(मनोज इष्टवाल)
“पैरों का क्या है चल ही देंगे ..दिल से पूछो साथ चलेगा क्या?”
उत्तरकाशी जिले की अध्यापिका सावित्री सकलानी उनियाल ने केलसू घाटी के एक अध्यापक आशीष डंगवाल की एक पोस्ट शेयर की! सावित्री सकलानी उनियाल ने पोस्ट शेयर करते हुए लिखा- ” एक शिक्षक को ही ऐसा सम्मान मिल सकता है यदि वास्तव में समर्पित अपने व्यवसाय के प्रति…उत्तरकाशी जनपद में एक शिक्षक को इस तरह दी गयी विदाई…..3 बर्ष में इतना कर दिया कि लोग विदाई न झेल पाए!”
ये शब्द मुस्कराते हुए पड़े और लगा देखने गुरूजी द्वारा पोस्ट की हुई अपनी फोटोज! सच कहूँ तो फोटो सचमुच मनोभावों का ऐसा सागर है जो अन्तस में छुपे सभी भाव-उदगार पल में बखान कर देते हैं! इन फोटो ने अभी सिर्फ द्रवित ही किया था कि एक फोटो की टैगलाइन पर नजर पड़ी..! लिखा था – “पैरों का क्या है चल ही देंगे…दिल से पूछो साथ चलेगा क्या?” शब्दों की मार्मिकता इन सभी छायाचित्रों का ऐसा सार लगा कि आँखों की मेरी भी पोर भीग पड़ी!
उत्तरकाशी जिले के केलसू घाटी में सरकारी स्कूल में तैनात हुए अभी सिर्फ इस युवा अध्यापक आशीष डंगवाल को मात्र 3 साल ही तो हुए थे! सरकारी फरमान आया व उनका स्थान्नान्त्रण अन्य जगह हो गया! खबर पूरी घाटी में फैली तो विदाई के लिए पूरा हुजूम जुट गया! क्या भंकोली-नौगाँव, क्या अगोड़ा-दंदालका, शेकू-गजोली और ढासड़ा..! सभी इस युवा लोकप्रिय अध्यापक को विदाई देने उमड़ पड़े!
शायद ही किसी बेटी के मायके से विदा होते समय इतने आंसू बहे होंगे और इतनी आँखें नम हुई होंगी जितनी इन गुरूजी के लिए हुई! क्या बूढ़े-बुजुर्ग क्या नवयौवनाएँ क्या छात्र-छात्राएं…! और क्या गुरूजी! फोटो सब भेद खोलकर रख गयी! विदाई के लिए ढोल आया और पूरी घाटी के लोग इस विदाई रस्म में जुटते चले गए! सच कहूँ गुरु जी मुझे भी रोना आ गया! काश…पूरे प्रदेश भर में आप जैसे मुट्ठी भर और युवा गुरुवर जन्म ले लेते जो शिक्षा के साथ लोक समाज का ताना-बाना बुनकर इतने आशीर्वादों के साए में रहकर नौनिहालों का भविष्य संवारते तो यह प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में उस कलंक से मुक्ति पा जाता जिसके व्यवसायीकरण के चलते ग्रामीण क्षेत्र खाली हो गए हैं! मुझे पूरी उम्मीद है कि आपके इन तीन सालों कीमेहनत से तैयार हुई शिक्षा की फसल के आने वाले समय में बड़े दूरगामी परिणाम निकलेंगे!
देर सबेर ही सही ! यह तय मानिए कि आपकी यह पोस्ट शिक्षा विभाग के आला अफसर से लेकर शिक्षा मंत्री व मुख्यमंत्री के संज्ञान में जरुर आएगी ऐसे में मुझे यह उम्मीद है कि आपका विभाग आपकी उस कार्यप्रणाली को समझने की जरुर कोशिश करेगा जिसने मात्र तीन बर्षों में ही पूरी केलसू घाटी का लाड़-प्यार अपने नाम कर दिया और साथ ही जता व बता भी दिया कि सच्चे मायने में गुरु की कर्तब्यनिष्ठा होती क्या है!
इस युवा अध्यापक आशीष डंगवाल ने सोशल साईट पर अपने उदगार व्यक्त करते हुए लिखा- ” मेरी प्यारी #केलसू #घाटी, आपके प्यार, आपके लगाव, आपके सम्मान, आपके अपनेपन के आगे, मेरे हर शब्द फीके हैं! सरकारी आदेश के सामने मेरी मजबूरी थी मुझे यहाँ से जाना पड़ा, मुझे इस बात का दुःख है! आपके साथ बिठाये 3 बर्ष मेरे लिए अविस्मर्णीय हैं! #भंकोली, #नौगाँव, # अगोड़ा, #दंदालका, #शेकू, #गजोली, #ढासड़ा, के समस्त माताओं, बहनों, बुजुर्गों, युवाओं ने जो स्नेह बीते बर्षों में मुझे दिया मैं जन्मजन्मान्तर के लिए आपका ऋणी हो गया हूँ! मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन एक वायदा है आपसे कि केलसू घाटी हमेशा के लिए अब मेरा दूसरा घर रहेगा, आपका ये बेटा\ लौटकर आएगा! आप सब लोग का तहेदिल शुक्रियादा! मेरे प्यारे बच्चों हमेशा मुस्कराते रहना! आप लोगों की बहुत याद आएगी!”
आशीष डंगवाल मूल रूप से रुद्रप्रयाग जिले के श्रीकोट गांव के रहने वाले हैं, आशीष का कहना है कि केलसु घाटी के लोगों ने जो प्यार और स्नेह उन्हें दिया, वो मेरे जीवन में अस्मरणीय रहेगा ।