(मनोज इष्टवाल)
फिर जुटेगा मेला…! फिर जौनपुर घाटी के पंडित पढ़ेंगे मंत्र! बकरे बकरियों को एक बाड़े में फिर डाला जाएगा। सैकड़ों लोग गवाह होंगे कि किस बकरे ने किस बकरी को सूंघा। इसे उसका प्यार का इजहार माना जायेगा। फिर उनके गले में माला पहनाई जाएगा बकरा अपनी जुबाँ से प्यार के इजहार में शब्द निकालेगा और बकरी मिमियाती हुई मैंs मैंs करती बकरे को अपना दिल दे बैठेगी।
इसके बाद होगी अष्टम पूजा। वेदी बनेगी। ब्राह्मण घण्टी हिलाता हुआ मंत्रोच्चारण करेगा- मंगलम भगवान विष्णु मंगलम…! उधर मंगलेर माँगल गाएंगी – दे द्यावा बुवा जी बकरि कु दाना..! बकरी कु दाना स्वर्ग समाना हेs। गळद्यवा गैल्याणि गालियां देंगी- हमरु बामण बखरा चरांदा, ब्योला कु बामण ड्यब्रा चरांदा ए…!
यह सब उस यमुना संस्कृति की घाटी में पिछले कई बर्षों से निर्विवाद होता आ रहा है। मुझ जैसे निर्बुधु इसका जाने क्यों विरोध करता है। शायद मैंने ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर गलती से कुछ ग्रन्थ, पुरातन हिन्दू परम्पराओं का अध्ययन कर लिया है इसलिए बार-बार धर्मरक्षा हेतु चिल्लाता रहता हूँ कि “धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।”
जिसका भावार्थ अगर साधारण शब्दों में कहूँ तो ‘‘जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी न करना चाहिए ।’’
लेकिन फिर इस अंग्रेजी बर्ष के अंत में वे हिंदी बर्ष के शुभारंभ में माया, ममता और महबूबा आख़िरकार मसूरी के पिछवाड़े में खड़ी हो रही हैं!
बकरी स्वयंवर के हर्ता-कर्ताओं द्वारा फिर गोट विलेज नागटिब्बा टिहरी गढ़वाल में तीसरे बर्ष भी बकरी स्वयंवर धूमधाम से मनाए जाने की तैयारी जोरों पर है जिसमें यह टीम विदेशी मेहमानों को बुलाकर दिखाती है कि किस तरह हम जंगली लोग व हमारे वेद पुराणों में बकरी स्वयंवर होता है। जिसके लिए हमारे ब्राह्मण समाज के प्रकांड पंडित उन मंत्रों के साथ इनका विवाह संपन्न करवाते हैं जो हिन्दू धर्म शास्त्र के कर्मकांड में वैदिक रीति से हिन्दू महिला पुरुष के विवाह बंधन पर वेदिका के फेरों के साथ सात फेरों के साथ वचन निभाने में बोले जाते हैं। आश्चर्य तो यह है कि हमारा समाज अपने पुरातन संस्कृति का हवन कुंड में होम कर पूरे दिन हंसी खुशी इस बकरी स्वयंवर में भात पत्तल खाने भी जाता है। उम्मीद में तो इसलिए जाता है कि बकरी की टांग भी भगस के आये लेकिन चूर्ण चटनी में संतोष कर इनको आना पड़ता है। इससे भी बड़ा आश्चर्य तो यह हैै कि एक साल तो प्रदेश केे पशुपालन विभाग न सिर्फ़ इसमें शिरकत की बल्कि इस बकरी स्वयंवर का प्रमोशन भी किया। पशु समान इस विभाग को शायद ही पता हो कि यमुना व टोंस घाटी में बसे प्रदेश के जौनसार, बावर, पर्वत, रवाईं व जौनपुर क्षेत्र में सैकड़ों बर्षों से भेड़ बकरी पालन से जुड़े ये ग्रामीण हर बर्ष अपने पशुधन की समृद्धि हेतु भेड बकरियों के 6 माह बुग्याल प्रवास के पश्चात गांव लौटी भेड बकरियों के लिए ऊंची थातों में नुणाई मेले का आयोजन होता है व कुलदेवता व जंगल के देवी देवताओं की पूजा की जाती है। वन देवियों को रोट चढ़ाया जाता है और भेडालों की आवाभगत होती है। सुंदर मेले सजते हैं। माँ बहनों बाजूबंद, हारुल, झैँता, रासो, लामण, जंगू बाजू, जंगू-भाभी, छोड़े लगाते हैं जिनके सुर में सुर मिलाता समाज डांडी-काँठी के इस मुल्क की चकाचौंध लौटा देता है। इधर ये बकरी स्वयंवर वाले किस तरह हमारा मजाक उड़ा रहे हैं यह सब आप देख ही रहे हैं। मैं कहता हूं कि क्यों न गोट विलेज वाले नुणाई त्यौहार को ही अंगीकार कर हमारी लोक परम्परा को विश्व स्तर तक पहुंचाने का कार्य करें ताकि हम इनके पशुधन प्रमोशन के लिए किए जा रहे प्रयास के आगे नतमस्तक हो सकें लेकिन बकरी स्वयंवर की नई परम्परा डालकर ये कौन सी धर्म संस्कृति का प्रचार कर रहे हैं समझ नहीं आ रहा। बकरी स्वयंवर के अभय शर्मा बड़े गर्व के साथ फेसबुुुक में लिखते हैैं- यह बताते हुए खुशी हो रही है कि बकरी स्वयंवर सीजन-3 22/23 मार्च (शनि, सूर्य), 2020 को तय किया गया है। वेन्यू मसूरी के पास हाथीपांव होगा। कृपया भारत के सबसे अनोखे सामाजिक रियलिटी शो के लिए तारीखें (जैसे टाल दी गई) सहेजें। यह प्रतीकात्मक आयोजन मवेशी और महिला सशक्तीकरण के जीन पूल सुधार के उद्देश्य से किया जा रहा है (बकरी दुल्हन को सजे हुए दूल्हे से चुनने के लिए)। पर्यटकों के इस बदलाव और इस घटना के सामाजिक प्रभाव ने उत्सुक विदेशी टूर ऑपरेटरों और मीडिया के बीच रुचि पैदा की है। सीजन 1 बकरी दुल्हन दीपिका, प्रियंका और कैटरीना थीं और सीजन 2 दुल्हनें आलिया, श्रद्धा और कंगना थीं।