयं ही नमो नम: में आदिदेव महादेव का नटराज स्वरुप फूट पड़ा और ढोलों की गूँज के साथ मैं गायन करने लगा:-
सत सृष्ट तांडव रचयिता नटराज राज नमो नमः।
हे आद्य गुरु शंकर पिता नटराज राज नमो नमः।।
गम्भीर नाद मृदंगना धबके उड़े ब्रह्माण्ड मा।
नित होत नाद प्रचन्डना नटराज राज नमो नमः।।
सिर ज्ञान गंगा चन्द्रमा चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मा।
विष नाग माला कंठमा नटराज राज नमो नमः।।
तव शक्ति वामांगे स्थिता हे चन्द्रिका अपराजिता।
चहुँ वेद गाये संहिता नटराज राज नमो नमः।।
सत सृष्टि ताण्डव रचयिता नटराज राज नमो नमः।
हे आद्य गुरु शंकर पिता नटराज राज नमो नमः।।
भले ही साहित्य सम्मेलन के माध्यम से संस्कृति विभाग पूरे प्रदेश में एक अच्छा संदेश देने में कामयाब रही लेकिन ढोल, ढोली और ढोली समाज पर जितना कम समय दिया गया वह ढोल सागर के लिए बहुत ही अपर्याप्त था! क्योंकि न ढोल के श्रृंगार पर चर्चा हो पाई न उसके बनाने पर श्रृष्टि संरचना पर! ढोल सागर पर बहुत कम समय में जो व्याख्यान डॉ. डी आर पुरोहित का था वह अतुलनीय रहा लेकिन दमाऊ सागर पर एक शब्द भी सामने नहीं आया जिस से मुझ जैसा जिजीविषा वाला व्यक्ति मायूस जरुर हुआ! दरअसल मैं व्यवधान बनना भी नहीं चाहता था क्योंकि बमुश्किल ऐसे अद्भुत कार्यक्रम देखने सुनने को मिलते हैं फिर मैं अगर मंचासीनों से दमाऊ सागर, 18 ताल तक एकहरा ढोल, तीन ताल तक एकहरा दमाऊ या फिर जंक, छागल, देवकुरपाण जैसे बिन्दुओं को चर्चा में लाता तो इसका विस्तार हो जाता और हम पद्मश्री प्रीतम भरतवाण व डॉ. डी आर पुरोहित की उस जुगलबंदी से चूक जाते जो छोटी थी लेकिन अद्भुत थी!
सच कहूँ तो मेरी जिजीविषा मूलतः दमाऊ ही थी क्योंकि ढोल की संरचना के एक एक बिंदु एक एक भाग के बारे में मुझे जानकारी तो है लेकिन दमाऊ क्यों आँतों से ही मढ़ा जाता है और क्यों उसमें 32सर 64 कोठे हैं, यह जानने की में अभिलाषा शांत नहीं हो पाई!
एक सबसे लोमहर्षक बात तब सामने आई जब पद्मश्री प्रीतम भरतवाण द्वारा टिहरी गढवाल के ग्राम खैरा थाती के 72 बर्षीय गुणीदास बाजगी का किस्सा सार्वजनिक किया! सच कहूँ तो सुनकर मेरा ही नहीं बल्कि वहां बैठे जाने कितने लोगों का मन वह सब सुनकर द्रवित हो गया होगा व जिनकी भी अवधारणा यह रही होगी कि सतपाल महाराज लोगों से हाथ मिलाने के हाथ धोते हैं तो वे मेरी तरह ग्लानि महसूस कर रहे होंगे!
प्रीतम भरतवाण मंच से कहते हैं कि “नमो नाद” के पहले दिन सतपाल महाराज जी का आदेश हुआ कि वे अपनी भोजनशाळा में कुछ औजी समाज के लोगों के साथ भोजन करना पसंद करेंगे तब मेरे लिए यह चुनाव करना कठिन हो गया कि मैं किसको ले जाऊं व किसको नहीं! आखिर पहले दिन पांच व दूसरे दिन के लिए भी पांच लोगों का चुनाव हुआ! वह देखते हैं कि भोजन कर हाथ धोते समय 72 बर्षीय गुणीदास जी बिलख-बिलखकर रो रहे हैं व वे जितने आंसूं पोंछते उतने ही वह और गिरते जा रहे हैं! प्रीतम बोले मैंने उन्हें ढांडस बंधवाया और कारण पूछा तो गुणीदास बोले- तेरी वजह से ऐसा हुआ कि जिन्दगी तर गयी! ऐसा मौका कि…महाराज के साथ बैठकर शुद्ध शाकाहारी राजसी भोज करने को मिला! यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा अनुभव है व हमारे समाज के लिए गौरव के क्षण भी! अब नहीं लगता कि हम उपेक्षित हैं व आगामी समय में हमारे वंशज ऐसी उपेक्षाएं में जियेंगे जो अब तक हमारा समाज झेलता जीता आया है! उन्होंने कहा वह धन्य हैं कि प्रीतम के कारण ढोलसागर की गरिमा का इतना गान हो पाया है! अब मुझे विश्वास है कि हमें अपने पर गौरव करने का कारण भी हमारा ढोल ही बनेगा!
गुणीदास के शब्द व शब्द आवृत्ति जो भी रही हो लेकिन उनके मन की सोच व उनके उदगार अपने शब्दों में ढालना बेहद कठिन काम है! उससे भी कठिन काम यह है कि विश्व प्रसिद्ध एक गुरु जो विश्व भर के बड़े बड़े मंचों से ब्रह्मज्ञान के प्रवचन देते हों व जिनके पूरे विश्व भर में करोड़ों भक्त हों! जिनका संस्कार गढ़वाल की थाती-माटी से जुड़ा हो वह ढोली समाज के साथ बैठकर भोजन करे ? यह सचमुच बहुत बड़ा कृत्य है व महाराज का कद इस से कितना बिशाल बना होगा यह महसूस किया जा सकता है क्योंकि जिस व्यक्तित्व के बारे में यह चर्चा होती रही हो कि वह आम आदमी से हाथ मिलाने पर फ़ौरन अपना हाथ धो लेते हैं उसी व्यक्तित्व की यह बात दो साल बाद एक बड़े मंच से उन्हीं के सामने सार्वजनिक होती हो तो उनकी बिशालता का अर्थ लगाया जा सकता है क्योंकि उन्हें अगर तब ढोंग करना होता तो यह कई अखबारों टीवी चैनलों की उस समय की लीडिंग न्यूज़ होती!
मुझे लगता है गुणीजन गुणीदास के उन आंसुओं के भक्तिभाव से सतपाल महाराज जैसे परम संत के कई कष्ट हरे होंगे ऐसी उम्मीद की जा सकती है!