Friday, August 22, 2025
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वयम पंचाधिकम शतम…! भारत चीन सीमा पर हुई झड़प और शहादतें।

(सतीश लखेड़ा की कलम से)।

भारत चीन सीमा पर हुई झड़प और शहादतों के बाद एक वर्ग झूम उठा है। उसे हमले आलोचना और टीका-टिप्पणी का सुनहरा मौका मिला है। कोरोना संकट में जिन्होंने भले ही किसी गरीब को एक रोटी न दी हो मगर भ्रम खूब बांटा। अब वे चीनी हमले का उत्सव मना रहे हैं। बुद्धिजीवी, प्रगतिशील, आलोचक और चिंतक होना बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है जो जरूरत पड़ने पर सत्ता को आइना दिखाते हैं। विपक्षी दल आंतरिक विषयों और घटनाओं पर मतभेद तथा टीका टिप्पणी करते रहते हैं। पर राष्ट्र के संकट के समय खुशी मनाने वाली बेशर्मी चौंकाती जरूरत है। सैनिकों की शहादत पर उत्सवी पोस्टें, शर्मनाक है।

यह ठीक है कि दशकों से जो सत्ता का भोग करते आये, उनका विपक्ष में बैठने का अनुभव नहीं है इसलिए वे विपक्ष की जिम्मेदारियों को शायद नहीं जानते, बेहतर होता वह अपने सत्ताकाल के विपक्ष जैसा ही आचरण कर लेते। गुलाब वाले चाचा के द्वारा खोली गई फाइलें आज भी देश भुगत रहा है, जिन्होंने चीनी कब्जे पर पार्लियामेंट में कहा था कि जहां घास भी नहीं जमती उस टुकड़े का क्या लोभ करना। आज जब देश का एक-एक इंच भूमि को बचाने के लिए जूझने का जज्बा है तो चाचा का घराना दुखी है। जिन्होंने जनरल नियाजी और उसके सैनिकों को वोट बैंक और तुष्टीकरण का संदेश देने के लिए ऐसे ही छोड़ दिया। आज अक्साई चीन, पाक अधिकृत कश्मीर पर चाचा के उड़ाये श्वेत कबूतरों की हकीकत सामने आ रही है।

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी पर शायद ही दुनिया के किसी देश का विपक्ष और तथाकथित बुद्धिजीवियों का जमघट सरकारों को इस तरह कोस रहा होगा जैसा रूदन- क्रदन भारत में है। भारत-पाक युद्ध में अटल जी द्वारा इंदिरा जी की प्रशंसा करना, नरसिंह राव जी के समय संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व अटल जी द्वारा किया जाना ऐसे उजले चेहरे वाले तत्कालीन विपक्ष की खींची लकीरों को वर्तमान विपक्ष नहीं देख पा रहा है। रूस में बारिश होने पर भारत में छाता तानने वाले वर्ग को चीन की कुटिल चालों पर क्रोध नहीं आता बल्कि उन्हें केरल के पिनरायी विजयन और चीन के जिनपिंग बराबर सगे लगते हैं। ट्रंप के बंकर का साइज बताने की क्षमता रखने वाले खोजी बुद्धिजीवी नेपाल पर चीन के सम्मोहन पर मौन हो जाते हैं।

देश तो हर चुनौतियां से उभरेगा मगर तुम्हें मलाल होगा कि तुम एक नागरिक के नाते सैनिकों की शहादत पर उतने ही मुदित थे, जितने हमारे दुश्मन।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय मीडिया टीम के सदस्य हैं)।

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