(मनोज इष्टवाल)
इस सदी की उत्तराखंड में यह तीसरी बड़ी बादल फटने की आपदा (आराकोट-बंगाण क्षेत्र उत्तरकाशी) है! सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि विश्व भर में पिछली तीन सदियों में अगर सर्वाधिक बादल फटने की घटना हुई हैं तो वह भारत बर्ष का उत्तराखंड प्रदेश है! बादल फटने की सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में केदारनाथ त्रासदी के रूप में जानी जाती है!
यों तो विश्व भर में भूकम्प और ज्वालामुखी से घटित कई घटनाक्रम हैं लेकिन बादल फटने की घटना कुछ गिनी चुनी ही हैं! बादल का फटना भी एक भीषण आपदा है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता। क्योंकि इसके चलते गाँव-के-गाँव, कस्बे जमींदोज हो जाते हैं। सैकड़ों जिन्दगियाँ पल भर में कहाँ लोप हो जाती हैं, इसका पता ही नहीं चलता। कभी-कभी तो उनका कोई नामलेवा तक नहीं बचता जो उनकी मौत पर आँसू तक बहा सके।
अंग्रेजी में बादल फटने को क्लाउडब्रस्ट कहते हैं। वातावरण में दबाव जब कम हो जाता है और एक छोटे से दायरे में अचानक भारी मात्रा में बारिश होती है, तब बादल फटने की घटना होती है।
अब तक बादल फटने की घटनाएँ सबसे ज्यादा हिमाचल क्षेत्र में घटित होती थी लेकिन इस सदी के प्रारम्भ से लेकर वर्तमान तक उत्तराखंड में विश्व भर की सबसे अधिक बादल फटने की घटनाएँ घटित हुई हैं इस से अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे भूगर्भ शास्त्री अभी तक क्यों इन घटनाओं का खुलासा नहीं कर पा रहे हैं कि यह घटनाएँ अचानक उत्तराखंड में क्यों बढ़ने लगी हैं! कहीं यह सब विकास की अंधी दौड़ में प्रदेश में बन रहे लगातार बांधों के वजह तो नहीं?
विकिपीडिया की निम्नवत जानकारी को अगर साझा किया जाय तब भी उसके पास शायद वह सारा रिकॉर्ड मौजूद नहीं है जो वर्तमान तक भारतबर्ष में घटित बादल फटने की घटनाओं का हो क्योंकि इन आंकड़ों के हिसाब से उनके पास सिर्फ केदारनाथ में दो बादल फटने की घटनाएँ शामिल हैं जबकि अब तक पूरे प्रदेश में बादल फटने की इस सदी की ही घटनाएँ आधा दर्जन के आस-पास हैं!
अवधि | वर्षा | स्थान | दिनांक |
1 मिनट | 1.9 इंच (48.26 मि॰मी॰) | लेह, जम्मू और कश्मीर, भारत | 06 अगस्त 2010 |
1 मिनट | 1.5 इंच (38.10 मि॰मी॰) | बरोत, हिमाचल प्रदेश, भारत | 26 नवम्बर 1970 |
5 मिनट | 2.43 इंच (61.72 मि॰मी॰) | पोर्ट बेल्स, पनामा | 29 नवम्बर 1911 |
15 मिनट | 7.8 इंच (198.12 मि॰मी॰) | प्लम्ब पॉइंट, जमैका | 12 मई 1916 |
20 मिनट | 8.1 इंच (205.74 मि॰मी॰) | कर्टी-दे-आर्गस, रोमानिया | 7 जुलाई 1947 |
40 मिनट | 9.25 इंच (234.95 मि॰मी॰) | गिनी, वर्जीनिया, संयुक्त राज्य अमेरिका | 24 अगस्त 1906 |
10 मिनट | उपलब्ध नहीं | केदारनाथ, उत्तराखंड, भारत | 16 जून 2013 |
15 मिनट | उपलब्ध नहीं | केदारनाथ, उत्तराखंड, भारत | 17 जून 2013 |
अगर बीते तीन बर्षों के ही आंकड़े इकठ्ठा किये जाएँ तो अब तक लगभग दो घटनाएँ हिमाचल व 10 घटनाएँ उत्तराखंड में बादल फटने की हो चुकी हैं जिनमें इनमें 8 अगस्त 2015 को हिमाचल प्रदेश के मंडी में, 11 मई 2016 को शिमला के पास सुन्नी में, उत्तराखण्ड में 29 मई 2016 को और बीती 30 जून को चमोली जिले के घाट, नन्दप्रयाग और दशोली ब्लाक में तथा पिथौरागढ़ जिले की डीडीहाट तहसील के दाफिला, कुमालगौनी और बस्तड़ी गाँव मिलाकर छह जगहों पर बादल फटने से तबाही मच गई। इनमें विगत बर्ष 28 अगस्त 2018 को टिहरी के कोटगांव में बादल फटने से तबाही, 8 लोग दबे, 3 के शव निकाले गए! 17-18 अगस्त को ही बूढ़ाकेदार क्षेत्र के ऊपर जराल ताल नाम की झील में बादल फटने के कारण हुए रिसाव से निवाल, मरवाड़ी, अगुंडा सहित कई गांवों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया था, भले ही जनहानि नहीं हुई लेकिन कृषि भूमि व पशुधन का भारी नुकसान हुआ था!
विगत तीन सदियों में उत्तराखंड की कुल आपदाएं अगर जोड़ी जाएँ तो वे विश्व की प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक गिनी जा सकती हैं! 1796-97 की आपदा हो या फिर 1801-02 में आया बिनाशकारी भूकम्प जिसने पूरे उत्तराखंड की दो तिहाई जनसंख्या खत्म कर दी थी, को अगर छोड़ भी दिया जाय तो अब तक की प्रमुख घटनाओं में 1894 में गौना झील का टूटना, 1916 में पिथौरागढ़ जिले में भूकंप, नीलकंठ में भूस्खलन, 1991 में उत्तरकाशी में विनाशकारी भूकंप, पिंडर घाटी में भूस्खलन से 246 लोगों की मौत, उखीमठ क्षेत्र में भूस्खलन से कई गांव तबाह, 70 लोगों की मौत, 1998 में पिथौरागढ़ में मालपा क्षेत्र में बादल फटने से करीब तीन सौ लोगों की मौत, 1999 में चमोली में भूकंप। 2002 में बूढ़ाकेदार में बादल फटने से तबाही, 2004 में टिहरी बांध में टनल धसने से 28 लोगों की मौत, 2005 में गोविंदघाट की तबाही, 2010 में कपकोट बागेश्वर में भूस्खलन, और अभी 16-17 जून 2013 में आई केदारनाथ के वासुकीताल में बादल फटने की प्राकृतिक आपदा। केदारनाथ की आपदा उत्तराखंड के विकास को कई दशक पीछे ले जाने वाली यह आपदा भीषण बारिश, बाढ़ और भूस्खलन का नतीजा थी, जिसमे हजारों लोग मारे गए, लाखों लोग बेघर हुए और न जाने कितने भवन ध्वस्त हो गए। गांव के गांव भूगोल से गायब हो गए।
उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में 8 और 9 अगस्त, 2019 की रात को भारी बारिश हुई। चमोली जिले के थराली ब्लाॅक में रात 11 बजे के करीब बादल फट गया। यहां उलनग्रा, तलोर, पदमल्ला, बामन बेरा और फल्दिया गांवों में भारी नुकसान होने की खबर है। शुक्रवार सुबह तक मिली सूचनाओं के अनुसार फल्दिया गांव में अब तक सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यहां गांव के बीच से गुजरने वाला गदेरा उफान पर आने से एक 29 वर्षीय महिला और उसकी 5 वर्ष की बेटी की मलबे तेज बहाव में बह जाने से मौत हो गई। दोनों कर दिये गये हैं। इस गांव में 12 मकान ढह गये हैं।
अब यह सब होने के बाद उत्तराखंड में उत्तरकाशी जनपद के आराकोट-बंगाण क्षेत्र की बादल फटने की घटना ने फिर से प्रदेश को झकझोर दिया है जिसमें लगभग 200 का नुकसान असंख्य जानवर, व डेढ़ दर्जन से अधिक जनहानि होने की बात सामने आई है! इस घटना में बचाव कार्य पर लगे दो हैलीकाप्टर अभी तक दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं जिनमें तीन जानें और चली गयी हैं!
क्यों घट रही हैं बादल फटने की घटनाएँ?
सारे आंकड़े अगर एक साथ रखे जायं और उन पर ध्यान दिया जाय तो मात्र 19 बर्षों में उत्तराखंड ने सबसे ज्यादा बादल फटने की घटनाएँ झेली हैं! 2013 से लेकर 2019 तक साल दर साल हम इन घटनाओं से दो चार हो रहे हैं! ये घटनाएँ मई, जून व अगस्त माह में घटित हुई हैं! अगस्त माह में पिछले तीन बर्षों से बादल फटने की घटनाएँ बढ़ी हैं! कहीं इस सबके पीछे विकास की अंधी दौड़ में बन रहे बाँध तो कारण नहीं हैं? इस पर भू-गर्भवैताओं को अपनी साफ़ राय रखनी होगी क्योंकि जब से टिहरी बाँध अस्तित्व में आया इसके आस-पास के इलाकों में ऐसी घटनाएँ ज्यादा बड़ी हैं! अब जब रुपिन-सुपिन के बाद टोंस पर भी बाँध बनना शुरू हुआ तो यहाँ भी यह घटना प्रारम्भ हो गयी है! अर्थात जिस क्षेत्र में बाँध बन रहे हैं वहीँ यह घटना घटित हो रही है आखिर क्यों?
मैं इस पर स्पष्ट राय तो नहीं दे सकता क्योंकि मैं भू-वैज्ञानिक या भू-गर्भवेता नहीं हूँ लेकिन यह सच है कि बाँध निर्माण के बाद यह सिलसिला लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है! 2013 में जरुर कुछ सर्वेक्षण हुआ था जिसमें लगभग 650 गाँवों को केदार आपदा के बाद आपदा प्रभावित गाँव घोषित किया गया था लेकिन उन गाँवों में आराकोट बंगाण के ये गाँव भी रहे होंगे ऐसा मैंने सरकारी आंकड़ों में नहीं पढ़ा! फिर ये बाँध किसके लिए ..! जिसमें गाँव कितने भी उजड़ जाएँ उजाड़ दिए जाएँ प्रवाह नहीं! आपदा कहीं भी आ जाय उसकी चिंता नहीं ! चिंता है तो उस धन की जो कभी किसी के साथ शमशान में दफन नहीं हुआ बल्कि वह सबको दफन करता रहा! ऐसे में जनता को ही चेतना होगा कि इन बादल फटने की घटनाओं के पीछे आखिर क्या है जिसे सरकारी तंत्र लगातार अनदेखा कर रहा है या फिर रिपोर्ट्स अगर दी भी जा रही हैं तो वे कहीं धूल फांक रही हैं!